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गाय के गोबर से बनाई जा रही हैं इकोफ्रेंडली लकडियां, पर्यावरण संरक्षण में मिलेगी मदद

आगर-मालवा में देश के पहले गौ अभयारण्य में गायों के गोबर से इकोफ्रेंडली लकडियां बनाई जा रही हैं. इन लकडियों का अंत्येष्टि या फिर हवन के लिये उपयोग में किया जा सकता है. इस्तेमाल से पर्यावरण संरक्षण में मिलेगी मदद.

machine that makes Eco friendly sticks
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Published : Jun 5, 2019, 12:05 AM IST

आगर-मालवा। जिले में देश के पहले गौ-अभयारण्य में गायों के गोबर से इकोफ्रेंडली लकडियां बनाई जा रही हैं ताकि पर्यावरण संरक्षण किया जा सके. शेष बचे गोबर का उपयोग गोबर गैस प्लांट में किया जा रहा है. मशीनों के जरीए बनाई जा रही गोबर की इन लकडियों का अंत्येष्टि या फिर हवन के लिये उपयोग में किया जा सकता है.

गोबर से बनतीं इकोफ्रेंडली लकडियां

गौ- अभ्यारण में गायों के गोबर से लकडियां बनाने का काम अभी प्रायोगिक तौर पर हो रहा है. प्रयोग अगर सफल होता है तो फिर बड़े पैमाने पर गोबर से लकडियां बनाने का काम किया जा सकता है. बाद में इन लकडियों को बाजार में बेचने से अभयारण्य प्रशासन को आय भी हो सकेगी.

2017 में अपने उद्घाटन के बाद से ही गौ अभयारण्य कई तरह के विवादों में घिरा रहा. लेकिन इस बार गायों को भीषण गर्मी से बचाने तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे सकारात्मक प्रयासों को लेकर चर्चा में है.

गौ-अभयारण्य के पशु चिकित्सक डॉक्टर एसएस सागर ने बताया कि यहां गर्मी के मौसम में घास नहीं है, इसलिए गायों को उच्च गुणवत्ता वाला भूसा खिलाया जा रहा है और दुधारू गायों को हरीघास खिलाई जा रही है. ग्वालियर की एक गोशाला की तर्ज पर गौ-अभयारण्य में गायों की सुविधां के लिए फव्वारें लगाए गए हैं. गायें किसी बीमारी का शिकार न हो, इसके लिए ओआरएस का घोल पिलाया जा रहा है.

आगर-मालवा। जिले में देश के पहले गौ-अभयारण्य में गायों के गोबर से इकोफ्रेंडली लकडियां बनाई जा रही हैं ताकि पर्यावरण संरक्षण किया जा सके. शेष बचे गोबर का उपयोग गोबर गैस प्लांट में किया जा रहा है. मशीनों के जरीए बनाई जा रही गोबर की इन लकडियों का अंत्येष्टि या फिर हवन के लिये उपयोग में किया जा सकता है.

गोबर से बनतीं इकोफ्रेंडली लकडियां

गौ- अभ्यारण में गायों के गोबर से लकडियां बनाने का काम अभी प्रायोगिक तौर पर हो रहा है. प्रयोग अगर सफल होता है तो फिर बड़े पैमाने पर गोबर से लकडियां बनाने का काम किया जा सकता है. बाद में इन लकडियों को बाजार में बेचने से अभयारण्य प्रशासन को आय भी हो सकेगी.

2017 में अपने उद्घाटन के बाद से ही गौ अभयारण्य कई तरह के विवादों में घिरा रहा. लेकिन इस बार गायों को भीषण गर्मी से बचाने तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे सकारात्मक प्रयासों को लेकर चर्चा में है.

गौ-अभयारण्य के पशु चिकित्सक डॉक्टर एसएस सागर ने बताया कि यहां गर्मी के मौसम में घास नहीं है, इसलिए गायों को उच्च गुणवत्ता वाला भूसा खिलाया जा रहा है और दुधारू गायों को हरीघास खिलाई जा रही है. ग्वालियर की एक गोशाला की तर्ज पर गौ-अभयारण्य में गायों की सुविधां के लिए फव्वारें लगाए गए हैं. गायें किसी बीमारी का शिकार न हो, इसके लिए ओआरएस का घोल पिलाया जा रहा है.

Intro:पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर देश के पहले गौ अभयारण्य में गायों के गोबर से इकोफ्रेंडली लकडीयां बनाई जा रही है, एक मशीन के जरीए बनाई जा रही गोबर की इन लकडीयों का उपयाेग अंत्येंष्टी या फिर हवन में उपयोग में लिया जा सकता है। शेष बचे गोबर का उपयोग गोबर गैस प्लांट में किया जा रहा है। इतना ही नहीं बल्की गायों की देखभाल में भी काफी बदलाव आया है। गर्मी में 40 से 43 डिग्री तापमान से राहत के लिए गो अभयारण के पांच शेडों में फव्वारें लगाए गए है साथ ही बीमारीयों से गायों को बचाने के लिए ओआरएस पावडर का घोल भी पानी मंे मिलाकर दिया जा रहा है। यह सब गो अभयारण के शुरू होने के बाद पहली बार हो रहा है। और गो अभयारण प्रशासन के इन्ही सकारात्मक प्रयासों के कारण यह एक बार फिर चर्चा में है।Body: साल 2017 में अपने उद्घाटन के बाद से ही गो अभयारण कई तरह के विवादों में घिरा रहा। कभी बड़ी संख्या में गायों की मौत तो कभी गायों की मौजूद संख्या और उनके रखरखाव को लेकर चर्चा में बना रहा। लेकिन इस बार गायों को भीषण गर्मी से बचाने तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे सकारात्मक प्रयासों को लेकर चर्चा है। गो अभयारण के पशु चिकित्सक डॉक्टर एस एस सगर के अुनसार अभयारण एक पहाडी और पथरीले इलाके मंे स्थित होने के कारण यहां गर्मी के मौसम में घास नहीं है। इसलिए गायों को उच्च गुणवत्ता वाला भूसा खिलाया जा रहा है। दूधारू गायों को हरीघास खिलाई जा रही है। ग्वालियर की एक गोशाला की तर्ज पर गो अभयारण में गायों की सुविधां के लिए फव्वारें लगाए गए है। ताकि 40 से 45 डिग्री तापमान में 5 से 10 डिग्री तापमान कम हो जाए और गायों को राहत मिल सके। साथ ही गायें किसी बीमारी का शिकार न हो, इसके लिए ओआरएस का घोल पिलाया जा रहा है। यहां रहने वाली करीब साढ़े चार हजार गायों को इस आग बरसाती गर्मी से बचाने के उपायों के तहत नीत-नए कार्य किए जा रहे हैं।
5 से 10 डिग्री तामपान कम हो जाए इसलिए लगाए है फव्वारें
अभयारण्य परिसर में कुल 24 शेड बने हुएं हैं। हर एक शेड की क्षमता 240 गाय की है। शेड के बीचोंबीच बने स्टोरेज टैंक में पानी को एक मोटर सिस्टम के जरिए इकट्ठा किया जाकर पाइप लाइन के जरिए शेड की छत पर हर 2.5 मीटर की दूरी पर जिगजैग पैटर्न में लगाए गए इन वाटर फुगर्स से निकलने वाली पानी की फव्वारों से शेड के अंदर का तापमान करीब 10 डिग्री तक नीचे आ जाता है और गायों को हल्की बारिश का अनुभव कराते हैं। इससे उन्हें गर्मी से राहत मिल रही है। परिणामस्वरूप गर्मी में होने वाली बीमारियों से बचाव हो रहा है।
लकडियों को बेचने से होगी आय
गो अभ्यारण में गायों के गोबर से लकडियां बनाने का काम प्रायोगिक तौर पर हो रहा है। अभयारण में 4 हजार से भी अधिक गाये है। इनके गोबर से प्रतिदिन इकोफ्रेंडली लकडीयां बनाई जा रही है। बाकी गोबर का उपयोग गोबर गैस बनाने में किया जा रहा है। प्रयोग अगर सफल होता है। तो फिर बडे पैमाने पर गोबर से लकडियां बनाने का काम किया जाएगा। बाद में इन लकडियों को बाजार में बेचने से अभयारण प्रशासन को आय भी हो सकेगी।
Conclusion:बाईट है डॉक्टर एस एस सगर, गो अभयारण्य पशु चिकित्सक
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