ग्वालियर। शहर का बहुप्रतीक्षित रोप-वे एक बार फिर सियासी खेल में फंस गया है. खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इसका शिलान्यास कर चुके हैं. फिर भी ये 15 सालों से फाइलों में ही दबा हुआ है. कांग्रेस का आरोप है कि सिंधिया परिवार इस काम में अड़चन डाल रहा है.(ropeway gwalior policitcs scindia)
रोप-वे है कि बनता ही नहीं
ग्वालियर शहर राजनीतिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि यहां मोदी सरकार के 2 कैबिनेट मंत्री, शिवराज सरकार के दो मंत्री, कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त बीजेपी की दो कद्दावर नेता हैं. होना तो ये चाहिए था कि यहां ताबड़तोड़ विकास होता. लेकिन एक ही जगह पर इतने दिग्गज लोगों के होने से कई बार सियासी पेंच भी फंस जाते हैं. उदाहरण के तौर पर ग्वालियर शहर में 15 साल पहले रोप-वे का सपना दिखाया गया था. पर्यटन की दृष्टि से ये शहर के लिए काफी महत्वपूर्ण था. दुर्भाग्य से रोप-वे बीते 15 सालों से सरकारी फाइलों में दबा हुआ है. इसका दो (gwalior ropeway not built in 15 years)बार शिलान्यास हो चुका है.खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान इसका शिलान्यास कर चुके हैं. फिर भी शहर का ये सपना फाइलों में ही दफन है.
दो बार हुआ शिलान्यास, 15 सालों से फाइलों में दफन
रोप-वे ग्वालियर के सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का ड्रीम प्रोजेक्ट है. महापौर रहते हुए उन्होंने सीएम शिवराज सिंह चौहान से इसका शिलान्यास करवाया था. लेकिन 15 सालों से ये अटका हुआ है. इसका दो बार शिलान्यास अलग-अलग लोकेशन पर हो चुका है. अब रोपवे(ropeway gwalior scindia congress shivraj) की क्या स्थिति है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का कहना है कि यह दुर्भाग्य की बात है. जब ग्वालियर के नेता पर्यटन को बढ़ाने के लिए बैठक कर रहे हैं, लेकिन महत्वकांक्षी योजना और रोपवे को लेकर कोई भी बात नहीं कर रहा है. सांसद विवेक नारायण शेजवलकर इस प्रोजेक्ट के स्थान में बदलाव और लेट लतीफी को लेकर नाराज हैं. इस बारे में उन्होंने नगर निगम कमिश्नर को कई बार पत्र भी लिखे हैं.
सिंधिया के कारण अटका रोप-वे प्रोजेक्ट!
असल में रोपवे को लेकर सबसे बड़ा विवाद क्लिपर पैनल के पास सिंधिया स्कूल का होना है. जहां पर रोप-वे का पैनल लगना है वहां सिंधिया स्कूल के कई कमरे बने हुए हैं. रोपवे बनने के बाद स्कूल की प्राइवेसी में दखल पढ़ सकता है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आरपी सिंह का आरोप है कि पर्यटन की दृष्टि से रोप-वे काफी अहम प्रोजेक्ट है. लेकिन सिंधिया घराने की वजह से यह प्रोजेक्ट धूल खा रहा है. हर बार जय विलास पैलेस के इशारों ने सरकारी आदेशों को फाइलों में बंद हो जाने के लिए मजबूर कर दिया.
सिंधिया स्कूल को क्या समस्या है
बताया जाता है कि पुराने लेआउट में अपर टर्मिनल यानी ऊपरी हिस्से का काम सिंधिया स्कूल परिसर के पास होना है. इससे स्कूल के कामकाज में परेशानी आयेगी. ऐसे में स्कूल प्रबंधन की आपत्ति की वजह से हर बार काम शुरू होने से पहले ही रोक दिया जाता है.
ग्वालियर के रोपवे को लेकर कब-कब क्या हुआ
- 25 मई 2006 को एमआईसी ने प्रोजेक्ट को मंजूरी दी, 5 जून 2018 को दामोदर रोपवे के साथ अनुबंध हुआ
- कंपनी को वोट क्लब के पास फूल बाग स्टेशन से लैंडिंग स्टेशन किला तक निर्माण कराना था
- पुरातत्व विभाग और अन्य विभागों की एनओसी नहीं मिलने के कारण 8 - 10 साल निर्माण शुरू नहीं हो सका
- 9 जुलाई 2015 को फिर से 7 एएसआई से 2 साल में काम करने की एनओसी मिली
- 2020 पुरातत्व ने किले की दीवार को खतरा बताते हुए रोपवे की लैंडिंग दीवार के पास के बजाय दूर करने को कहा. यही मामला फंसा हुआ है
- कंपनी ने अभी तक रोप-वे के कार्य के रूप में फुलवाग स्थित लोअर टर्मिनल बनाया है. इसके अलावा कोई भी कार्य नहीं किया
- दो बार हुआ भूमि पूजन - 10 जनवरी 2010 को रोकने के लिए भूमि पूजन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने तत्कालीन महापौर समीक्षा गुप्ता ने करवाया था
- इसके बाद 25 नवंबर 2015 को महापौर विवेक नारायण शेजवलकर ने ही फूलबाग लोअर टर्मिनल के निर्माण कार्य का भूमि पूजन किया
कुल मिलाकर देखा जाए तो ग्वालियर का रूप भी बीते 15 साल से सियासत में फंसा हुआ है. कभी उसको बीजेपी की सरकार में एनओसी मिलती है. तो कभी कांग्रेस की सरकार उसी एनओसी पर आपत्ति दर्ज करती है. लेकिन ग्वालियर के रोपवे को लेकर प्रशासन से लेकर सत्ताधारी नेताओं के पास अभी तक कोई प्लान नहीं है.