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Political Analysis: जानें भाजपा ने कैसे लगाई कांग्रेस के गढ़ पृथ्वीपुर में सेंध, रैगांव में अपनी ही सीट क्यों नहीं बचा पाई भाजपा

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Published : Nov 4, 2021, 10:04 AM IST

जानिए कैसे बीजेपी ने कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली पृथ्वीपुर सीट पर जीत हासिल की और क्या कमी रह गई जिससे भाजपा के हाथ से निकल गई रैगांव सीट.

Political Analysis why congress lost Prithvipur assembly seat and BJP not able to retain Raigaon assembly seat
जानिए कैसे बीजेपी ने कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली पृथ्वीपुर सीट पर जीत हासिल की और क्या कमी रह गई जिससे भाजपा के हाथ से निकल गई रैगांव सीट.

सागर। मध्य प्रदेश में 30 नवंबर को एक लोकसभा और 3 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हुआ था. 2 नवंबर को चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं और इन परिणामों में सत्ताधारी दल भाजपा जहां कांग्रेस के हिस्से की 2 विधानसभा सीटें छीनने में कामयाब हुई है,तो कड़े मुकाबले के बाद अपनी खंडवा लोकसभा सीट को बचाने में भी कामयाब हुई है. हालांकि बीजेपी अपनी रैगांव सीट को बचा नहीं सकी और रैगांव में कांग्रेस को जीत हासिल हुई है.

रैगांव विधानसभा सीट पर क्यों हारी भाजपा ?
सतना जिले की रैगांव विधानसभा (Raigaon Assembly seat) भाजपा के विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन से रिक्त हुई थी. लंबे समय से भाजपा के कब्जे में रही इस सीट को बचाने में भाजपा नाकाम रही है. यहां कांग्रेस की प्रत्याशी कल्पना वर्मा ने भाजपा की प्रत्याशी प्रतिमा बागरी को करीब 12 हजार से ज्यादा मतों से हराया है. चुनाव परिणाम के बाद रैगांव विधानसभा के उलटफेर को लेकर तरह-तरह के आकलन सामने आ रहे हैं, लेकिन हम आपको कुछ ऐसे कारण बताते हैं,जो सत्ताधारी दल बीजेपी की हार का कारण बने.

1.महंगाई और कोरोना मिसमैनेजमेंट बना हार का कारण
रैगांव विधानसभा सीट पर महंगाई का मुद्दा शुरुआत से ही हावी रहा है. दूसरा प्रमुख मुद्दा कोरोना की दूसरी लहर के समय पर लोगों को इलाज में आई दिक्कतों और अव्यवस्थाओं का रहा है. इन दोनों मुद्दों के कारण स्थानीय लोगों में भाजपा सरकार को लेकर जमकर नाराजगी थी. इस मुद्दे को भुनाने में कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी.

2.सड़क,शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे ही विकास के मुद्दे भी रहे प्रमुख
रैगांव सीट लंबे समय से भाजपा के कब्जे में रही है स्थानीय विधायक स्वर्गीय जुगल किशोर बागरी यहां से विधायक रहे हैं. विकास का गुणगान करने वाली भाजपा ने रैगांव सीट पर शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी सुविधाओं के लिए कोई विशेष काम नहीं किया, जिसको लेकर लोगों में जमकर नाराजगी थी.

3.दिवंगत विधायक के परिवार को टिकट ना देना पड़ा भारी
भाजपा की बड़ी हार का कारण दिवंगत विधायक जुगल किशोर बागरी के परिवार के व्यक्ति को टिकट ना दिया जाना भी माना जा रहा है. भाजपा ने यहां दिवंगत विधायक के परिजनों को टिकट न देकर नए चेहरे को मैदान में उतारा था. रैगांव सीट के लिए यह नया चेहरा होने के कारण लोगों को आकर्षित नहीं कर सका और दिवंगत विधायक के परिवार ने भी पार्टी के लिए समर्पित होकर काम नहीं किया.

4.स्थानीय भाजपा सांसद गणेश सिंह से लोगों में जमकर नाराजगी
लंबे समय से भाजपा के सतना से सांसद गणेश सिंह से लोगों की नाराजगी भी भाजपा की हार का बड़ा कारण माना जा रहा है. स्थानीय विकास के मुद्दों और जातिगत राजनीति में हस्तक्षेप के चलते लोगों में स्थानीय सांसद गणेश सिंह के खिलाफ जमकर नाराजगी रही और चुनाव में बीजेपी के खिलाफ मतदान कर लोगों ने अपनी नाराजगी जाहिर की.

5.कांग्रेस नेता अजय सिंह का प्रबंधन बना जीत की वजह
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के प्रभाव वाले इलाके में हुए उप चुनाव की सारी दारोमदार अजय सिंह के कंधों पर थी. अजय सिंह ने स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ चुनाव प्रबंधन में अहम भूमिका निभाई और बीजेपी की हर रणनीति की काट निकालने में कामयाब रहे.

MP By-poll result : भाजपा ने पास किया 2023 के लिए 'लिटमस टेस्ट', कांग्रेस फिर हुई समीक्षा को मजबूर
कांग्रेस के पृथ्वीपुर हारने की वजह

1.भाजपा ने झोंक दी पूरी ताकत
मध्य प्रदेश में हुए 4 उपचुनाव में सत्ताधारी दल बीजेपी ने पृथ्वीपुर सीट (Prithvipur Assembly seat) जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ये सीट पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन से खाली हुई थी. लंबे समय से कांग्रेस के कब्जे की सीट रही पृथ्वीपुर जीतने के लिए मुख्यमंत्री ने बार-बार पृथ्वीपुर के दौरे किए, तो दूसरी तरफ लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव ने पृथ्वीपुर में मानो डेरा डाल लिया. मंत्री भूपेंद्र सिंह भोपाल से पृथ्वीपुर के एक-एक बूथ पर नजर बनाए रहे. कांग्रेस को भरोसा था कि जीत का अंतर भले कम होगा, लेकिन सहानुभूति लहर में पृथ्वीपुर सीट कांग्रेसी जीतेगी, लेकिन बीजेपी ने दमोह की हार से सबक लेते हुए कांग्रेस की भ्रम को तोड़ने का काम किया. हालांकि, सत्ताधारी दल पर प्रशासन और पुलिस के साथ बाहुबल के दुरुपयोग के भी आरोप लगे.

2.मुख्यमंत्री ने की 7 जनसभाएं और विधानसभा में किया रात्रि विश्राम
पृथ्वीपुर सीट जीतने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रचार अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ी. विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने 7 जनसभाएं की. उन्होंने पृथ्वीपुर विधानसभा के खिरार गांव में रात्रि विश्राम कार्य किया और स्थानीय लोगों से मुलाकात की. पार्टी के और जनाधार वाले नेताओं के यहां घर जाकर मेल मुलाकात की. इसका पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं पर काफी असर पड़ा.

3.गोपाल भार्गव ने संभाला मैदान, भूपेंद्र सिंह ने मैनेजमेंट
बुंदेलखंड के कद्दावर नेता और शिवराज सिंह सरकार के वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव निवाड़ी जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं। उपचुनाव के लिए गोपाल भार्गव को बिल्कुल की कमान सौंपी गई थी। सीट जीतने के लिए गोपाल भार्गव पृथ्वीपुर विधानसभा में डेरा डालकर जमे रहे। चुनाव प्रचार समाप्त होने तक गोपाल भार्गव पृथ्वीपुर में ही रहे। दूसरी तरफ शिवराज सिंह के विश्वस्त मंत्री भूपेंद्र सिंह उपचुनाव के प्रभारी बनाए गए थे। उन्होंने भोपाल में बाररूम बनाकर मैनेजमेंट में कोई कसर नहीं छोड़ी।

4.बसपा- सपा का वोट हासिल करने में रहे सफल
पृथ्वीपुर में भाजपा ने बसपा के प्रत्याशी नंदराम कुशवाहा को भाजपा में शामिल करा कर कुशवाहा समाज के बड़े वोट बैंक को अपनी तरफ करने का काम किया. भाजपा ने शिशुपाल यादव को प्रत्याशी बनाया था. शिशुपाल यादव 2018 में सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे. महज 8 हजार वोट से कांग्रेस प्रत्याशी बृजेन्द्र सिंह राठौर से चुनाव हार गए थे. भाजपा तीसरे स्थान पर पहुंच गई थी.

5.कांग्रेस प्रत्याशी नितेंद्र सिंह पड़ गए अकेले,नहीं मिला सहानुभूति का लाभ
कांग्रेस को भरोसा था कि सहानुभूति लहर और राठौर परिवार का गढ़ होने के कारण पृथ्वीपुर सीट जीतने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी. ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रत्याशी नितेंद्र सिंह राठौर के भरोसे छोड़ दी. नितेंद्र सिंह का ये पहला चुनाव था और उन्हें अकेले सत्ताधारी दल से मुकाबला करना पड़ा. भाजपा ने सहानुभूति का लाभ कांग्रेस प्रत्याशी को ना मिल पाए इसके लिए प्रत्याशी के परिवार पर आतंक फैलाने का आरोप लगाया. महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे को भुनाने में कांग्रेस नाकाम रही.

सागर। मध्य प्रदेश में 30 नवंबर को एक लोकसभा और 3 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हुआ था. 2 नवंबर को चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं और इन परिणामों में सत्ताधारी दल भाजपा जहां कांग्रेस के हिस्से की 2 विधानसभा सीटें छीनने में कामयाब हुई है,तो कड़े मुकाबले के बाद अपनी खंडवा लोकसभा सीट को बचाने में भी कामयाब हुई है. हालांकि बीजेपी अपनी रैगांव सीट को बचा नहीं सकी और रैगांव में कांग्रेस को जीत हासिल हुई है.

रैगांव विधानसभा सीट पर क्यों हारी भाजपा ?
सतना जिले की रैगांव विधानसभा (Raigaon Assembly seat) भाजपा के विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन से रिक्त हुई थी. लंबे समय से भाजपा के कब्जे में रही इस सीट को बचाने में भाजपा नाकाम रही है. यहां कांग्रेस की प्रत्याशी कल्पना वर्मा ने भाजपा की प्रत्याशी प्रतिमा बागरी को करीब 12 हजार से ज्यादा मतों से हराया है. चुनाव परिणाम के बाद रैगांव विधानसभा के उलटफेर को लेकर तरह-तरह के आकलन सामने आ रहे हैं, लेकिन हम आपको कुछ ऐसे कारण बताते हैं,जो सत्ताधारी दल बीजेपी की हार का कारण बने.

1.महंगाई और कोरोना मिसमैनेजमेंट बना हार का कारण
रैगांव विधानसभा सीट पर महंगाई का मुद्दा शुरुआत से ही हावी रहा है. दूसरा प्रमुख मुद्दा कोरोना की दूसरी लहर के समय पर लोगों को इलाज में आई दिक्कतों और अव्यवस्थाओं का रहा है. इन दोनों मुद्दों के कारण स्थानीय लोगों में भाजपा सरकार को लेकर जमकर नाराजगी थी. इस मुद्दे को भुनाने में कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी.

2.सड़क,शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे ही विकास के मुद्दे भी रहे प्रमुख
रैगांव सीट लंबे समय से भाजपा के कब्जे में रही है स्थानीय विधायक स्वर्गीय जुगल किशोर बागरी यहां से विधायक रहे हैं. विकास का गुणगान करने वाली भाजपा ने रैगांव सीट पर शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी सुविधाओं के लिए कोई विशेष काम नहीं किया, जिसको लेकर लोगों में जमकर नाराजगी थी.

3.दिवंगत विधायक के परिवार को टिकट ना देना पड़ा भारी
भाजपा की बड़ी हार का कारण दिवंगत विधायक जुगल किशोर बागरी के परिवार के व्यक्ति को टिकट ना दिया जाना भी माना जा रहा है. भाजपा ने यहां दिवंगत विधायक के परिजनों को टिकट न देकर नए चेहरे को मैदान में उतारा था. रैगांव सीट के लिए यह नया चेहरा होने के कारण लोगों को आकर्षित नहीं कर सका और दिवंगत विधायक के परिवार ने भी पार्टी के लिए समर्पित होकर काम नहीं किया.

4.स्थानीय भाजपा सांसद गणेश सिंह से लोगों में जमकर नाराजगी
लंबे समय से भाजपा के सतना से सांसद गणेश सिंह से लोगों की नाराजगी भी भाजपा की हार का बड़ा कारण माना जा रहा है. स्थानीय विकास के मुद्दों और जातिगत राजनीति में हस्तक्षेप के चलते लोगों में स्थानीय सांसद गणेश सिंह के खिलाफ जमकर नाराजगी रही और चुनाव में बीजेपी के खिलाफ मतदान कर लोगों ने अपनी नाराजगी जाहिर की.

5.कांग्रेस नेता अजय सिंह का प्रबंधन बना जीत की वजह
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के प्रभाव वाले इलाके में हुए उप चुनाव की सारी दारोमदार अजय सिंह के कंधों पर थी. अजय सिंह ने स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ चुनाव प्रबंधन में अहम भूमिका निभाई और बीजेपी की हर रणनीति की काट निकालने में कामयाब रहे.

MP By-poll result : भाजपा ने पास किया 2023 के लिए 'लिटमस टेस्ट', कांग्रेस फिर हुई समीक्षा को मजबूर
कांग्रेस के पृथ्वीपुर हारने की वजह

1.भाजपा ने झोंक दी पूरी ताकत
मध्य प्रदेश में हुए 4 उपचुनाव में सत्ताधारी दल बीजेपी ने पृथ्वीपुर सीट (Prithvipur Assembly seat) जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. ये सीट पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन से खाली हुई थी. लंबे समय से कांग्रेस के कब्जे की सीट रही पृथ्वीपुर जीतने के लिए मुख्यमंत्री ने बार-बार पृथ्वीपुर के दौरे किए, तो दूसरी तरफ लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव ने पृथ्वीपुर में मानो डेरा डाल लिया. मंत्री भूपेंद्र सिंह भोपाल से पृथ्वीपुर के एक-एक बूथ पर नजर बनाए रहे. कांग्रेस को भरोसा था कि जीत का अंतर भले कम होगा, लेकिन सहानुभूति लहर में पृथ्वीपुर सीट कांग्रेसी जीतेगी, लेकिन बीजेपी ने दमोह की हार से सबक लेते हुए कांग्रेस की भ्रम को तोड़ने का काम किया. हालांकि, सत्ताधारी दल पर प्रशासन और पुलिस के साथ बाहुबल के दुरुपयोग के भी आरोप लगे.

2.मुख्यमंत्री ने की 7 जनसभाएं और विधानसभा में किया रात्रि विश्राम
पृथ्वीपुर सीट जीतने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रचार अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ी. विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने 7 जनसभाएं की. उन्होंने पृथ्वीपुर विधानसभा के खिरार गांव में रात्रि विश्राम कार्य किया और स्थानीय लोगों से मुलाकात की. पार्टी के और जनाधार वाले नेताओं के यहां घर जाकर मेल मुलाकात की. इसका पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं पर काफी असर पड़ा.

3.गोपाल भार्गव ने संभाला मैदान, भूपेंद्र सिंह ने मैनेजमेंट
बुंदेलखंड के कद्दावर नेता और शिवराज सिंह सरकार के वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव निवाड़ी जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं। उपचुनाव के लिए गोपाल भार्गव को बिल्कुल की कमान सौंपी गई थी। सीट जीतने के लिए गोपाल भार्गव पृथ्वीपुर विधानसभा में डेरा डालकर जमे रहे। चुनाव प्रचार समाप्त होने तक गोपाल भार्गव पृथ्वीपुर में ही रहे। दूसरी तरफ शिवराज सिंह के विश्वस्त मंत्री भूपेंद्र सिंह उपचुनाव के प्रभारी बनाए गए थे। उन्होंने भोपाल में बाररूम बनाकर मैनेजमेंट में कोई कसर नहीं छोड़ी।

4.बसपा- सपा का वोट हासिल करने में रहे सफल
पृथ्वीपुर में भाजपा ने बसपा के प्रत्याशी नंदराम कुशवाहा को भाजपा में शामिल करा कर कुशवाहा समाज के बड़े वोट बैंक को अपनी तरफ करने का काम किया. भाजपा ने शिशुपाल यादव को प्रत्याशी बनाया था. शिशुपाल यादव 2018 में सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे. महज 8 हजार वोट से कांग्रेस प्रत्याशी बृजेन्द्र सिंह राठौर से चुनाव हार गए थे. भाजपा तीसरे स्थान पर पहुंच गई थी.

5.कांग्रेस प्रत्याशी नितेंद्र सिंह पड़ गए अकेले,नहीं मिला सहानुभूति का लाभ
कांग्रेस को भरोसा था कि सहानुभूति लहर और राठौर परिवार का गढ़ होने के कारण पृथ्वीपुर सीट जीतने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी. ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रत्याशी नितेंद्र सिंह राठौर के भरोसे छोड़ दी. नितेंद्र सिंह का ये पहला चुनाव था और उन्हें अकेले सत्ताधारी दल से मुकाबला करना पड़ा. भाजपा ने सहानुभूति का लाभ कांग्रेस प्रत्याशी को ना मिल पाए इसके लिए प्रत्याशी के परिवार पर आतंक फैलाने का आरोप लगाया. महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे को भुनाने में कांग्रेस नाकाम रही.

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