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कुपोषण से बौने हो रहे बच्चे! IIPS की रिपोर्ट में खुलासा, अमीर परिवारों के बच्चों में भी Malnutrition की शिकायतें बढ़ीं

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉप्युलेशन साइंसेज (IIPS) ने कुपोषण को लेकर कुछ आंकड़े पेश किए हैं. जिसके तहत पिछले कुछ सालों में कुपोषण के कारण बच्चों में होने वाला दुबलापन कम हुआ है, लेकिन बच्चे तेजी से बौनेपन का शिकार हो रहे हैं. पढ़िए ये कास रिपोर्ट.

कुपोषण से बौने हो रहे बच्चे!
कुपोषण से बौने हो रहे बच्चे!
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Published : Oct 20, 2021, 2:51 PM IST

सागर। कुपोषण को लेकर शोध में सामने आया है कि पिछले कुछ सालों में कुपोषण के कारण बच्चों में होने वाला दुबलापन कम हुआ है, लेकिन बच्चे तेजी से बौनेपन का शिकार हो रहे हैं. 1992-93 में शुरू हुए फैमिली हेल्थ सर्वे में यह चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉप्युलेशन साइंसेज (IIPS) पिछले 28 साल से कुपोषण पर शोध कर रहा है. वहीं हैरान करने वाली यह है कि कुपोषण का शिकार सिर्फ गरीब परिवार के बच्चे नहीं हो रहे हैं, बल्कि समृद्ध परिवार के बच्चे भी इसकी जद में आ रहे हैं.

IIPS कर रही नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे

कुपोषण को लेकर मुंबई में स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉप्युलेशन साइंसेज ने 1992-93 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की शुरुआत की थी. दरअसल कुपोषण से संबंधित सही आंकड़े ना होने के कारण कुपोषण को लेकर चलाए जा रहे कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू करने में दिक्कत आ रही थी. सरकार के पास सिर्फ आंगनबाड़ी ही ऐसा जरिया था, जिसकी सहायता से पीड़ित बच्चों को पका हुआ भोजन और रेडी-टू-ईट भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद भी समस्याएं सामने थी. जो पोषण आहार के अलावा दूसरी तरह की समस्याएं थी.

इन परिस्थितियों में परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, रहन-सहन का स्तर और अन्य चीजों का अध्ययन किया गया. क्योंकि पोषण और कुपोषण पर इन परिस्थितियों का गंभीर परिणाम पड़ता है, इसके लिए सही आंकड़े मिल पाना चुनौती थी. इसलिए IIPS मुंबई द्वारा 1992-93 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की शुरुआत की गई.

IIPS की रिपोर्ट में खुलासा

अलग-अलग अंतराल में हुआ सर्वे

ये सर्वे अलग-अलग अंतराल में किए गए हैं. पिछला नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 में शुरू हुआ था. लेकिन कोरोना के कारण कुछ राज्यों में सर्वे नहीं हो पाया था. अब सर्वे का काम समाप्त हो गया है. जिसके आधार पर मिले आंकड़ों से पोषण की मौजूदा स्थिति को आसानी से समझा जा सकेगा. फिलहाल केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पोषण अभियान चलाए जा रहे हैं. लेकिन इसको पूरी तरह से लागू करना और इसके अपेक्षित परिणाम मिलने में 2-4 साल लगने की उम्मीद है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से निकले आंकड़ों के आधार पर पोषण-कुपोषण और सरकार के पोषण अभियान की सफलता-असफलता का अध्ययन आसानी से हो सकेगा.

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बच्चों के खानपान से खिलवाड़

सागर विश्वविद्यालय में स्थित मप्र और छत्तीसगढ़ की जनसंख्या अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ निखिलेश परचुरे ने कई जानकारी दी. उन्होंने बताया कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में मुख्य तौर पर देखने को मिला है कि बच्चों को संतुलित भोजन उपलब्ध नहीं होता है और अगर होता है, तो बच्चों को रुचिकर नहीं लगता है. पोषक तत्व के रूप में चावल, दूध, पनीर और दाल जैसी चीजें तो होती हैं. लेकिन 5 साल के बच्चों को उनकी रूचि का भोजन कैसे तैयार किया जाए. इसको लेकर परिवारों में जागरूकता का अभाव है.

निखिलेश परचुरे बतातें हैं कि अकसर बच्चों के भोजन को लेकर लापरवाही बरती जाती है या फिर बच्चे जो जिद करते हैं, उन्हें वह खाने दिया जाता है. बच्चे दिन भर बिस्किट और कुरकुरे खाते रहते हैं. 5 साल की उम्र तक के कई बच्चे ऐसे हैं, जो रोजाना एक ग्लास दूध भी नहीं पीते हैं. अगर बच्चे दूध नहीं पीएंगे, हरी सब्जियां और दाले नहीं खाएंगे, तो यह स्थिति बनती है कि पेट तो भर जाता है, लेकिन पोषण नहीं मिल पाता है. इसी वजह से साल दर साल आंकड़े इकट्ठा कर अध्ययन किया जा रहा है.

बच्चों के खानपान से खिलवाड़

बच्चों को बौना कर रहा कुपोषण

विशेषज्ञ निखिलेश परचुरे ने कहा, 'बच्चों में बौनेपन की स्थिति बढ़ रही है. अगर बच्चों के लक्षण देखेंगे, तो दुबले-पतले बच्चे अब इतनी संख्या में नहीं मिलेंगे, जो 20-25 साल पहले मिलते थे. लेकिन अब बच्चों में बौनापन बढ़ रहा है. ये स्थिति ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में है. बच्चों में कुपोषण के कारण उम्र के हिसाब से ऊंचाई कम होती जा रही है. खास बात ये है कि संपन्न और पिछड़े तबके के परिवारों में स्थितियां एक जैसी हैं.

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पिछड़ी बस्तियों में ध्यान देता है प्रशासन

इन परिस्थितियों को लेकर अभिभावक मोहन अग्रवाल कहते हैं कि कुपोषण को लेकर यह मान लिया गया है कि यह सिर्फ संपन्नता और विपन्नता से जुड़ा हुआ है. सरकार और प्रशासन सिर्फ पिछड़े और गरीबी वाले इलाकों में कुपोषण से संबंधित कार्यक्रम चलाता है. जबकि संपन्न इलाकों में भी कुपोषण को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए. आमतौर पर संभ्रांत परिवार के बच्चों में भी कुपोषण की समस्या देखने को मिल रही है. क्योंकि ऐसे परिवारों के बच्चे जंक फूड ज्यादा खाते हैं और उसकी वजह से कुपोषण बढ़ रहा है. प्रशासन को चाहिए कि कुपोषण की समस्या को लेकर संभ्रांत परिवारों पर भी नजर रखें और उन्हें जागरूक करें.

रुचिकर और स्वादिष्ट भोजन देना जरूरी

बच्चों को रुचिकर और स्वादिष्ट भोजन देना जरूरी

डॉ.उमेश पटेल कहते हैं कि कुपोषण का संबंध अमीरी और गरीबी से नहीं है, बल्कि कुपोषण का सीधा मतलब यह है कि भोजन में पोषक तत्वों की कमी या अधिकता से है. हमारे मध्यमवर्गीय परिवारों में आमतौर पर बच्चों के लिए संतुलित भोजन देने पर ध्यान नहीं दिया जाता है. बच्चों का पेट भर जाए इस पर भी ध्यान दिया जाता है. इसके अलावा जंक फूड जैसी हैबिट भी बच्चों को कुपोषण का शिकार बना रही है. जरूरी है कि बच्चों को संतुलित भोजन दिया जाए, ताकि उन्हें हर तरह के पोषक तत्व मिल सके.

आमतौर पर कुपोषण के कारण बच्चों का वजन बढ़ने और घटने जैसी समस्या देखने को मिलती है. बच्चों की लंबाई कम होने की समस्या सामने आ रही है, और बच्चों की मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ रहा है.

सागर। कुपोषण को लेकर शोध में सामने आया है कि पिछले कुछ सालों में कुपोषण के कारण बच्चों में होने वाला दुबलापन कम हुआ है, लेकिन बच्चे तेजी से बौनेपन का शिकार हो रहे हैं. 1992-93 में शुरू हुए फैमिली हेल्थ सर्वे में यह चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉप्युलेशन साइंसेज (IIPS) पिछले 28 साल से कुपोषण पर शोध कर रहा है. वहीं हैरान करने वाली यह है कि कुपोषण का शिकार सिर्फ गरीब परिवार के बच्चे नहीं हो रहे हैं, बल्कि समृद्ध परिवार के बच्चे भी इसकी जद में आ रहे हैं.

IIPS कर रही नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे

कुपोषण को लेकर मुंबई में स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉप्युलेशन साइंसेज ने 1992-93 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की शुरुआत की थी. दरअसल कुपोषण से संबंधित सही आंकड़े ना होने के कारण कुपोषण को लेकर चलाए जा रहे कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू करने में दिक्कत आ रही थी. सरकार के पास सिर्फ आंगनबाड़ी ही ऐसा जरिया था, जिसकी सहायता से पीड़ित बच्चों को पका हुआ भोजन और रेडी-टू-ईट भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद भी समस्याएं सामने थी. जो पोषण आहार के अलावा दूसरी तरह की समस्याएं थी.

इन परिस्थितियों में परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, रहन-सहन का स्तर और अन्य चीजों का अध्ययन किया गया. क्योंकि पोषण और कुपोषण पर इन परिस्थितियों का गंभीर परिणाम पड़ता है, इसके लिए सही आंकड़े मिल पाना चुनौती थी. इसलिए IIPS मुंबई द्वारा 1992-93 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की शुरुआत की गई.

IIPS की रिपोर्ट में खुलासा

अलग-अलग अंतराल में हुआ सर्वे

ये सर्वे अलग-अलग अंतराल में किए गए हैं. पिछला नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 में शुरू हुआ था. लेकिन कोरोना के कारण कुछ राज्यों में सर्वे नहीं हो पाया था. अब सर्वे का काम समाप्त हो गया है. जिसके आधार पर मिले आंकड़ों से पोषण की मौजूदा स्थिति को आसानी से समझा जा सकेगा. फिलहाल केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पोषण अभियान चलाए जा रहे हैं. लेकिन इसको पूरी तरह से लागू करना और इसके अपेक्षित परिणाम मिलने में 2-4 साल लगने की उम्मीद है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से निकले आंकड़ों के आधार पर पोषण-कुपोषण और सरकार के पोषण अभियान की सफलता-असफलता का अध्ययन आसानी से हो सकेगा.

ईद-मिलाद-उन-नबी पर जुलूस निकालने को लेकर बवाल! पुलिस ने लाठीचार्ज कर दंगाईयों को खदेड़ा

बच्चों के खानपान से खिलवाड़

सागर विश्वविद्यालय में स्थित मप्र और छत्तीसगढ़ की जनसंख्या अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ निखिलेश परचुरे ने कई जानकारी दी. उन्होंने बताया कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में मुख्य तौर पर देखने को मिला है कि बच्चों को संतुलित भोजन उपलब्ध नहीं होता है और अगर होता है, तो बच्चों को रुचिकर नहीं लगता है. पोषक तत्व के रूप में चावल, दूध, पनीर और दाल जैसी चीजें तो होती हैं. लेकिन 5 साल के बच्चों को उनकी रूचि का भोजन कैसे तैयार किया जाए. इसको लेकर परिवारों में जागरूकता का अभाव है.

निखिलेश परचुरे बतातें हैं कि अकसर बच्चों के भोजन को लेकर लापरवाही बरती जाती है या फिर बच्चे जो जिद करते हैं, उन्हें वह खाने दिया जाता है. बच्चे दिन भर बिस्किट और कुरकुरे खाते रहते हैं. 5 साल की उम्र तक के कई बच्चे ऐसे हैं, जो रोजाना एक ग्लास दूध भी नहीं पीते हैं. अगर बच्चे दूध नहीं पीएंगे, हरी सब्जियां और दाले नहीं खाएंगे, तो यह स्थिति बनती है कि पेट तो भर जाता है, लेकिन पोषण नहीं मिल पाता है. इसी वजह से साल दर साल आंकड़े इकट्ठा कर अध्ययन किया जा रहा है.

बच्चों के खानपान से खिलवाड़

बच्चों को बौना कर रहा कुपोषण

विशेषज्ञ निखिलेश परचुरे ने कहा, 'बच्चों में बौनेपन की स्थिति बढ़ रही है. अगर बच्चों के लक्षण देखेंगे, तो दुबले-पतले बच्चे अब इतनी संख्या में नहीं मिलेंगे, जो 20-25 साल पहले मिलते थे. लेकिन अब बच्चों में बौनापन बढ़ रहा है. ये स्थिति ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में है. बच्चों में कुपोषण के कारण उम्र के हिसाब से ऊंचाई कम होती जा रही है. खास बात ये है कि संपन्न और पिछड़े तबके के परिवारों में स्थितियां एक जैसी हैं.

शरद पूर्णिमा आज, 'कोजागरी लक्ष्मी पूजा' से होगी मां लक्ष्मी की कृपा

पिछड़ी बस्तियों में ध्यान देता है प्रशासन

इन परिस्थितियों को लेकर अभिभावक मोहन अग्रवाल कहते हैं कि कुपोषण को लेकर यह मान लिया गया है कि यह सिर्फ संपन्नता और विपन्नता से जुड़ा हुआ है. सरकार और प्रशासन सिर्फ पिछड़े और गरीबी वाले इलाकों में कुपोषण से संबंधित कार्यक्रम चलाता है. जबकि संपन्न इलाकों में भी कुपोषण को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए. आमतौर पर संभ्रांत परिवार के बच्चों में भी कुपोषण की समस्या देखने को मिल रही है. क्योंकि ऐसे परिवारों के बच्चे जंक फूड ज्यादा खाते हैं और उसकी वजह से कुपोषण बढ़ रहा है. प्रशासन को चाहिए कि कुपोषण की समस्या को लेकर संभ्रांत परिवारों पर भी नजर रखें और उन्हें जागरूक करें.

रुचिकर और स्वादिष्ट भोजन देना जरूरी

बच्चों को रुचिकर और स्वादिष्ट भोजन देना जरूरी

डॉ.उमेश पटेल कहते हैं कि कुपोषण का संबंध अमीरी और गरीबी से नहीं है, बल्कि कुपोषण का सीधा मतलब यह है कि भोजन में पोषक तत्वों की कमी या अधिकता से है. हमारे मध्यमवर्गीय परिवारों में आमतौर पर बच्चों के लिए संतुलित भोजन देने पर ध्यान नहीं दिया जाता है. बच्चों का पेट भर जाए इस पर भी ध्यान दिया जाता है. इसके अलावा जंक फूड जैसी हैबिट भी बच्चों को कुपोषण का शिकार बना रही है. जरूरी है कि बच्चों को संतुलित भोजन दिया जाए, ताकि उन्हें हर तरह के पोषक तत्व मिल सके.

आमतौर पर कुपोषण के कारण बच्चों का वजन बढ़ने और घटने जैसी समस्या देखने को मिलती है. बच्चों की लंबाई कम होने की समस्या सामने आ रही है, और बच्चों की मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ रहा है.

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