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Gwalior Court: फर्जी फाइलों के भुगतान मामले में पूर्व निगम कमिश्नर को राहत, 7 लोग बरी, दो सब इंजीनियर और ठेकेदार दोषी

ग्वालियर कोर्ट ने जल प्रदाय शाखा के घोटाले पूर्व नगर निगम कमिश्नर विवेक सिंह सहित 6 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में भ्रष्टाचार उन्मूलन की विशेष कोर्ट ने बरी कर दिया है. जबकि तीन आरोपियों को दोषी करार दिया गया है.

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Published : Nov 30, 2021, 7:22 AM IST

Gwalior Court
ग्वालियर कोर्ट

ग्वालियर। करीब 17 साल पुराने ग्वालियर नगर निगम (gwalior municipal corporation) के जल प्रदाय शाखा के घोटाले में पूर्व नगर निगम कमिश्नर विवेक सिंह सहित 6 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में भ्रष्टाचार उन्मूलन की विशेष कोर्ट ने बरी कर दिया है. जबकि तीन आरोपियों को दोषी करार दिया गया है. इनमें दो सब इंजीनियर सत्येंद्र भदौरिया और अजय पांडवीय सहित ठेकेदार रजत जैन शामिल हैं. तीनों को 3 -3 साल की सजा सुनाई गई है.

कोर्ट ने स्वीकारी दोषियों की जमानत याचिका
दोषियों की ओर से जमानत याचिका पेश की गई थी, जिसे ग्वालियर कोर्ट (gwalior court) ने स्वीकार कर लिया है. लोकायुक्त के अधिवक्ता का कहना है कि इस मामले में जबलपुर हाई कोर्ट (jabalpur high court) में अपील की जाएगी. 2004 में सीवेज नलकूप और पानी की लाइन के मेंटेनेंस के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई थीं. मेंटेनेंस के काम के लिए टेंडर प्रक्रिया नहीं बुलाई गई थी. तत्कालीन आयुक्त विवेक सिंह ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए निविदाएं आमंत्रित कीं. सारे काम 10000 रुपए से कम की राशि के रखे गए. ताकि मामला स्वीकृति के लिए मेयर इन काउंसिल नहीं भेजना पड़े.

पौने दो करोड़ रुपए का हुआ था भुगतान
इस मामले में कुल 1805 फाइलें तैयार की गईं थीं, जिनमें करीब पौने दो करोड़ रुपए का भुगतान होना था. विवेक सिंह के तबादले के बाद कमिश्नर बन कर आए निकुंज श्रीवास्तव ने इन फाइलों को संदिग्ध मानते हुए एक कमेटी बनाई थी, जिसमें इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ था. बाद में इसकी शिकायत लोकायुक्त में की गई.

High Court News Update: हमीदिया अग्निकांड के दोषियों पर कार्रवाई की मांग, हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस

लोकायुक्त पुलिस ने सिर्फ 69 फाइलों के संबंध में 10 केस दर्ज किए थे. इस मामले में तत्कालीन निगम कमिश्नर विवेक सिंह. कार्यपालन यंत्री केके श्रीवास्तव, आरके बत्रा, कुसुम लता शर्मा, हरि सिंह खेरवार, मोहित जैन सुनील गुप्ता भी बरी किए गए हैं. राजेंद्र दीक्षित अजय पाल राठौर की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है. दोषी पाए गए सब इंजीनियर सत्येंद्र भदौरिया और अजय पांडवीय पर 18000 का अर्थदंड भी लगाया गया है. जबकि ठेकेदार रजत जयंती पर 6000 रुपए का अर्थदंड लगाया गया है. आरोपियों ने 1.17 लाख के कार्य की 12 फर्जी फाइलें तैयार की थीं.

ग्वालियर। करीब 17 साल पुराने ग्वालियर नगर निगम (gwalior municipal corporation) के जल प्रदाय शाखा के घोटाले में पूर्व नगर निगम कमिश्नर विवेक सिंह सहित 6 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में भ्रष्टाचार उन्मूलन की विशेष कोर्ट ने बरी कर दिया है. जबकि तीन आरोपियों को दोषी करार दिया गया है. इनमें दो सब इंजीनियर सत्येंद्र भदौरिया और अजय पांडवीय सहित ठेकेदार रजत जैन शामिल हैं. तीनों को 3 -3 साल की सजा सुनाई गई है.

कोर्ट ने स्वीकारी दोषियों की जमानत याचिका
दोषियों की ओर से जमानत याचिका पेश की गई थी, जिसे ग्वालियर कोर्ट (gwalior court) ने स्वीकार कर लिया है. लोकायुक्त के अधिवक्ता का कहना है कि इस मामले में जबलपुर हाई कोर्ट (jabalpur high court) में अपील की जाएगी. 2004 में सीवेज नलकूप और पानी की लाइन के मेंटेनेंस के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई थीं. मेंटेनेंस के काम के लिए टेंडर प्रक्रिया नहीं बुलाई गई थी. तत्कालीन आयुक्त विवेक सिंह ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए निविदाएं आमंत्रित कीं. सारे काम 10000 रुपए से कम की राशि के रखे गए. ताकि मामला स्वीकृति के लिए मेयर इन काउंसिल नहीं भेजना पड़े.

पौने दो करोड़ रुपए का हुआ था भुगतान
इस मामले में कुल 1805 फाइलें तैयार की गईं थीं, जिनमें करीब पौने दो करोड़ रुपए का भुगतान होना था. विवेक सिंह के तबादले के बाद कमिश्नर बन कर आए निकुंज श्रीवास्तव ने इन फाइलों को संदिग्ध मानते हुए एक कमेटी बनाई थी, जिसमें इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ था. बाद में इसकी शिकायत लोकायुक्त में की गई.

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लोकायुक्त पुलिस ने सिर्फ 69 फाइलों के संबंध में 10 केस दर्ज किए थे. इस मामले में तत्कालीन निगम कमिश्नर विवेक सिंह. कार्यपालन यंत्री केके श्रीवास्तव, आरके बत्रा, कुसुम लता शर्मा, हरि सिंह खेरवार, मोहित जैन सुनील गुप्ता भी बरी किए गए हैं. राजेंद्र दीक्षित अजय पाल राठौर की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है. दोषी पाए गए सब इंजीनियर सत्येंद्र भदौरिया और अजय पांडवीय पर 18000 का अर्थदंड भी लगाया गया है. जबकि ठेकेदार रजत जयंती पर 6000 रुपए का अर्थदंड लगाया गया है. आरोपियों ने 1.17 लाख के कार्य की 12 फर्जी फाइलें तैयार की थीं.

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