ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय की फूड टेक्नोलॉजी विभाग की छात्रा ने एक ऐसी चॉकलेट बनाई है जो शुगर कंट्रोल करेगी (chocolate which control sugar in Gwalior). इस चॉकलेट का अभी क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है, बाद में पेटेंट कराने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. बताया जा रहा है कि यह हेल्दी चॉकलेट शुगर और पाचन से जुड़ी समस्याओं को हल करेगा. यह पूरी रिसर्च अपने अंतिम चरण में है और इसे बायोटेक डार्क हेल्दी चॉकलेट का नाम दिया गया है. ग्वालियर की जीवाजी विश्वविद्यालय में फूड टेक्नोलॉजी विभाग की छात्रा चांदनी ने इसे बनाया है और अब वो इसके पेटेंट के लिए तैयारी कर रही है. विश्वविद्यालय में छात्रा चांदनी MSC फूड टेक्नोलॉजी के थर्ड सेमेस्टर की पढ़ाई कर रही है और वो इससे आगे बढ़कर शुगर पेशेंट्स के लिए कुछ और फूड सप्लीमेंट्स भी तैयार करना चाहती है.
कई सारे गुणों से बना है यह चॉकलेट
चॉकलेट जो स्वाद में भी बेहतर हो और जिसे खाने से शुगर कंट्रोल रहे, साथ ही पाचन संबंधी समस्याओं से भी छुटकारा मिले, ऐसे ही कई गुणों से भरपूर इस चॉकलेट को लेकर चांदनी काफी उत्साहित है. यह हेल्दी चॉकलेट लगभग 2 घंटे में बनकर तैयार हो जाती है, और कई गुणों की खान है. इसे बनाने में खर्च भी ज्यादा नहीं आता. जीवाजी विश्वविद्यालय के फूड एंड टेक्नोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ जीवीकेएस प्रसाद के मुताबिक इस चॉकलेट के सेवन से शरीर में बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों को संतुलित किया जा सकता है. यह चॉकलेट आंतों को मजबूत करने में सहायक होती है, साथ ही यह पाचन को संतुलित करती है. इससे भूख भी अच्छी लगती है. इसके अलावा यह शरीर के अंदर वसा फैट को भी कंट्रोल करने में मुख्य भूमिका निभाती है.
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आम लोगों तक पहुंचाने की हो रही पूरी तैयारी
फूड एंड टेक्नोलॉजी विभाग की प्रोफेसर निधि गोस्वामी ने बताया की प्री बायोटिक डार्क चॉकलेट को तैयार करने के लिए इसका क्वालिटेटिव और क्वांटिटेटिव एनालिसिस किया गया. जिसमें पाया गया कि इसे तैयार करने के लिए सभी कंटेंट उचित मात्रा में मिलाए गए हैं. इस हेल्दी चॉकलेट को तैयार करने के लिए मिल्क पाउडर और कोको पाउडर को मिक्स करके कुछ देर के लिए रख देते हैं. इसके बाद सामान्य बटर इसमें मिक्स करते हैं, और थोड़ी देर बाद इस मिक्सचर में प्रोबायोटिक मिलाते हैं, और इस मिश्रण को 2 घंटे के लिए मोल्ड पर रख दिया जाता है. इसके बाद हेल्दी चॉकलेट लगभग 2 घंटे में बनकर तैयार हो जाती है. अभी इस पर क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है, जिसमें लगातार सफलता मिल रही है. क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने के बाद इसे पेटेंट कराया जाएगा, और इसके बाद इसे आम लोगों के लिए भी उपलब्ध कराया जाएगा.