जबलपुर। न्यायालयों में लंबित आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष की पैरवी के लिए पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति से संबंधित संज्ञान याचिका और अन्य याचिकाओं की सुनवाई करते हुए राज्य तथा केन्द्र सरकार से जवाब मांगा था, याचिका पर सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य और केन्द्र सरकार ने जवाब पेश करने के लिए कुछ दिनों की मोहलत मांगी थी, जिसपर हाईकोर्ट जस्टिस प्रकाश श्रीवास्वत और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की युगलपीठ ने आग्रह को स्वीकार करते हुए याचिका पर अगली सुनवाई 3 अगस्त को निर्धारित की गयी है.
अधारताल निवासी ज्ञानप्रकाश की तरफ से दायर याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि राज्य सरकार द्वारा नियमों की अनदेखी करके डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर नियुक्ति नहीं की जा रही, जो अवैधानिक है. इसके साथ ही एक आईएएस की नियुक्ति, इंचार्ज डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर किए जाने की भी याचिका लगाई थी.
याचिका में हाईकोर्ट ऑफ मध्य प्रदेश केस फ्लो मैनेजमेंट रूल्स 2006 का हवाला देते हुए कहा गया था कि रिट पिटीशनों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक और नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं, इसी तरह क्रिमिनल मामलों में फांसी की सजा, रेप और दहेज हत्या जैसे मामलों के लिए एक्सप्रैस ट्रैक, जिन मामलों में आरोपी को जमानत नहीं मिली, उसके लिए फास्ट ट्रैक, ऐसे संवेदनशील मामले जिनमें कई लोग प्रभावित हो रहे हों उनके लिए रैपिड ट्रैक, विशेष कानून के तहत आने वाले मुकदमों के लिए ब्रिस्क ट्रैक और शेष सभी सामान्य अपराधों के लिए नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं.
याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 2006 में बने कानून में तय किए गए ट्रैक का पालन नहीं हो रहा, इस पर युगलपीठ ने नियमों पर गौर करने के बाद इस मामले की सुनवाई नॉर्मल ट्रैक के तहत करने के निर्देश पूर्व में दिये थे, हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए सुनवाई करने के निर्देष दिये थे, इसके अलावा दो अन्य याचिकाएं भी दायर की गयी थी.
इससे पहले सुनवाई के दौरान सरकार को कई अवसर दिये जाने के बावजूद भी जवाब पेश नहीं किए जाने को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने 25 हजार रूपये का जुर्माना लगाया था, पिछली सुनवाई के दौरान अधिवक्ता आदित्य संधी ने युगलपीठ को बताया था कि याचिका 2013 से लंबित है. जिला एवं सत्र न्यायालय में हत्या सहित अन्य संगीन अपराध में मामलों की सुनवाई होती है और साक्ष्य पर दलील के आधार पर न्यायालय निर्णय करता है.
जिला एव सत्र न्यायालय में संविदा में पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त को अवैधानिक बताते हुए कहा कि नियुक्ति के लिए न्यूनतम सात साल का अनुभव भी अनिर्वाय नहीं किया गया है, अनुभव की कमी न्यायिक तंत्र को खोखला कर सकती है, हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान कई महत्तपूर्ण आदेश जारी किये, लेकिन उसका पालन नहीं किया गया, जिला न्यायालय में योग्य और स्थाई पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति नहीं की गई है.
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याचिका की सुनवाई करते हुए युगलपीठ ने राज्य सरकार से नियुक्ति के संबंध में 6 विंदुओं पर जवाब मांगा था, इसके अलावा केन्द्रीय एजेन्सियों द्वारा नियमों के तहत न्यायालय में उपस्थित होने वाले पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति की गयी है, इस संबंध में भी जवाब मांगा है, याचिका की सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने राज्य सरकार और केन्द्र सरकार को जवाब पेश करने के लिए समय प्रदान किया है.