उज्जैन। पवित्र नगरी उज्जैन में 24 खंबा माता मंदिर में परंपरा के अनुसार कलेक्टर आशीष सिंह शामिल हुए माता मंदिर में शराब चढ़ाई और पूजा में शामिल हुए. चौबीस खंबा माता मंदिर में आज सोमवार सुबह से ही भक्तों का ताता लगा हुआ है. यहां माता की पूजा राजा विक्रमादित्य करते थे, इसी परंपरा का निर्वाह जिलाधीश द्वारा किया जा रहा है. यहां कलेक्टर ने माता को मदिरा का भोग लगाया, जिसके बाद 27 किलोमीटर तक शहर में शराब की धार चढ़ाकर, भैरव मंदिर और माता मंदिरों में शराब का भोग लगाया जा रहा है. मां को शराब का चढ़ाने के बाद कलेक्टर आशीष सिंह ने कहा कि मैंने मां से प्रधानमंत्री मोदी के दौरे कार्यक्रम, जिले की सुख समृद्धि और जिले में होने वाले सभी आयोजनों को लेकर मनोकामना की है.
राजा विक्रमादित्य के शासनकाल से चली आ रही परंपरा: महाकाल मंदिर से 150 मीटर दूरी पर स्थापित है चौबीस खंबा माता मंदिर. जहां देवी महामाया और देवी महालाया विराजमान हैं. यहां कलेक्टर खुद देवियों को शराब (मदिरा) का भोग लगाते हैं और आरती करते हैं. इसके पीछे का कारण पुजारी बताते हैं कि ऐसा माना गया है राजा विक्रमादित्य के शासन काल से यह परंपरा चली आ रही है. चूंकि जिले का राजा आज के युग में कलेक्टर होते हैं इसलिए कलेक्टर इस परंपरा को निभाते हैं. मान्यता है कि यह दोनो देवियां नगर की रक्षा के लिए यहां विराजमान हैं. जिनके पूजन से हर आपदा, संकट से मुक्ति मिलती है.
पूजन के बाद 27 किमी की शराब लिये पैदल यात्रा: पूजन के दौरान नगर व विश्व की सुख समृद्धि हेतु कलेक्टर चौबीस खम्बा स्थित माता महालाया व महामाया को मदिरा (शराब) अर्पित करते हैं. पूजन पश्चात कोतवाल परंपरा अनुसार एक हांडी में शराब लिए जिसमें छोटा सा छेद होता है. 27 किलोमीटर तक पैदल भ्रमण कर मार्ग में आने वाले करीब 40 भैरव मंदिरों में धार को अर्पित करते हैं. देर शाम तक यह क्रम चलता है, मंगलनाथ स्थित भैरव मंदिर पर यात्रा समाप्त होती है. साथ ही मदिरा को प्रसाद स्वरूप श्रद्धालु भी ग्रहण करते हैं. ऐसा सिर्फ महाकाल की नगरी उज्जैन में ही नवरात्र की महाअष्टमी पर्व के दौरान देखने को मिलता है.
कलेक्टर-एसपी ने नवरात्रि अष्टमी पर चौबीस खंबा मंदिर में देवी को चढ़ाई शराब, 24 किमी तक बही धार
मंदिर की मान्यता के बारे में जानिए: उज्जैन नगर की रक्षा के लिये यहां चौबीस खम्बे लगे हुए थे, इसलिये इसे चौबीस खंबा द्वार भी कहते हैं. यहां महाअष्टमी पर शासकीय पूजा तथा इसके पश्चात पैदल नगर पूजा इसीलिये की जाती है ताकि देवी मां को प्रसन्न कर नगर की रक्षा हो सके. प्राचीन समय में इस द्वार पर 32 पुतलियां भी विराजमान थीं. यहां हर रोज एक राजा बनता था और उससे ये पुतलियां प्रश्न पूछती थीं. राजा इतना घबरा जाता था कि डर की वजह से उसकी मृत्यु हो जाती थी. जब राजा विक्रमादित्य की बारी आई तो उन्होंने नवरात्रि की महाअष्टमी पर देवी की पूजा की तथा उन्हें देवी से वरदान प्राप्त हुआ. इस द्वार पर विराजित दोनों देवियों को नगर की रक्षा करने वाली देवी कहा जाता है. नवरात्रि के दौरान महाअष्टमी और महानवमी पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
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