ग्वालियर : इस समय पूरे प्रदेश के साथ-साथ ग्वालियर चंबल अंचल में सर्दी का सितम शुरू हो गया है. उत्तरी पश्चिम से आने वाली सर्द हवाओं के कारण ग्वालियर चंबल में लगातार तापमान में गिरावट आ रही है. पिछले एक सप्ताह से ग्वालियर चंबल अंचल में एकदम तापमान में गिरावट आने के कारण कई जगह ओस की बूंदे जम गई. ग्वालियर चंबल अंचल में लगभग 25 साल बाद ऐसी ठंड देखी गई है जब न्यूनतम तापमान 1.8 डिग्री दर्ज हुआ था. अंचल में पड़ रही शीत लहर के साथ कड़ाके की सर्दी के कारण किसानों की चिंताएं भी तेज हो गई है. किसानों को पाला पड़ने का डर सता रहा है.
पश्चिमी विक्षोभ के कारण इस समय पूरे मध्यप्रदेश में शीत लहर के साथ ठंड (winter weather protection) का कहर जारी है. जिस तरीके से लगातार तापमान में गिरावट आ रही है उसके बाद पाला (Cold and Frost) पड़ने की संभावना अधिक बढ़ जाती है, ऐसे में सबसे ज्यादा नुकसान और किसानों को होता है जिनकी फसल खेत में खड़ी हुई है. शीत लहर के साथ पाला-ठंड में फसल की सुरक्षा (crop protection methods in cold and frost) को लेकर ग्वालियर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक राज सिंह कुशवाह ने ईटीवी भारत (ETV Bharat) से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि किसान खेत में खड़ी फसल की कैसे रक्षा कर सकते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि पानी से बचाने के लिए उन्हें क्या-क्या उपाय करने चाहिये.
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पाला पड़ने के संकेत, इन फसलों को ज्यादा नुकसान
पूरे प्रदेश के साथ-साथ ग्वालियर-चंबल अंचल में तापमान में लगातार गिरावट आ रही है और ये पाले सबसे बड़ा संकेत होता है. क्योंकि तापमान में गिरावट आने के बाद पानी की संभावना अधिक बढ़ जाती है और तापमान में गिरावट के साथ अगर शीत लहर चल रही है तो यह पाला पड़ने का संकेत माना जाता है और इस पाले के कारण खेत में खड़ी किसान भाइयों की फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाती है. इस पाले से सबसे अधिक नुकसान दलहन की फसलों के साथ-साथ सब्जियों की फसल और सरसों की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है.ऐसे में किसान भाइयों को पाला पड़ने से पहले ही सतर्क रहना चाहिए, और उसका(protection methods from cold and frost) उपाय पहले ही कर लेना चाहिए ताकि उनकी खेत में खड़ी फसल बर्बाद न हो सके.
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पाला पड़ना दलहनी फसलों के लिए बहुत खतरनाक
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राज सिंह कुशवाह का कहना है कि पाला से सबसे ज्यादा नुकसान सब्जी वाली फसल और दलहनी फसलों को होता है. इस समय किसानों के खेतों में दलहनी फसल जैसे मूग, उड़द, चना, मसूर, अरहल, मटर के साथ सब्जी और मसाले वाली फसलों को अधिक नुकसान होता है. ऐसे में दलहनी फसलों को पाले से बचाने (paale se fasal ka kaise bachaye)के लिए उपाय करना बहुत ही जरूरी है. वहीं किसान भाइयों के खेतों में सब्जियों की खेती भी इस समय भारी मात्रा में होती है.
ऐसे करें पाले से अपनी फसलों का बचाव
- पाले से बचने के लिए खेतों में हल्की सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक है. नमी युक्त जमीन है काफी देर तक गर्मी रहती है और भूमि का तापमान कम नहीं होता है.
- अगर तापमान में लगातार गिरावट है तो रात के समय खेत के चारों तरफ धुंआ करना चाहिए ताकि धुंआ से वातावरण में गर्मी आ जाए.
- एक एकड़ फसल के लिए 500 ग्राम सल्फर लेकर 200 लीटर पानी के साथ उसका घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने से पाले से फसल को बचाया जा सकता है.
- NPK (घुलनशील उर्वरक) की एक किलोग्राम मात्रा लेकर 200 लीटर पानी में इसका घोल बनाकर इसका भी छिड़काव करना चाहिए.अब इससे भी पाले से फसल को बचाया जा सकता है.
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इस फसल को सबसे ज्यादा खतरा
ग्वालियर-चंबल अंचल में पीला सोना कही जाने वाली सरसों इस समय किसानों के खेतों में खड़ी हुई है. सरसों की फसल के लिए पाला बेहद हानिकारक होता है. हर साल पानी के कारण लगभग 20 से 25 फीसदी सरसों की फसल खराब हो जाती है. डॉ राज सिंह कुशवाह का कहना है कि इस अंचल में लगातार तापमान में गिरावट आ रही है और पाला पड़ने की संभावना बहुत अधिक है ऐसे में अभी से ही किसानों को अपनी फसल को पाले से सुरक्षित रखने के लिए उपाय (paale se fasal ka bachav) शुरू कर देना चाहिए. जिस दिन अंचल में तापमान में गिरावट हो और दिनभर शीतलहर चले तो समझ लेना चाहिए कि रात में पाला पड़ने की संभावना अधिक है, ऐसे में (paale se fasal ka bachav kaise kare) रात में ही किसानों को खेत में हल्की सिंचाई कर देना चाहिए और खेत के चारों तरफ धुंआ करना चाहिए.