उज्जैन। धार्मिक नगरी होने के नाते उज्जैन में हर त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. मकर संक्रामति के मौके पर जहां एक तरफ बाबा महाकाल का दरबार सजाया गया, वहीं दूसरी तरफ पिता पुत्र के रिस्तों में मिठास लाने के लिए त्रिवेणी घाट स्थित शनि नवग्रह मंदिर से सूर्य देवता की सवारी निकाली गई और फिर भगवान सूर्य को शनिदेव के कमरे में विराजमान किया गया.
इस सवारी का मुख्य उद्देश्य केवल यही था कि पिता- पुत्र शनि और सूर्य के रिश्तों में कड़वाहट खत्म हो और मधुरता बड़े. सवारी में 51 बटुक ब्राह्मण, 11 ब्राह्मणों की उपस्थिति रहे. सवारी के बाद मंगलनाथ, महाकाल मंदिर, शनि मंदिर के पंडितों ने सूर्य शनि के मंत्रों के हवन कर प्रसादी का वितरण किया.
शास्त्रों के अनुसार पिता-पुत्र यानी सूर्य और शनि में दुश्मनी है, इसी कारण यह आयोजन उज्जैन में हर साल किया जाता है, कि रिस्तों में मिठास पैदा हो
भविष्य पुराण के अनुसार मकर संक्रांति के दिन गंगा, सिंधु, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, नर्मदा ,कावेरी, सरयू, चंबल, शिप्रा, प्रयाग, पुष्कर तीर्थ में स्नान तर्पण व दान करने से दिवंगत को मोक्ष मिलता है, वहीं लोगों की मनोकामना पूरी होती है. इन्ही बातों का ध्यान रखते हुए आज के दिन तीर्थ स्थानों पर लोगों का तांता लगा रहता है.
इस पर्व को निजी जीवन से जोड़ें तो यह रिश्तों में भी मिठास का संदेश देने वाला माना जाता है. सूर्य का प्रिय का गुड़ और शनि का प्रिय तिल मिलाकर मीठा-मीठा बोलने का आवाहन किया जाता है. इसी क्रम में हर वर्ष की तरह उज्जैन में सूर्य देव की सवारी नवग्रह शनि मंदिर से निकाली गई और शनि के पास विराजित की गई.