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सिंगल पेरेंट होकर भी निभाईं सारी जिम्मेदारियां, बेटी को बनाया स्टेट टॉपर, जानिए कौन हैं इशिता दुबे की प्रेरणा

सागर की एक ऐसी मां जिसने अकेले सिंगल पेरेंट्स होकर भी सारी जिम्मेदारियों को निभाया. इसके बाद बेटी ने मां को कभी न भूलने वाली तोहफा दिया और एमपी बोर्ड 12 वीं की परीक्षा 2022 में स्टेट टॉप करके मां के संघर्ष को सफल बना दिया. पढ़िए इशिता दुबे की पूरी कहानी, (mp topper ishita dubey) (sakshi dubey single parent story)

sakshi dubey single parent story
साक्षी दुबे सिंगल पेरेंट स्टोरी
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Published : May 4, 2022, 10:05 PM IST

सागर। आज के सामाजिक परिवेश में महिला होना और अकेले होना काफी चुनौतीभरा होता है. महिला जब शादीशुदा हो, लेकिन उसका पति साथ ना हो, तो ये चुनौतियां पहाड़ जैसी बन जाती हैं, लेकिन इरादे मजबूत हों, तो ऐसी मुश्किलें और चुनौतियां कुछ कर गुजरने का जज्बा भी जगाती हैं. कुछ ऐसी ही चुनौतियों की परवाह न करते हुए एक बेटी और एक मां दोनों अपने अपने लक्ष्य पर फोकस कर रहीं थीं. इसके बाद खुशी का वो दौर आया कि दोनों के संघर्ष ने सफलता के नए मुकाम गढ़ दिए. (sakshi dubey single parent story)

इशिता दुबे की मां साक्षी दुबे

सफलता के पीछे मेरी मां और उनका संघर्ष: सागर की इशिता दुबे ने 12वीं की परीक्षा में आर्ट्स में स्टेट टॉप किया है. जिसका श्रेय वे अपनी मां साक्षी दुबे को देती हैं. इशिता की मां साक्षी दुबे सिंगल पेरेंट्स के तौर पर अपनी दो बेटियों की परवरिश करती हैं. उनके पिता बहुत पहले ही परिवार को छोड़कर चले गए थे. इशिता अपनी सफलता के पीछे अपनी मां के योगदान को मानती हैं. इशिता की मां का कहना है कि मेरे सिंगल पेरेंट्स के तौर पर संघर्ष का परिणाम आज मुझे मेरी बेटी ने ब्याज सहित लौटा दिया है. (mp topper ishita dubey)

एक साथ निभाई दो जिम्मेदारियां: इशिता दुबे रेहली (सागर) की शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला की छात्रा है. इशिता ने 500 में से 480 अंक हासिल किए हैं. अगर इशिता के परिवार की बात करें तो इशिता के माता-पिता साथ नहीं रहते, लेकिन दोनों के बीच तलाक भी नहीं हुआ है. इशिता की मां साक्षी दुबे भी टीचर हैं. साक्षी दुबे अपनी दो बेटियों का पालन पोषण करने के साथ-साथ शिक्षिका के तौर पर भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं. हिंदी और अंग्रेजी विषय की टीचर, इशिता की मां ने अपनी बेटियों की पढ़ाई के लिए दिन-रात संघर्ष किया है. परिवार की जिम्मेदारी के साथ स्कूल में पढ़ाने की जिम्मेदारी के बीच सामंजस्य बनाकर दिन रात मेहनत करने वाली साक्षी की बेटी जब एमपी टॉपर आईँ तो तो वे खुद भी मानने लगी हैं कि मेरे लिए सिंगल पेरेंट होना वरदान साबित हो गया. (sagar single parent story)

मां ने भी महसूस नहीं होने दी परिवार की कमी : इशिता अपनी सफलता पर कहती हैं कि हमारी मां ने अकेले ही हमारी परवरिश करते हुए हमें कभी परिवार की कमी महसूस नहीं होने दी है. वह सिंगल पेरेंट जरूर हैं, लेकिन वह माता-पिता और परिवार के हर सदस्य का रोल अदा करती हैं. सिंगल पेरेंट्स होते हुए सारी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाती हैं. हर काम में हम लोगों को बहुत आगे करती हैं. अगर आप मेरी सफलता की बात करें, तो हर फिल्म का एक हीरो होता है, और हर हीरो के लिए एक कहानी होती है, लेकिन जो लोग पर्दे के पीछे रहते हैं उन्हें कम ही लोग जान पाते हैं. इशिता कहती हैं कि मेरी सफलता के पर्दे के पीछे की असली हीरो मेरी मां हैं, क्योंकि उन्होंने मुझे बहुत ज्यादा मोटिवेट किया है.

सिंगल पेरेंट फिर भी मिले अच्छे संस्कार: इशिता ने अपनी मां साक्षी दुबे के बारे में बताया कि वे जो हमें मोटिवेट करती हैं, अगर उसपर हम अमल कर कुछ कर गुजरते हैं, तो वे बेहद खुश होती हैं, लेकिन अगर नहीं कर पाते हैं तो वह कहती हैं कि तुम यह कर सकती हो और कर लोगी. उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि ये मत करो और वो मत करो. जैसे समाज में ज्यादातर घरों में आज भी लड़कियों पर बंदिशें हैं, लेकिन मेरी मां ने हमारे ऊपर कभी कोई रोक टोक नहीं लगाई. उन्होंने सिंगल पेरेंट्स होते हुए भी हमें अच्छे संस्कार दिए. जो कुछ भी आज हमें हासिल हुआ है उसके पीछे हमारी मां ही हैं.

सिंगल पेरेंट की मेहनत रंग लाई: साक्षी दुबे की बेटी ने बताया कि वे बेहद मेहनत करती हैं. हमें बस पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा. हम इतने बड़े हो गए लेकिन फिर भी हमने घर का कोई काम नहीं किया. वह सुबह उठती हैं, पहले घर का काम करती हैं, उसी के साथ ही वे पढ़ाती भी हैं. इस बीच हमें भी समय देती हैं. इतनी सारी जिम्मेदारियों के बीच वे हमारे साथ भी अच्छे से टाइम बिताती हैं. वे हिंदी और अंग्रेजी में बहुत अच्छी हैं, और यही उनका विषय भी है. वे हम लोगों को कई चीजें समझाती भी है, इसके साथ-साथ पढ़ाती भी हैं. मेरी मां घर के सारे काम करने के बाद वह समय से अपने स्कूल भी जाती हैं. जितने अच्छे से वह मां होने की भूमिका अदा करती हैं, उतने अच्छे से ही वह एक टीचर का रोल भी अदा करती हैं.

पति के अलावा सभी से मिला सपोर्ट: साक्षी दुबे का कहना है कि हमने कभी अपनी बेटियों को महसूस होने नहीं दिया कि मैं सिंगल पेरेंट हूं. मुझे अगर पेरेंट्स मीटिंग में जाना होता है, तो मैं समय निकाल कर अपनी नौकरी मैनेज कर वहां भी जाती हूं, और इसके साथ ही अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हूं. बच्चों को मैंने हर वो चीज देने की कोशिश की, जो एक परिवार दे सकता है. मेरे पति ने मुझे कभी सपोर्ट नहीं किया. लेकिन मेरे ससुराल वाले, मायके वाले और जान पहचान वालों ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया है. मेरा हर जगह साथ दिया है.

MP Board Result 2022: सेल्फ स्टडी से आर्ट्स में टॉपर बनीं इशिता दुबे, किसान की बेटी अंशिका भी टॉप 5 में

सिंगल पेरेंट होना वरदान साबित हुआ: साक्षी दुबे ने बताया कि हर जगह से मुझे सपोर्ट तो मिला लेकिन मुझे सभी चीजों के लिए मेहनत खुद करनी पड़ी. मैं जिस तरह से मैनेज कर सकती थी मैंने किया. आज सारी मेहनत का रिटर्न मेरी बेटी ने मुझे इंटरेस्ट के साथ लौटा दिया है. इस वजह से मैं सिंगल पेरेंट होना भूल गई. उन्होंने आगे कहा अगर मन में आपके हौसला है, तो सब कुछ अपने आप हो जाता है. सारे रास्ते खुद ब खुद खुलते चले जाते हैं. सिंगल पेरेंट्स होना कुछ नहीं होता है. अकेले होकर जो मैं आज कर पाई शायद मैं कभी ये अपने पति के साथ होकर नहीं कर पाती. उनका मानना था कि 18 साल के बाद लड़कियों की शादी कर देनी चाहिए. अगर आज मैं उनके साथ होती तो मैं अपनी बच्चियों को काबिल नहीं बना पाती. इसलिए मेरे लिए सिंगल पेरेंट होना वरदान साबित हो गया.

सागर। आज के सामाजिक परिवेश में महिला होना और अकेले होना काफी चुनौतीभरा होता है. महिला जब शादीशुदा हो, लेकिन उसका पति साथ ना हो, तो ये चुनौतियां पहाड़ जैसी बन जाती हैं, लेकिन इरादे मजबूत हों, तो ऐसी मुश्किलें और चुनौतियां कुछ कर गुजरने का जज्बा भी जगाती हैं. कुछ ऐसी ही चुनौतियों की परवाह न करते हुए एक बेटी और एक मां दोनों अपने अपने लक्ष्य पर फोकस कर रहीं थीं. इसके बाद खुशी का वो दौर आया कि दोनों के संघर्ष ने सफलता के नए मुकाम गढ़ दिए. (sakshi dubey single parent story)

इशिता दुबे की मां साक्षी दुबे

सफलता के पीछे मेरी मां और उनका संघर्ष: सागर की इशिता दुबे ने 12वीं की परीक्षा में आर्ट्स में स्टेट टॉप किया है. जिसका श्रेय वे अपनी मां साक्षी दुबे को देती हैं. इशिता की मां साक्षी दुबे सिंगल पेरेंट्स के तौर पर अपनी दो बेटियों की परवरिश करती हैं. उनके पिता बहुत पहले ही परिवार को छोड़कर चले गए थे. इशिता अपनी सफलता के पीछे अपनी मां के योगदान को मानती हैं. इशिता की मां का कहना है कि मेरे सिंगल पेरेंट्स के तौर पर संघर्ष का परिणाम आज मुझे मेरी बेटी ने ब्याज सहित लौटा दिया है. (mp topper ishita dubey)

एक साथ निभाई दो जिम्मेदारियां: इशिता दुबे रेहली (सागर) की शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला की छात्रा है. इशिता ने 500 में से 480 अंक हासिल किए हैं. अगर इशिता के परिवार की बात करें तो इशिता के माता-पिता साथ नहीं रहते, लेकिन दोनों के बीच तलाक भी नहीं हुआ है. इशिता की मां साक्षी दुबे भी टीचर हैं. साक्षी दुबे अपनी दो बेटियों का पालन पोषण करने के साथ-साथ शिक्षिका के तौर पर भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं. हिंदी और अंग्रेजी विषय की टीचर, इशिता की मां ने अपनी बेटियों की पढ़ाई के लिए दिन-रात संघर्ष किया है. परिवार की जिम्मेदारी के साथ स्कूल में पढ़ाने की जिम्मेदारी के बीच सामंजस्य बनाकर दिन रात मेहनत करने वाली साक्षी की बेटी जब एमपी टॉपर आईँ तो तो वे खुद भी मानने लगी हैं कि मेरे लिए सिंगल पेरेंट होना वरदान साबित हो गया. (sagar single parent story)

मां ने भी महसूस नहीं होने दी परिवार की कमी : इशिता अपनी सफलता पर कहती हैं कि हमारी मां ने अकेले ही हमारी परवरिश करते हुए हमें कभी परिवार की कमी महसूस नहीं होने दी है. वह सिंगल पेरेंट जरूर हैं, लेकिन वह माता-पिता और परिवार के हर सदस्य का रोल अदा करती हैं. सिंगल पेरेंट्स होते हुए सारी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाती हैं. हर काम में हम लोगों को बहुत आगे करती हैं. अगर आप मेरी सफलता की बात करें, तो हर फिल्म का एक हीरो होता है, और हर हीरो के लिए एक कहानी होती है, लेकिन जो लोग पर्दे के पीछे रहते हैं उन्हें कम ही लोग जान पाते हैं. इशिता कहती हैं कि मेरी सफलता के पर्दे के पीछे की असली हीरो मेरी मां हैं, क्योंकि उन्होंने मुझे बहुत ज्यादा मोटिवेट किया है.

सिंगल पेरेंट फिर भी मिले अच्छे संस्कार: इशिता ने अपनी मां साक्षी दुबे के बारे में बताया कि वे जो हमें मोटिवेट करती हैं, अगर उसपर हम अमल कर कुछ कर गुजरते हैं, तो वे बेहद खुश होती हैं, लेकिन अगर नहीं कर पाते हैं तो वह कहती हैं कि तुम यह कर सकती हो और कर लोगी. उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि ये मत करो और वो मत करो. जैसे समाज में ज्यादातर घरों में आज भी लड़कियों पर बंदिशें हैं, लेकिन मेरी मां ने हमारे ऊपर कभी कोई रोक टोक नहीं लगाई. उन्होंने सिंगल पेरेंट्स होते हुए भी हमें अच्छे संस्कार दिए. जो कुछ भी आज हमें हासिल हुआ है उसके पीछे हमारी मां ही हैं.

सिंगल पेरेंट की मेहनत रंग लाई: साक्षी दुबे की बेटी ने बताया कि वे बेहद मेहनत करती हैं. हमें बस पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा. हम इतने बड़े हो गए लेकिन फिर भी हमने घर का कोई काम नहीं किया. वह सुबह उठती हैं, पहले घर का काम करती हैं, उसी के साथ ही वे पढ़ाती भी हैं. इस बीच हमें भी समय देती हैं. इतनी सारी जिम्मेदारियों के बीच वे हमारे साथ भी अच्छे से टाइम बिताती हैं. वे हिंदी और अंग्रेजी में बहुत अच्छी हैं, और यही उनका विषय भी है. वे हम लोगों को कई चीजें समझाती भी है, इसके साथ-साथ पढ़ाती भी हैं. मेरी मां घर के सारे काम करने के बाद वह समय से अपने स्कूल भी जाती हैं. जितने अच्छे से वह मां होने की भूमिका अदा करती हैं, उतने अच्छे से ही वह एक टीचर का रोल भी अदा करती हैं.

पति के अलावा सभी से मिला सपोर्ट: साक्षी दुबे का कहना है कि हमने कभी अपनी बेटियों को महसूस होने नहीं दिया कि मैं सिंगल पेरेंट हूं. मुझे अगर पेरेंट्स मीटिंग में जाना होता है, तो मैं समय निकाल कर अपनी नौकरी मैनेज कर वहां भी जाती हूं, और इसके साथ ही अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हूं. बच्चों को मैंने हर वो चीज देने की कोशिश की, जो एक परिवार दे सकता है. मेरे पति ने मुझे कभी सपोर्ट नहीं किया. लेकिन मेरे ससुराल वाले, मायके वाले और जान पहचान वालों ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया है. मेरा हर जगह साथ दिया है.

MP Board Result 2022: सेल्फ स्टडी से आर्ट्स में टॉपर बनीं इशिता दुबे, किसान की बेटी अंशिका भी टॉप 5 में

सिंगल पेरेंट होना वरदान साबित हुआ: साक्षी दुबे ने बताया कि हर जगह से मुझे सपोर्ट तो मिला लेकिन मुझे सभी चीजों के लिए मेहनत खुद करनी पड़ी. मैं जिस तरह से मैनेज कर सकती थी मैंने किया. आज सारी मेहनत का रिटर्न मेरी बेटी ने मुझे इंटरेस्ट के साथ लौटा दिया है. इस वजह से मैं सिंगल पेरेंट होना भूल गई. उन्होंने आगे कहा अगर मन में आपके हौसला है, तो सब कुछ अपने आप हो जाता है. सारे रास्ते खुद ब खुद खुलते चले जाते हैं. सिंगल पेरेंट्स होना कुछ नहीं होता है. अकेले होकर जो मैं आज कर पाई शायद मैं कभी ये अपने पति के साथ होकर नहीं कर पाती. उनका मानना था कि 18 साल के बाद लड़कियों की शादी कर देनी चाहिए. अगर आज मैं उनके साथ होती तो मैं अपनी बच्चियों को काबिल नहीं बना पाती. इसलिए मेरे लिए सिंगल पेरेंट होना वरदान साबित हो गया.

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