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मध्यप्रदेश स्थापना दिवस: विविधताओं से लबरेज है देश का दिल, दिखती है संपूर्ण भारत की झलक

1 नवंबर 1956 को नए राज्य के रूप मेंअस्तित्व में आया मध्य प्रदेश अपना 65वां स्थापना दिवस मना रहा है. आइये इस मौके पर जानते हैं, मध्य प्रदेश की कला संस्कृति और क्षेत्रों के बारे में..

Foundation Day of Madhya Pradesh
मध्य प्रदेश फाउंडेशन डे
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Published : Nov 1, 2020, 11:10 AM IST

Updated : Nov 1, 2020, 1:55 PM IST

इंदौर। यूं तो पार्ट-ए पार्ट-बी और पार्ट-सी के रूप में आजादी के बाद से ही मध्य प्रदेश अस्तित्व में रहा है, जिसमें महाकौशल, सेंट्रल प्रोविंसेस, बरार बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासत शामिल थी. लेकिन 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनने के बाद राज्य के पुनर्गठन के लिए मशक्कत तेज हुई और 1 नवंबर 1956 को संपूर्ण मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया. 1 नवंबर 1956 को नए राज्य के रूप मेंअस्तित्व में आया मध्य प्रदेश अपना 65वां स्थापना दिवस मना रहा है. आइये इस मौके पर जानते हैं, मध्य प्रदेश की कला संस्कृति और क्षेत्रों के बारे में..

मध्यप्रदेश स्थापना दिवस

भारत दुनिया भर में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां हर 50 किलोमीटर पर बोली और संस्कृति बदल जाती है. देश की इस खूबसूरती के लिहाज से सबसे समृद्ध है, देश का हृदय मध्य प्रदेश, जो प्राकृतिक संपदा और संसाधनों से समृद्ध होने के साथ तरह-तरह की बोलियों लोक संस्कृतियों और रहन-सहन से रचा बसा है और खुद में भारत का एक संपूर्ण दर्शन कराता है. मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां संपूर्ण भारत की एक झलक देखने को मिल जाती है.

मध्य प्रदेश मालवा, निमाड़, बुंदेलखंड, बघेलखंड, चंबल और महाकौशल क्षेत्र का संयुक्त भूभाग है. यहां अलग-अलग जीवन शैली, बोलियां, खानपान और पहचान है. मालवा में मालवीय निमाड़ में निमाड़ी, बुंदेलखंड में बुंदेली, बघेलखंड में बघेली बोलियां आज भी यहां के आत्मीय संवाद का हिस्सा है. यही नहीं इन तमाम इलाकों की कृषि, पुरातात्विक संपदा और भौगोलिक स्वरूप का यहां के रहवासियों पर प्रभाव रहता है. लिहाजा भूमि की उर्वरता और कृषि संसाधनों समेत आय के अन्य स्त्रोतों की बदौलत यहां की संस्कृतिया और लोकजीवन फला-फूला.

आइये जानते हैं क्षेत्र के हिसाब से मध्य प्रदेश को


मालवा

मालव माटी धीर-गंभीर, पग पग रोटी डग-डग नीर, मालवा की संपन्नता पर आधारित इन पंक्तियों की तरह ही मालवा के पठार पर बसा यह इलाका प्राचीन काल से ही धन-धान्य से समृद्ध रहा है. मालवी बोली और स्वादिष्ट खानपान से रचा बसा यह इलाका खाद्यान्न उत्पादन और राज्य को सर्वाधिक आए देने वाला विकसित क्षेत्र है. जो कई मामलों में राज्य का प्रतिनिधित्व करता है.

निमाड़
प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में मौजूद निमाड़ नर्मदा जल और निमाड़ी लोक संस्कृतियों से समृद्ध है. यहां की लोक भाषा निमाड़ी और अलग खानपान है. कपास, केला, मिर्च जैसी फसलों का उत्पादक यह इलाका अपने भौगोलिक स्वरूप के भी लिए भी जाना जाता है.

बुंदेलखंड
सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना जिले की सीमाओं से संयुक्त बुंदेलखंड की लोक भाषा बुंदेली है. बुंदेलखंड प्राचीन काल से ही बुंदेली राजाओं का कर्म क्षेत्र रहा यह इलाका खाद्यान्न उत्पादन के लिहाज से समृद्ध है. यहां के राई लोक नृत्य के अलावा आल्हा ऊदल का गायन इसे विशिष्ट पहचान देता रहा है.

महाकौशल
प्रदेश में सबसे ज्यादा प्राकृतिक संपदा से संपन्न यह इलाका कृषि प्रधान है. नर्मदा की जलधारा और नर्मदा तट के दोनों ओर बसें यहां के लोग जीवन में कृषि और प्राकृतिक संपन्नता की झलक मिलती है. धान, गेहूं, गन्ने और दालों का उत्पादक यह अंचल धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर भी समृद्ध है, भाषा के मामले में यहां बखेली, बुंदेली का मिलाजुला असर है.

चंबल
ऐतिहासिक तौर से ही सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों का संगम रहा चंबल इलाका राजसी परिवारों का गढ़ रहा है. चंबल में आंचलिक संगीत, नृत्य, मूर्तिकला चित्रकला और तरह-तरह के लोक संस्कृतियों की झलक मिलती है. यहां बुंदेली भाषा से मिलती-जुलती खड़ी बोली की झलक मिलती है. तरह-तरह के खानपान और कृषि क्षेत्र में समृद्धि भी इस इलाके की पहचान हैं.

बघेलखंड

बखेली भाषाई यह क्षेत्र मूल रूप से कृषि संपन्न इलाका है, इसका मध्य प्रदेश की राजनीति में खासा दखल रहता है. प्रदेश के गठन के दौर में यही इलाका था, जहां से विंध्य प्रदेश की मांग उठी थी. प्राकृतिक संसाधनों और आध्यत्मिक महत्व के इस क्षेत्र की कुछ सीमा उत्तर प्रदेश को कुछ सीमा छत्तीसगढ़ से मिलती है, जिस कारण यहां छत्तीसगढ़ी संस्कृति का खासा प्रभाव है, मध्य प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा का उद्गम यहीं है.

संपूर्णता के बाद नहीं मिल पाई संपन्नता

गठन के बाद से ही विकास की दौड़ में शामिल मध्य प्रदेश अपने 56वें स्थापना दिवस तक काफी विकसित हो गया है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कला, संस्कृति, कृषि, पर्यटन और प्राकृतिक संसाधनों का संपूर्ता होते हुए भी प्रदेश का उस तरह विकास नहीं हो पाया जैसा इसे इतने सालों में हो जाना चाहुए था. मध्य प्रदेश के संसाधनों का सही उपयोग कर इसे विकसित किया जाए तो निश्चित ही वैश्विक पटल पर यह एक मुकाम हासिल करेगा.

तमाम समावेशी संस्कृतियों और इलाकों के विकास से मध्य प्रदेश भी अब विकसित राज्यों की श्रेणी में शुमार है. जो अपनी प्राकृतिक और पर्यावरणीय संपदा और उर्वरक भूमि की बदौलत देश का सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादन करने के अलावा तरह-तरह के प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से अपनी एक अलग पहचान लिए हुए है. यही वजह है कि मध्य प्रदेश दुनिया भर में अपनी अलग पहचान लिए हुए है.

इंदौर। यूं तो पार्ट-ए पार्ट-बी और पार्ट-सी के रूप में आजादी के बाद से ही मध्य प्रदेश अस्तित्व में रहा है, जिसमें महाकौशल, सेंट्रल प्रोविंसेस, बरार बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासत शामिल थी. लेकिन 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनने के बाद राज्य के पुनर्गठन के लिए मशक्कत तेज हुई और 1 नवंबर 1956 को संपूर्ण मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया. 1 नवंबर 1956 को नए राज्य के रूप मेंअस्तित्व में आया मध्य प्रदेश अपना 65वां स्थापना दिवस मना रहा है. आइये इस मौके पर जानते हैं, मध्य प्रदेश की कला संस्कृति और क्षेत्रों के बारे में..

मध्यप्रदेश स्थापना दिवस

भारत दुनिया भर में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां हर 50 किलोमीटर पर बोली और संस्कृति बदल जाती है. देश की इस खूबसूरती के लिहाज से सबसे समृद्ध है, देश का हृदय मध्य प्रदेश, जो प्राकृतिक संपदा और संसाधनों से समृद्ध होने के साथ तरह-तरह की बोलियों लोक संस्कृतियों और रहन-सहन से रचा बसा है और खुद में भारत का एक संपूर्ण दर्शन कराता है. मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां संपूर्ण भारत की एक झलक देखने को मिल जाती है.

मध्य प्रदेश मालवा, निमाड़, बुंदेलखंड, बघेलखंड, चंबल और महाकौशल क्षेत्र का संयुक्त भूभाग है. यहां अलग-अलग जीवन शैली, बोलियां, खानपान और पहचान है. मालवा में मालवीय निमाड़ में निमाड़ी, बुंदेलखंड में बुंदेली, बघेलखंड में बघेली बोलियां आज भी यहां के आत्मीय संवाद का हिस्सा है. यही नहीं इन तमाम इलाकों की कृषि, पुरातात्विक संपदा और भौगोलिक स्वरूप का यहां के रहवासियों पर प्रभाव रहता है. लिहाजा भूमि की उर्वरता और कृषि संसाधनों समेत आय के अन्य स्त्रोतों की बदौलत यहां की संस्कृतिया और लोकजीवन फला-फूला.

आइये जानते हैं क्षेत्र के हिसाब से मध्य प्रदेश को


मालवा

मालव माटी धीर-गंभीर, पग पग रोटी डग-डग नीर, मालवा की संपन्नता पर आधारित इन पंक्तियों की तरह ही मालवा के पठार पर बसा यह इलाका प्राचीन काल से ही धन-धान्य से समृद्ध रहा है. मालवी बोली और स्वादिष्ट खानपान से रचा बसा यह इलाका खाद्यान्न उत्पादन और राज्य को सर्वाधिक आए देने वाला विकसित क्षेत्र है. जो कई मामलों में राज्य का प्रतिनिधित्व करता है.

निमाड़
प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में मौजूद निमाड़ नर्मदा जल और निमाड़ी लोक संस्कृतियों से समृद्ध है. यहां की लोक भाषा निमाड़ी और अलग खानपान है. कपास, केला, मिर्च जैसी फसलों का उत्पादक यह इलाका अपने भौगोलिक स्वरूप के भी लिए भी जाना जाता है.

बुंदेलखंड
सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना जिले की सीमाओं से संयुक्त बुंदेलखंड की लोक भाषा बुंदेली है. बुंदेलखंड प्राचीन काल से ही बुंदेली राजाओं का कर्म क्षेत्र रहा यह इलाका खाद्यान्न उत्पादन के लिहाज से समृद्ध है. यहां के राई लोक नृत्य के अलावा आल्हा ऊदल का गायन इसे विशिष्ट पहचान देता रहा है.

महाकौशल
प्रदेश में सबसे ज्यादा प्राकृतिक संपदा से संपन्न यह इलाका कृषि प्रधान है. नर्मदा की जलधारा और नर्मदा तट के दोनों ओर बसें यहां के लोग जीवन में कृषि और प्राकृतिक संपन्नता की झलक मिलती है. धान, गेहूं, गन्ने और दालों का उत्पादक यह अंचल धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर भी समृद्ध है, भाषा के मामले में यहां बखेली, बुंदेली का मिलाजुला असर है.

चंबल
ऐतिहासिक तौर से ही सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों का संगम रहा चंबल इलाका राजसी परिवारों का गढ़ रहा है. चंबल में आंचलिक संगीत, नृत्य, मूर्तिकला चित्रकला और तरह-तरह के लोक संस्कृतियों की झलक मिलती है. यहां बुंदेली भाषा से मिलती-जुलती खड़ी बोली की झलक मिलती है. तरह-तरह के खानपान और कृषि क्षेत्र में समृद्धि भी इस इलाके की पहचान हैं.

बघेलखंड

बखेली भाषाई यह क्षेत्र मूल रूप से कृषि संपन्न इलाका है, इसका मध्य प्रदेश की राजनीति में खासा दखल रहता है. प्रदेश के गठन के दौर में यही इलाका था, जहां से विंध्य प्रदेश की मांग उठी थी. प्राकृतिक संसाधनों और आध्यत्मिक महत्व के इस क्षेत्र की कुछ सीमा उत्तर प्रदेश को कुछ सीमा छत्तीसगढ़ से मिलती है, जिस कारण यहां छत्तीसगढ़ी संस्कृति का खासा प्रभाव है, मध्य प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा का उद्गम यहीं है.

संपूर्णता के बाद नहीं मिल पाई संपन्नता

गठन के बाद से ही विकास की दौड़ में शामिल मध्य प्रदेश अपने 56वें स्थापना दिवस तक काफी विकसित हो गया है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कला, संस्कृति, कृषि, पर्यटन और प्राकृतिक संसाधनों का संपूर्ता होते हुए भी प्रदेश का उस तरह विकास नहीं हो पाया जैसा इसे इतने सालों में हो जाना चाहुए था. मध्य प्रदेश के संसाधनों का सही उपयोग कर इसे विकसित किया जाए तो निश्चित ही वैश्विक पटल पर यह एक मुकाम हासिल करेगा.

तमाम समावेशी संस्कृतियों और इलाकों के विकास से मध्य प्रदेश भी अब विकसित राज्यों की श्रेणी में शुमार है. जो अपनी प्राकृतिक और पर्यावरणीय संपदा और उर्वरक भूमि की बदौलत देश का सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादन करने के अलावा तरह-तरह के प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से अपनी एक अलग पहचान लिए हुए है. यही वजह है कि मध्य प्रदेश दुनिया भर में अपनी अलग पहचान लिए हुए है.

Last Updated : Nov 1, 2020, 1:55 PM IST
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