जबलपुर/ नागपुर. अमन से आमिर बने जबलपुर के एक लड़के की ये कहानी किसी फिल्म की स्क्रिपट सी लगती है, लेकिन अमन के साथ जो हुआ वह रील नहीं बल्कि उसकी रियल लाइफ में घटा है. 9 साल की उम्र में जबलपुर से लापता हुआ आमिर 10 साल बाद 250 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर नागपुर में मिला. नागपुर में आमिर , अमन बन चुका था और हिंदू परिवार के साथ उनके बेटे की तरह ही रह रहा था. 18 साल की उम्र होने पर उसके हिंदू पिता उसका आधारकार्ड बनवाने गए. यहां उन्हें पता लगी अपने बेटे की असली पहचान कि वह अमन नहीं बल्कि आमिर है.
10 साल पहले जबलपुर से नागपुर पहुंचा था आमिर
मध्यप्रदेश, जबलपुर के आधारताल इलाके में एक मुस्लिम परिवार में जन्मा आमिर बचपन से ही दूसरे बच्चों से कुछ अलग था. 5 साल के होने पर भी वह ठीक से बोल नहीं पाता. न तो अपने घर का पता जानता था और न पिता का नाम बोल सकता था. आमिर को स्कूल भी भेजा गया लेकिन पढ़ने में उसका मन नहीं लगता था. स्कूल से बंक मारना उसकी आदत बन चुकी थी. एक बार कचरा बीनने वाले बच्चों के साथ चला गया, तब उसे पुलिस ने भी पकड़ा और पिता उसे थाने से घर लेकर आए, लेकिन मानसिक तौर पर कमजोर आमिर के दिमाग में कुछ और ही था और एक दिन वह घर गायब हो गया. परिजनों ने काफी तलाश किया पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई लेकिन आमिर का कहीं कुछ पता न चला. इस घटना को 10 हो चुके थे. आमिर के परिजनों की उम्मीद टूट चुकी थी, उन्हें लगने लगा था कि आमिर अब जिंदा भी होगा या नहीं.
पुलिस ने लावारिस समझ चाइल्ड हेल्प लाइन को सौंपा
जबलपुर से लापता हुआ आमिर नागपुर स्टेशन पर पुलिस को लावारिस हालत में मिला. तब वह ठीक से बोल भी नहीं पाता था. पुलिस ने उसे बच्चों के लिए काम करने वाली एक संस्था चाइल्ड हेल्प लाइन को सौप दिया. चाइल्ड हेल्प लाइन ने उसे एक अनाथालय पहुंचा दिया. साल 2012 तक आमिर लावारिस के तौर पर अनाथालय में रहा. यहीं आमिर की जिंदगी में वो बदलाव का पल आया जिसने उसे आमिर से अमन बना दिया. नागपुर के ही रहने वाले हिंदू दामले परिवार ने अनाथालय से पूरी कानूनी कार्रवाई कर आमिर को एडोप्ट किया और 2015 में अपने घर ले आए. यहां उसे नया नाम मिला अमन. आमिर अब अमन बन चुका था.
इलाज कराया और बेटे की तरह रखा
दामले परिवार के मुखिया समर्थ दामले और उनकी पत्नी लक्ष्मी दामले के दो बच्चे 1 बेटा और 1 बेटी पहले से ही हैं. उनके परिवार का अब नया सदस्य था अमन. अमन भी समर्थ को पापा और लक्ष्मी को मम्मी और अपने भाई बहनों को दीदी और भईया मानने लगा. दामले परिवार ने उसका इलाज कराया जिसके बाद अमन की आवाज साफ हो गई और वह ठीक से बोलने भी लगा. आमिर बना अमन 10 साल तक दामले परिवार के साथ ही रहा, लेकिन एक दिन जब उसके पिता अमन का आधार कार्ड बनवाने आधार सेवा केंद्र पहुंचे तो वहां आधार कार्ड बनाने वाले व्यक्ति ने जब अमन का थंब इंप्रेसन लिया तो उसका आधार पहले से बना हुआ दिखा. यहां पहली बार समर्थ दामले को मालूम हुआ कि अमन लावारिस नहीं है उसके मां-बाप और पूरा परिवार है. वह मध्यप्रदेश के जबलपुर का रहने वाला है और उसका नाम अमन नहीं बल्कि आमिर है और वह एक मुस्लिम परिवार का बेटा है.
स्थानीय काउंसलर ने अयूब को बताया उनका बेटा जिंदा है
आमिर के वापस लौटने और उसके जिंदा होने की भी उम्मीद खो चुके अयूब शेख के परिवार को स्थानीय पार्षद के जरिए यह जानकारी मिली कि उनका बेटा जिंदा है और नागपुर में है. वह एक हिंदू परिवार का बेटा बन चुका है. आमिर के सही सलामत होने के खबर सुन उसके परिवार की खुशी का ठिकाना न रहा. परिवार अब अपने आमिर को वापस लाने की कोशिश में जुट गया. नागपुर के दामले परिवार से संपर्क किया गया और आमिर के परिवार के लोग नागपुर जाकर उनसे मिले, लेकिन लंबा वक्त गुजर जाने के बाद अमन पहले तो अपने परिजनों को पहचान ही नहीं पाया फिर कुछ दिन परिवार के साथ गुजारने के बाद धीरे धीरे उसे सब याद आने लगा. जिसके बाद दोनों परिवारों के बीच अमन को सौंपने की प्रक्रिया शुरू हुई.
जबलपुर से बाइक से नागपुर अपनी मां का बर्थडे मनाने पहुंचा अमन
अपने असली माता-पिता के साथ जबलपुर लौट आया आमिर यहां फिर से खुशी-खुशी रहने लगा है. वह अपनी बहन, दोस्तों और मुहल्ले के बच्चों के साथ पहले की तरह ही घुल मिल चुका है. अमन फिर से आमिर बन चुका है, लेकिन वह अपनी जिंदगी के बीते 10 सालों को नहीं भूल सकता. यही वजह है कि वह अपनी हिंदू मां लक्ष्मी दामले का बर्थडे मनाने 250 किलोमीटर से ज्यादा दूर जबलपुर से अपने पिता के साथ नागपुर पहुंचा और धूमधाम से अपनी मां का जन्मदिन मनाया. अमन को अचानक अपने बीच देखकर उसके पिता,भाई,बहन सभी खुश नजर आए. अमन के परिवार और आमिर के परिजनों ने अपनी खुशी ईटीवी भारत के साथ बातचीत में जाहिर भी की. उन्होंने बताया कि किस तरह से अमन ने हिंदू और मुस्लिम परिवार के बीच एक प्यार का बंधन जोड़ दिया है. अमन ने सिखा दिया कि इंसानियत का रिश्ता धर्म और मजहब के आधार पर बने रिश्तों से कहीं ज्यादा बड़ा और ज्यादा सच्चा है.