सागर। नाग पंचमी का त्यौहार हिंदू धर्म का हर वर्ग आस्था के साथ मनाता है. लेकिन पान उत्पादक चौरसिया समाज नाग पंचमी पर विशेष रूप से पूजा अर्चना करते हैं. चूंकि ये समाज नाग देवता को अपना इष्ट मानता है. नाग पंचमी के दिन चौरसिया समाज पान के बरोजों (नर्सरी) में विशेष रूप से पूजा-अर्चना करता है. चौरसिया समाज की मान्यता है कि, भगवान राम के विवाह के समय नागबेल पाताल लोक से पृथ्वी पर आई थी और अशोक वाटिका में भगवान राम ने नागबेल की ओट से चोर नजरों से सिया को देखा था. तभी से चौरसिया समाज नागबेल को अपना इष्ट मानकर नागबेल और नाग देवता की पूजा करता आ रहा है.
बुंदेलखंड में बड़े पैमाने पर होती है पान की खेती: बुंदेलखंड में पिछले 400 सालों से पान की खेती का काम हो रहा है. खासकर सागर, छतरपुर और पन्ना जिले के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में भी पान की खेती बड़े पैमाने पर होती है. पान की खेती चौरसिया समाज के लोग करते हैं. यह खेती विशेष रूप से की जाती है. पान की खेती के लिए चौरसिया समाज बांस और घास फूस का एक बाड़ा तैयार करता है और फिर इसमें पान की बेल उगाई जाती है. खेती के साथ-साथ चौरसिया समाज पान की बेल को नागदेव मानता है. नाग पंचमी के दिन चौरसिया समाज विशेष रूप से अपना सब कुछ कामकाज बंद करके पूजा करता है.
कैसे होती है नाग पंचमी की पूजा: सागर जिले के छपरा में पान की खेती करने वाले चौरसिया किसान लखन लाल और हरगोविंद बताते हैं कि, नाग पंचमी के दिन हम लोग विशेष पूजा अर्चना करते हैं. दिन भर हम लोग अपना कामकाज बंद करते हैं और देर रात को पान के बरेजों (नर्सरी) में पूजा अर्चना करते हैं. बुजुर्गों के बताए अनुसार हम लोग पान के बरेजों में जाते हैं और सबसे पहले दरवाजा खोलते हैं. उसके बाद नियम अनुसार नागबेल की मंत्रों के द्वारा पूजा की जाती है. बुजुर्गों के बताए अनुसार पूजा के लिए जैसे ही दरवाजा खोला जाता है, पूजा के बाद वैसे ही दरवाजे को खुला छोड़ देते हैं. क्योंकि मान्यता होती है कि, नाग पंचमी के दिन नाग देवता नागबेल के पास आते हैं. फिर हम लोग घर पर जाकर पूजा अर्चना करते हैं और उत्सव मनाते हैं.
भगवान राम के विवाह से जुड़ी है नागबेल की पूजा अर्चना की कहानी: शास्त्रों में नाग पंचमी और चौरसिया समाज के विशेष पूजन का कोई खास उल्लेख नहीं मिलता है. लेकिन चौरसिया समाज के बुजुर्ग हरगोविंद चौरसिया बताते हैं कि, नागबेल भगवान राम के विवाह के समय पाताल से अवतरित हुई थी. तब कई समाज को नागबेल के रखरखाव की जिम्मेदारी सौंपी गई. लेकिन कोई सफल नहीं हुआ, तो अंत में भगवान राम ने चौरसिया समाज बनाया और उसको नागबेल की जिम्मेदारी सौंपी गई. तब से चौरसिया समाज नागबेल और नागदेव की सेवा करता आ रहा है.
क्या कहते हैं जानकार: ज्योतिषाचार्य पंडित श्याम मनोहर चतुर्वेदी बताते हैं कि, 'चौरसिया समाज और नागबेल के संबंध को लेकर शास्त्रों में तो कोई उल्लेख नहीं मिलता है. लेकिन एक मान्यता है कि, भगवान राम ने सबसे पहले माता सीता को अशोक वाटिका में देखा था. भगवान राम ने अशोक वाटिका में नाग बेल की ओट में चोर नजरों से सिया को देखा था. इसी घटना से नागबेल की सेवा करने वाला समाज अपने आप को चौरसिया समाज बोलने लगा और नागबेल और नाग देवता को अपना इष्ट मानकर नाग पंचमी के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना करने लगा.