छिंदवाड़ा। क्या आप जानते हैं कि एक बाघ को बचाने में सालाना लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं और यही बाघ हमारे देश की धरोहर के साथ ही देश और प्रदेश की पहचान भी हैं. लेकिन इस महत्वपूर्ण पहचान को लालच के चक्कर में वन विभाग की मिलीभगत से ही अपनी आंखों के सामने भेंट चढ़ते हुए देखना पड़ रहा है, जिस बाघ की झलक पाने के लिए लोग हजारों रुपए खर्च कर हजारों मील दूर से छिंदवाड़ा और पड़ोसी जिले सिवनी में आते हैं दिनों-दिन जानबूझकर उनकी हत्या करवाना मिलीभगत की ओर सीधा इशारा कर रही है. Hunting Tiger in Pench River
3 दिनों तक नदी में पड़ा रहा बाघ का शव विभाग का खुफिया तंत्र कमजोर? बताया जा रहा है कि कोनापिंडरई के पेंच नदी में जो बाघ का शव मिला था, वह करीब 3 दिनों पुराना था. अगर 3 दिनों से पेंच नदी में बाघ का शव था और वन विभाग के अधिकारी कर्मचारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी, अंदाजा लगाया जा सकता है कि वन विभाग का अमला कितनी मुस्तैदी से काम कर रहा है. हिर्री गांव इतना बड़ा भी नहीं है कि वन विभाग की शिकारियों पर नजर ना जा सके, लेकिन अगर जानबूझकर कोई काम अनदेखा किया जाए तो ऐसे परिणाम सामने आना लाजमी है.
सैकड़ों ट्राली अवैध रेत और जंगली लकड़ियों का मिला जखीरा: कोनापिंडरई की नदी में मिले बाघ के शव के मामले में एसटीएफ ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपी हिर्री के रहने वाले हैं और करंट बिछाकर उन्होंने बाघ का शिकार किया था. दूसरी बड़ी बात है कि इसी गांव में शिकारियों के कब्जे से अवैध रेत का जखीरा भी बरामद हुआ है और जंगली लकड़ी भी लगातार जंगल के रास्ते अवैध रेत का खनन होते रहा और रेत स्टॉक भी हुई साथ ही लकड़ी भी काटी गई, लेकिन वन विभाग के मुस्तेद सिपाहियों को इसकी जानकारी भी नहीं लगी.
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पहले भी इसी गांव मे करंट लगाकर हुआ था बाघ का शिकार: कुछ साल पहले भी गांव के ही जंगल में बाघ का करंट लगाकर शिकार किया गया था, हालांकि उस दौरान भी कुछ शिकारियों को पकड़ा गया था. बताया जाता है शिकारियों को सिर्फ वन विभाग के अमले का ही सहयोग नहीं, बल्कि वन की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाले वन समिति के कई लोगों का भी संरक्षण प्राप्त है. इसी वजह से ही बेखौफ होकर बाघ का शिकार कर लेते हैं, सीताराम वेलवंशी के खेत में करंट लगाकर बाघ का शिकार किया गया था.