जबलपुर। एफआईआर रद्द करने के मामले में न्यायालय को शक्ति का संयम से प्रयोग करना चाहिए. ऐसे मामले में न्यायालय को अधिक सर्तकता बरतनी चाहिए. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और जस्टिस पुरूपेन्द्र कौरव की युगलपीठ ने याचिकाकर्ता को जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होकर साक्ष्य के साथ अपना पक्ष प्रस्तुत करने के निर्देश जारी किये हैं.
FIR रद्द करने में संयम बरतें-HC
सागर निवासी डॉ धीरेन्द्र कुमार जैन की तरफ से दायर की गयी. अपील में कहा गया था कि मोती नगर थाने में उसके सहित अन्य लोगों के खिलाफ एसटी-एससी एक्ट सहित मारपीट की धाराओं के तहत 12 अगस्त 2021 को एफआईआर दर्ज की गयी थी. याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया है कि राजनैतिक दबाव के कारण उसके खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज की गयी है. निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए उन्होंने डीजीपी को अभ्यावेदन दिया था. याचिका में मांग की गयी थी कि आईजी स्तर के अधिकारी से प्रकरण की निष्पक्ष जांच करवाई जाये. उनके खिलाफ किसी प्रकार की दण्डात्मक कार्यवाही नहीं की जाये. एकलपीठ द्वारा याचिका खारिज किये जाने के कारण ये अपील दायर की गयी है.
याचिकाकर्ता सबूत के साथ जांच अधिकारी के पास जाएं
युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करने की बजाये सीधे एफआईआर रद्द करने के लिए याचिका दायर की है. एफआईआर को रद्द करने के मामले में निहित शक्ति का प्रयोग संयम और सावधानी से करना चाहिए. सीआरपीसी की सेक्शन 482 के तहत हाईकोर्ट को मिली शक्ति बहुत व्यापक है. व्यापक शक्ति का उपयोग करने के लिए न्यायालय को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है. याचिकाकर्ता जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होकर साक्ष्य के साथ अपना पक्ष प्रस्तुत करें.