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ग्वालियर-चंबल में रिकॉर्डतोड़ आई बंदूक लाइसेंस की डिमांड, नेताजी भी कह रहे, हुजूर कर दो काम - मध्य प्रदेश चुनाव की खबरें

ग्वालियर-चंबल अंचल में इस बार रिकॉर्डतोड़ लाइसेंसी हथियारों के लिए आवेदन आए हैं. पिछले 6 महीने में ही 30 हजार से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं. पूरे चंबल अंचल में बंदूक को शान और रुतबे से जोड़कर देखा जाता है. जिससे लोग नेताओं के पास लाइसेंस बनवाने के लिए अनुशंसा करवाते हैं. देखिए ईटीवी भारत की यह स्पेशल रिपोर्ट......

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चंबल हथियार और चुनाव
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Published : Oct 9, 2020, 7:32 PM IST

ग्वालियर। चंबल का नाम सुनते ही लोगों के जहन में बागी, बीहड़ और डकैतों की तस्वीर उभरती है. यही वजह है कि यह इलाका बंदूकों के नाम से पहचाना जाता है. इसका कारण है कि मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा लाइसेंस हथियार ग्वालियर-चंबल अंचल में पाए जाते हैं. क्योंकि यहां के लोग अपने कंधे पर लाइसेंसी बंदूक रखना अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं. यही कारण है कि चुनाव के दौरान यहां के लोग बिजली, पानी, सड़क और अन्य बुनियादी सुविधाओं को छोड़कर माननीयों के पास लाइसेंस बनवाने के लिए अनुशंसा करवाते हैं. तो नेताजी भी वोटों की चाह में जनता के लिए बंदूक के लाइसेंस बनवाने के लिए अधिकारियों को अनुशंसा करते हैं.

ग्वालियर-चंबल में बढ़ी लाइसेंसी बंदूक की डिमांड

6 महीने में आए 30 हजार से ज्यादा आवेदन

इस साल अप्रैल से सितंबर के बीच भिंड, मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी और दतिया में बंदूक लाइसेंस बनवाने की 30 हजार से अधिक आवेदन आ गए हैं. जितने आवेदन 6 माह में आए हैं. सामान्य दिनों में इतने आवेदन एक साल में आते हैं. 80 प्रतिशत आवेदन उन विधानसभा सीटों से आए है जहां उपचुनाव होने हैं. बताया जा रहा कि पूर्व विधायकों के पास रोजाना 20 से 25 लोग से बंदूक लाइसेंस की अनुशंसा लेकर पहुंच रहे हैं. कुछ लोग तो तत्काल कलेक्टर और एसपी तक को फोन लगाने का दबाव बना रहे हैं.

इस बार बढ़ी लाइसेंसी हथियारों की डिमांड
इस बार बढ़ी लाइसेंसी हथियारों की डिमांड

ये भी पढ़ेंः 8 सीटों पर तय होगा दलबदलू नेताओं का भविष्य, कौन जीतेगा जनता का दिल ?

आसानी से नहीं बनता लाइसेंस

ग्वालियर, मुरैना, भिंड, शिवपुरी और दतिया इन सभी जिलों में लोगों को बंदूक रखने का शौक है. लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल में बंदूक के लिए लाइसेंस बनवाना आम बात नहीं है. क्योंकि यहां का हर व्यक्ति चाहता है कि उसके कंधे पर लाइसेंसी बंदूक मौजूद हो. यही वजह है यहां के एसपी कलेक्टर भी आसानी से लाइसेंस बनवाने की अनुशंसा नहीं देते. जिससे लोग शस्त्र लाइसेंसी बंदूक बनवाने के लिए या तो हजारों रुपए की रिश्वत देते हैं या फिर मंत्री या विधायक से शस्त्र लाइसेंस बनवाने के लिए अधिकारियों को सिफारिश करवाते हैं. लेकिन जब भी ग्वालियर चंबल अंचल में चुनाव होता है तो आमतौर पर जनता चुनावों से पहले नेताओं को मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली पानी सड़क को लेकर भेजती है. लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल में ऐसा नहीं है यहां लोग चुनाव से पहले बंदूक के लाइसेंस के लिए नेताओं के पीछे पड़ जाते हैं.

शान मानी जाती है बंदूक
शान मानी जाती है बंदूक

नेताजी करते हैं सिफारिश

रिटायर्ड डीएसपी केडी केडी सोनकिया कहते है कि पहले ग्वालियर चंबल अंचल में शस्त्र लाइसेंस रखने का चलन डाकुओं के समय से हुआ है. क्योंकि उस समय डाकुओं का आतंक बहुत था और यही वजह है लोगों को अपनी आत्मरक्षा करने के लिए लाइसेंसी बंदूक की जरूरत पड़ती थी. तब जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारी भी शस्त्र लाइसेंस की अनुशंसा आसानी से कर देते थे. लेकिन अब यह शस्त्र लाइसेंस इस अंचल के लोगों के लिए एक स्टेटस सिंबल बन गया है. हर कोई चाहता है कि उसके घर एक लाइसेंसी बंदूक हो.

ये भी पढ़ेंः किसकी सरकार ? राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का दावा, उपचुनाव में सभी 28 सीटों पर जीतेगी बीजेपी

वही दूसरा पहलू यह भी है कि इस समय ग्वालियर चंबल के लोगों को लाइसेंसी बंदूक खरीद कर किसी भी जगह 10 से 15 हजार की नौकरी गार्ड के रूप में आसानी से मिल जाती है. इसलिए यहां के लोग शस्त्र लाइसेंस खरीदने के लिए विधायक से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी एप्रोच लगाते हैं.

चंबल में सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार
चंबल में सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार

नेताओं की राय

इसको लेकर बीजेपी प्रवक्ता आशीष अग्रवाल का कहना है कि ग्वालियर चंबल अंचल पूरे देश भर में बंदूक लाइसेंस के लिए मशहूर है. लेकिन बीजेपी के मंत्री और विधायक उन लोगों को ही लाइसेंस दिलवाने की अनुशंसा करते हैं जिनको जरूरत होती है. वही कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है कि शस्त्र लाइसेंस लेने की एक प्रक्रिया होती है सस्त्र लाइसेंस उन्हें दिया जाता है जो इनकम टैक्स पेयर हो या आपसी दुश्मनी हो. लेकिन अब ग्वालियर चंबल अंचल में शस्त्र लाइसेंस लेना एक स्टेटस सिंबल हो चुका है और इसकी अनुशंसा करने में अहम भूमिका यहां के मंत्री और विधायक निभाते हैं.

ये भी पढ़ेंः 'मेरी संपत्ति 300 साल पुरानी है, मेरा सवाल उन लोगों से जो नए-नए महाराज बने हैं' : ज्योतिरादित्य सिंधिया

नेता कुछ भी कहे, लेकिन जानकार हैरानी होगी कि मध्य प्रदेश में बिहार से भी ज्यादा लाइसेंसी हथियार है. कभी डकैतों के लिए कुख्यात रहे ग्वालियर-चंबल में लोग अपनी रक्षा के लिए हथियार रखते थे. लेकिन यह मजबूरी अब शौक में तब्दील हो गयी. अब हथियार यहां स्टेट्स सिंबल बन गया है. जिस घर में बंदूक नहीं मिली तो उसे कमजोर माना जाता है. लिहाजा यहां के लोगों ने बंदूक को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. यहां के हर घर में आपको बंदूक दिख जाएगी. यही वजह है कि यहां बंदूक की धमक कभी भी सुनाई दे जाती है.

ग्वालियर। चंबल का नाम सुनते ही लोगों के जहन में बागी, बीहड़ और डकैतों की तस्वीर उभरती है. यही वजह है कि यह इलाका बंदूकों के नाम से पहचाना जाता है. इसका कारण है कि मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा लाइसेंस हथियार ग्वालियर-चंबल अंचल में पाए जाते हैं. क्योंकि यहां के लोग अपने कंधे पर लाइसेंसी बंदूक रखना अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं. यही कारण है कि चुनाव के दौरान यहां के लोग बिजली, पानी, सड़क और अन्य बुनियादी सुविधाओं को छोड़कर माननीयों के पास लाइसेंस बनवाने के लिए अनुशंसा करवाते हैं. तो नेताजी भी वोटों की चाह में जनता के लिए बंदूक के लाइसेंस बनवाने के लिए अधिकारियों को अनुशंसा करते हैं.

ग्वालियर-चंबल में बढ़ी लाइसेंसी बंदूक की डिमांड

6 महीने में आए 30 हजार से ज्यादा आवेदन

इस साल अप्रैल से सितंबर के बीच भिंड, मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी और दतिया में बंदूक लाइसेंस बनवाने की 30 हजार से अधिक आवेदन आ गए हैं. जितने आवेदन 6 माह में आए हैं. सामान्य दिनों में इतने आवेदन एक साल में आते हैं. 80 प्रतिशत आवेदन उन विधानसभा सीटों से आए है जहां उपचुनाव होने हैं. बताया जा रहा कि पूर्व विधायकों के पास रोजाना 20 से 25 लोग से बंदूक लाइसेंस की अनुशंसा लेकर पहुंच रहे हैं. कुछ लोग तो तत्काल कलेक्टर और एसपी तक को फोन लगाने का दबाव बना रहे हैं.

इस बार बढ़ी लाइसेंसी हथियारों की डिमांड
इस बार बढ़ी लाइसेंसी हथियारों की डिमांड

ये भी पढ़ेंः 8 सीटों पर तय होगा दलबदलू नेताओं का भविष्य, कौन जीतेगा जनता का दिल ?

आसानी से नहीं बनता लाइसेंस

ग्वालियर, मुरैना, भिंड, शिवपुरी और दतिया इन सभी जिलों में लोगों को बंदूक रखने का शौक है. लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल में बंदूक के लिए लाइसेंस बनवाना आम बात नहीं है. क्योंकि यहां का हर व्यक्ति चाहता है कि उसके कंधे पर लाइसेंसी बंदूक मौजूद हो. यही वजह है यहां के एसपी कलेक्टर भी आसानी से लाइसेंस बनवाने की अनुशंसा नहीं देते. जिससे लोग शस्त्र लाइसेंसी बंदूक बनवाने के लिए या तो हजारों रुपए की रिश्वत देते हैं या फिर मंत्री या विधायक से शस्त्र लाइसेंस बनवाने के लिए अधिकारियों को सिफारिश करवाते हैं. लेकिन जब भी ग्वालियर चंबल अंचल में चुनाव होता है तो आमतौर पर जनता चुनावों से पहले नेताओं को मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली पानी सड़क को लेकर भेजती है. लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल में ऐसा नहीं है यहां लोग चुनाव से पहले बंदूक के लाइसेंस के लिए नेताओं के पीछे पड़ जाते हैं.

शान मानी जाती है बंदूक
शान मानी जाती है बंदूक

नेताजी करते हैं सिफारिश

रिटायर्ड डीएसपी केडी केडी सोनकिया कहते है कि पहले ग्वालियर चंबल अंचल में शस्त्र लाइसेंस रखने का चलन डाकुओं के समय से हुआ है. क्योंकि उस समय डाकुओं का आतंक बहुत था और यही वजह है लोगों को अपनी आत्मरक्षा करने के लिए लाइसेंसी बंदूक की जरूरत पड़ती थी. तब जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारी भी शस्त्र लाइसेंस की अनुशंसा आसानी से कर देते थे. लेकिन अब यह शस्त्र लाइसेंस इस अंचल के लोगों के लिए एक स्टेटस सिंबल बन गया है. हर कोई चाहता है कि उसके घर एक लाइसेंसी बंदूक हो.

ये भी पढ़ेंः किसकी सरकार ? राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का दावा, उपचुनाव में सभी 28 सीटों पर जीतेगी बीजेपी

वही दूसरा पहलू यह भी है कि इस समय ग्वालियर चंबल के लोगों को लाइसेंसी बंदूक खरीद कर किसी भी जगह 10 से 15 हजार की नौकरी गार्ड के रूप में आसानी से मिल जाती है. इसलिए यहां के लोग शस्त्र लाइसेंस खरीदने के लिए विधायक से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी एप्रोच लगाते हैं.

चंबल में सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार
चंबल में सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार

नेताओं की राय

इसको लेकर बीजेपी प्रवक्ता आशीष अग्रवाल का कहना है कि ग्वालियर चंबल अंचल पूरे देश भर में बंदूक लाइसेंस के लिए मशहूर है. लेकिन बीजेपी के मंत्री और विधायक उन लोगों को ही लाइसेंस दिलवाने की अनुशंसा करते हैं जिनको जरूरत होती है. वही कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है कि शस्त्र लाइसेंस लेने की एक प्रक्रिया होती है सस्त्र लाइसेंस उन्हें दिया जाता है जो इनकम टैक्स पेयर हो या आपसी दुश्मनी हो. लेकिन अब ग्वालियर चंबल अंचल में शस्त्र लाइसेंस लेना एक स्टेटस सिंबल हो चुका है और इसकी अनुशंसा करने में अहम भूमिका यहां के मंत्री और विधायक निभाते हैं.

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नेता कुछ भी कहे, लेकिन जानकार हैरानी होगी कि मध्य प्रदेश में बिहार से भी ज्यादा लाइसेंसी हथियार है. कभी डकैतों के लिए कुख्यात रहे ग्वालियर-चंबल में लोग अपनी रक्षा के लिए हथियार रखते थे. लेकिन यह मजबूरी अब शौक में तब्दील हो गयी. अब हथियार यहां स्टेट्स सिंबल बन गया है. जिस घर में बंदूक नहीं मिली तो उसे कमजोर माना जाता है. लिहाजा यहां के लोगों ने बंदूक को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. यहां के हर घर में आपको बंदूक दिख जाएगी. यही वजह है कि यहां बंदूक की धमक कभी भी सुनाई दे जाती है.

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