भोपाल। मध्य प्रदेश में पिछले 17 दिनों से चल रहा सत्ता का सियासी संग्राम, आज खत्म हो गया. फ्लोर टेस्ट के पहले ही सीएम कमलनाथ ने राज्यपाल लालजी टंडन को इस्तीफा सौंप दिया और प्रदेश में 15 महीनें पहले बनी कांग्रेस की सरकार गिर गई. लेकिन 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस की सरकार 15 महीनों में ही कैसे गिर गई ये बड़ा सवाल है. सरकार गिरने का सबसे ज्यादा नुकसान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को हुआ. क्योंकि कांग्रेस अपने बागी विधायकों को आखिर तक नहीं मना पाई. इस पूरे ड्रामे में दिग्विजय सिंह को ही विलेन बताया गया.
राजनीतिक जानकार मानते हैं कांग्रेस की सरकार दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच आपसी होड़ की वजह से गिरी. जबकि कमलनाथ के कुछ फैसले भी विधायकों को नागवार गुजरे. सिंधिया को जब सारे रास्ते बंद नजर आए तो वे बीजेपी में शामिल हुए. सिंधिया बीजेपी में गए तो कांग्रेस के होश उड़ गए. दिग्विजय सिंह सरकार बचाने की पूरी जद्दोजहद करते रहें लेकिन बागी विधायक नहीं माने. सवाल यह भी है कि सरकार पर संकट के बादल मंडराते रहे. लेकिन मंत्री-विधायक तमाम कॉन्फिडेंस जताते रहे की उनकी सरकार सुरक्षित है. कमलनाथ सरकार गिरने के कुछ अहम कारण भी सियासी जानकारों ने बताए.
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह विधायकों को एकजुट नहीं रख सके
सरकार के गठन की शुरुआत से ही कांग्रेस में असंतोष के सुर सुनाई देने लगे. कुछ विधायक मंत्री न बनाए जाने से नाराज हो नजर आए, तो कुछ विधायक मंत्रियों पर मनमानी करने के आरोप लगाते रहे. सिंधिया समर्थक भी नाराज थे. लेकिन न तो सीएम कमलनाथ और न कांग्रेस आलाकमान इनमें से किसी भी नाराजगी को दूर कर पाया.
राज्यसभा टिकट के लिए बड़े नेताओं में नहीं बन पाया समनव्य
प्रदेश कांग्रेस में राज्यसभा की राह के लिए भी कांग्रेस के कई दावेदार सामने आए. दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में तो सीधी लड़ाई दिखी. जबकि अजय सिंह, सुरेश पचौरी, अरुण यादव, रामकृष्ण कुसमरिया जैसे कई दिग्गज नेता राज्यसभा का टिकट मांगने लगे. लेकिन कांग्रेस आलाकमान यहां भी फेल नजर आया.
सरकार बचाने की जगह बयानबाजी करते रहे कांग्रेस के सभी बड़े नेता
पिछले 17 दिनों से कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल छाए रहे. लेकिन कांग्रेस के सभी बड़े नेता सरकार के बहुमत में होने का दावा तो करते रहे. लेकिन सरकार बचाने में नाकामयाब रहे. यह भी कांग्रेस की रणनीति को सवालों के घेरे में खड़ा कर गया.
कांग्रेस आलाकमान नहीं ले पाया कोई ठोस निर्णय
मध्य प्रदेश कांग्रेस में सरकार गठन के बाद से ही असंतोष था. कांग्रेस आलाकमान इस बात से परिचत था. लेकिन न तो कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी कोई निर्णय ले पाए और कमलनाथ कोई बड़ा फैसला कर पाए. यह भी सरकार गिरने का एक बड़ा कारण माना गया.
आखिर दिग्विजय सिंह के भरोसे ही क्यों बैठे रहे कमलनाथ
सरकार पर जैसे ही संकट के बादल घिरे कमलनाथ ने सरकार बचाने की पूरी जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह को सौंपी. सवाल यहां भी खड़े हुए क्योंकि सुरेश पचौरी, अजय सिंह, अरुण यादव जैसे कई सीनियर नेता इस पूरे मामले में नजर नहीं आए.
ज्योतिरादित्य सिंधिया को नजरअंदाज करना पड़ा भारी
ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार सरकार को चेतावनी देते रहे. लेकिन कमलनाथ सरकार शायद उन्हें नजरअंदाज कर गई. सिंधिया इस बार पीछे नहीं हटे और बीजेपी में शामिल हो गए. सिंधिया के कांग्रेस से हटते ही सरकार गिरने की स्क्रिप्ट लिखी गई और सरकार आखिरकार गिर गई.
यानि सरकार गिरने में दिग्विजय सिंह पर भी ही सबसे ज्यादा सवाल खड़े हो रहे हैं. कमलनाथ सरकार में मंत्री उमंग सिंघार ने जब दिग्विजय सिंह पर निशाना साधा. तब भी न तो कांग्रेस सचेत हुई और कांग्रेस के विधायकों ने भी लगातार दिग्विजय सिंह पर सरकार में दखल का आरोप लगाया. लेकिन कांग्रेस आलाकमान और न ही कमलनाथ अपनी सरकार पर आने वाले संकट का अंदेशा लगा पाए.