आगर-मालवा। सुसनेर के मालवा क्षेत्र में रंगों के त्योहार होली पर भी आधुनिकता के बावजूद सालों से चली आ रही परंपराएं निभाई जा रही हैं. शक्कर के मीठे आभूषण पहनकर और हाथों में लकड़ी की तलवार लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में होलिका दहन की सालों पुरानी परंपराएं आज भी चली आ रही हैं. मीठे आभूषणों की अपनी एक पहचान और अपनी मान्यता है.
ये है मान्यता
मालवा क्षेत्र में 100 सालों से भी अधिक पुरानी इस परम्परा में शक्कर से बनी रंग बिरंगी मालाएं और आभूषणों को पहनकर बच्चे होलिका दहन करने जाते हैं, होलिका दहन के समय इनकी पूजा की जाती है और बाद में इन गहनों, मालाओं को प्रसाद के रूप में बच्चों और बुजुर्गों में बांट दिया जाता हैं. होली पर बांटे जाने वाले इन मीठे आभूषणों को सभी बहुत पसंद करते हैं. लोगों के अनुसार ये आभूषण बांटे ही इसलिए जाते हैं, ताकि पूरे सालभर रिश्तों में मिठास बनी रहे. परंपरा अनुसार ग्रामीण इलाकों में होलिका दहन के लिए अपने घरों से निकले बच्चे लकड़ी से बनी तलवारों को कंधे पर रखकर जाते हैं. होलिका दहन में इन तलवारों की नोंक से अंगारों को खंगालकर इन्हें आधा जलाया जाता है, फिर आधी जली इन तलवारों को वापस घरों में लाया जाता है. ग्रामीण मानते है कि ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है.
हजारों क्विंटल में होता है व्यापार
रंगों के इस त्योहार पर हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भी इन मीठे गहनों का व्यापार करते हैं, मालवा की परंपरा में शामिल शक्कर से बनी इन मीठी मालाओं और गहनों का हजारों क्विंटल में व्यापार होता है. लगभग 60 से 80 रूपए किलों तक इनको बेचा जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं और बच्चे जमकर इनकी खरीददारी करते हैं.
आधुनिकता में भी कम नहीं हुआ व्यापार
सालों से इस पुश्तैनी व्यापार को कर रहे हुजेम अली बोहरा के अनुसार होली पर लगभग आठ से दस दिनों तक इन आभूषणों का अच्छा कारोबार हो जाता है. बाजार में जगह- जगह पर इनकी कई दुकाने लगने के बाद भी इन आभूषणों का व्यापार कम नहीं हुआ है. ग्रामीण महिला रुकमा बाई बताती है कि होली के अवसर पर मीठे आभूषणों के साथ ही जिले के क्षेत्र में लकड़ी से बनी रंग बिरंगी तलवारों का भी खासा महत्व है. परंपरा के अनुसार ग्रामीण इलाकों में होलिका दहन के लिए अपने घरों से निकले बच्चे इन तलवारों को कंधे पर रखकर जाते है.
रंग बिरंगे मीठे आभूषण आज भी हैं बच्चों की पंसद
सुसनेर निवासी राजेन्द्र जैन लगभग 30 वर्षों से इन रंग बिरंगी मालाओं और आभूषणों को बनाते चले आ रहे हैं. उनके जैसे कई दुकानदार होली के पंद्रह दिन पहले से ही इनको बनाना शुरू कर देते हैं. शक्कर की चासनी में खाने वाले रंगों को डालकर इन्हें बनाया जाता है. महंगाई और आधुनिकता के बावजूद इन मीठे आभूषणों की मांग आज भी बनी हुई हैं. आगर मालवा क्षेत्र में आज भी बच्चों की पसंद यह रंग बिरंगे मीठे आभूषण है.