जबलपुर। अकसर नई योजनाओं और नए प्लान के नाम पर अधिकारी वाहवाही तो खूब लूट लेते हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत की पड़ताल करें तो ऐसी कई योजनाओं के क्रियान्वयन का नतीजा सिफर ही होता है. ऐसा ही कुछ हुआ (Jabalpur green matar)मटर की ब्रांडिंग और टैगिंग की योजना का. जबलपुर में एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चुने गए हरे मटर की टैगिंग के साथ उसकी ब्रांडिंग (no branding of Jabalpur green matar) की जानी थी, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से ऐसा नहीं हो रहा, उल्टा मटर उत्पादक किसान उचित दाम ना मिलने से परेशान हैं.
मध्यप्रदेश में जिलास्तरीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने सरकार ने एक जिला एक उत्पाद नाम से एक नई योजना शुरु की थी.योजना के तहत हर जिले की ख़ासियत वाले उत्पाद की मार्केटिंग और ब्रांडिंग की जानी थी. जिसका फायदा फसल के उत्पादन से जुड़े वर्ग को मिले और जिले का नाम प्रदेश में रोशन हो सके. जबलपुर में एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत हरे मटर का चुना गया था. यहां बड़े रकबे में उम्दा क्वालिटी की मटर का उत्पादन किया जाता है. मंडियों में जाने वाली यहां की मटर के हर बारदाने पर जबलपुर मटर का मार्का लगाकर इसके लोगो की टैगिंग की जानी थी. इस योजना का ऐलान करके जिला प्रशासन ने वाहवाही तो खूब लूटी लेकिन सच्चाई दावों के एकदम उलट है.जिसे फसल उपजाने वाले किसान खुद बताते हैं.
न टैगिंग हो रही न ब्रांडिंग
किसान इस बात से मायूस हैं कि उनसे बीस-बाईस रुपए के दाम पर खरीदी जा रही मटर बाहरी राज्यों में 80 रुपए किलो के दाम पर बेची जा रही है. व्यापारी कहते हैं कि दाम बाजार के हवाले हैं हालांक वे खुद कुबूल करते हैं कि वो मटर पर जबलपुर मटर का मार्का नहीं लगा रहे हैं, क्योंकि ये योजना अब तक मंडी में लागू ही नहीं हुई है. वहीं योजना की घोषणा कर वाहवाही लूटने वाले कलेक्टर साहब इसे जागरुकता की कमी बताते हैं.
किसानों को घऱ में ही नहीं मिल रहे उचित दाम
फाइनल विओ- यूं तो देशभर में जबलपुर के हरे मटर की खासी डिमांड है. जिला प्रशासन मटर महोत्सव भी मना रहा है, लेकिन सरकार की मंशा और जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते जबलपुर कृषि उपज मंडी में ना तो जबलपुर मटर की टैगिंग की जा रही है और ना ही किसानों को मटर का उचित दाम मिल रहा है.