ईटीवी भारत डेस्क: कल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों तीर्थयात्री 'स्नाना उत्सव' के लिए पुरी पहुंचे. देशभर से श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के स्नान अनुष्ठान 'स्नाना उत्सव' के लिए पहुंचे. भगवान जगन्नाथ के प्रकट होने के दिन को मनाने के लिए स्नान उत्सव (Snana ustav) मनाया जाता है. ये भगवान जगन्नाथ का एक विशेष स्नान (Lord Jagannath balbhadra devi subhadra bathing ceremony) है जो ज्येष्ठ महीने (देवस्नान पूर्णिमा) की पूर्णिमा पर होता है. स्नान उत्सव के लिए अनुष्ठान के अनुसार, देवताओं की पहंडी (जुलूस), जलाबीज की रस्म और छेरा पहाड़ा, हाती बेशा अनुष्ठान भी किया गया. आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Rath yatra 2022) से जुड़े कुछ रोचक तथ्य.
सोना-कुआँ का जल: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को सुबह-सुबह जगन्नाथ पुरी मंदिर के 'रत्नसिंहासन' से स्नान मंडप पर लाया जाता है. इस प्रक्रिया को पोहांडी कहा जाता है जिसमें मंत्रों का उच्चारण, घंटा, ढोल, बिगुल और झांझ की थाप के साथ जीवंत रूप देखने को मिलता है. देवताओं के स्नान के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला जल जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के अंदर बने सोना-कुआँ से 108 घड़ों में निकाला जाता है. इन सभी घड़ों के जल को मंदिर के पुजारी हल्दी जौ, अक्षत, चंदन, पुष्प और सुगंध से पवित्र करते हैं.
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घड़ों के जल को पवित्र करने के बाद इन घड़ों को स्नान मंडप में लाकर विधि विधान से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का स्नान संपन्न कराया जाता है जिसे जलाभिषेक कहते हैं. इसके बाद दोपहर (Rath yatra 2022) में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को फिर से हाथी-गणपति वेश पहनाकर तैयार किया जाता है. बाद में रात में तीन मुख्य देवता मंदिर परिसर में स्थित अनसर गृह में निवृत्त हो जाते हैं. अनसर अवधि के दौरान, भक्त अपने देवताओं को नहीं देख सकते हैं.
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हिंदू किवदंतियों के अनुसार, यह माना जाता है कि स्नाना उत्सव (Rath yatra 2022) अनुष्ठान के दौरान देवताओं को बुखार हो जाता है और 15 दिनों का एकान्त वास होता है. जैसा कि 'स्कंद पुराण' में उल्लेख किया गया है, राजा इंद्रद्युम्न ने जगन्नाथ मंदिर में देवताओं की स्थापना के बाद पहली बार इस स्नान समारोह की व्यवस्था की थी. ऐसी मान्यता है कि देव स्नान पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ देवताओं के अनसर के दौरान 15 दिनों के लिए भगवान अलारनाथ के रूप में प्रकट होते हैं.
भक्तों का मानना है कि देव स्नान पूर्णिमा (Lord Jagannath balbhadra devi subhadra bathing ceremony) के दिन प्रभु के गणपति वेश के दर्शन करने से वे अपने वर्तमान और पिछले जन्मों के सभी पापों से मुक्त हो जाएंगे. भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियां प्रसिद्ध रथ यात्रा से ठीक एक दिन पहले यानी 15 दिन बाद ही जनता के दर्शन के लिए प्रकट होती हैं.
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