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BOARD EXAM को लेकर छात्रों को नहीं लेना चाहिए टेंशन, जानिए मनोचिकित्सक के टिप्स - 10th bhoard exam

मैट्रिक और इंटर के एग्जाम का दौर चल रहा है और इस समय छात्र-छात्राएं अपने पढ़ाई को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित रहते हैं. छात्र इस दौरान कई मानसिक तनाव से गुजरते हैं. इससे संबंधित सलाह के लिए ईटीवी भारत की टीम ने मनोचिकित्सक डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा से खास बातचीत की. देखिए क्या कहा उन्होंने और क्या टिप्स दिए?

BOARD EXAM
डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा
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Published : Feb 14, 2020, 9:27 AM IST

रांची। इस समय मैट्रिक और इंटर के एग्जाम का दौर चल रहा है और ऐसे समय में छात्र-छात्राएं अपनी पढ़ाई को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित रहते हैं. इस दौरान उन्हें कई मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ता है, अच्छे अंक और बेहतर परिणाम को लेकर छात्र-छात्रा सबसे ज्यादा तैयारियां करते हैं.

डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा,

स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ कोचिंग का भी तनाव लेकर चिंतित रहते हैं, बच्चों में यह चिंता जरूर रहती है. अगर एग्जाम का रिजल्ट सही नहीं हुआ तो बेहतर कॉलेज और मनपसंद सब्जेक्ट का पढ़ाई नहीं कर सकेंगे, उसके साथ-साथ अभिभावक भी चिंतित रहते हैं उनके बच्चे एक बेहतर रिजल्ट लाए.

अभिभावकों को भी अपने बच्चों से काफी ज्यादा उम्मीदें रहती है, इन तमाम चीजों के लेकर मनोचिकित्सक डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा से खास बातचीत की ईटीवी भारत के संवाददाता विजय कुमार गोप ने कि आखिर एग्जाम के समय बच्चों को किस तरह से तैयारियां करनी चाहिए.

मनोचिकित्सक डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा की माने तो बच्चों को एग्जाम के समय ज्यादा स्ट्रेस नहीं लेनी चाहिए, जिस तरीके से वह नियमित रूटीन के अनुसार खेलकूद, व्यायाम और पढ़ाई करते हैं उसी तरह से करें. एग्जाम के समय थोड़ ज्यादा पढ़ाई पर भी ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन परिणाम के दृष्टिकोण से नहीं सोते समय फेसबुक, व्हाट्सएप का इस्तेमाल कम करें.

कई बार ऐसा होता है कि बच्चे एग्जाम के समय सबसे ज्यादा पढ़ाई को लेकर चिंतित होते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए एग्जाम को लेकर 1 साल पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए. कभी-कभी बच्चे एग्जाम के समय 4 से 5 इंस्टीट्यूट और ट्यूशन ज्वाइन कर लेते हैं.

डॉ सिद्धार्थ सिन्हा ने अभिभावकों के लिए भी कई टिप्स दिए हैं, उन्होंने कहा कि एग्जाम के समय बच्चों का बेहतर रिजल्ट हो. इसको लेकर अभिभावक चिंतित रहते हैं ऐसा होना भी चाहिए लेकिन बहुत ज्यादा उनके ऊपर दबाव ही नहीं डालना चाहिए. क्योंकि बच्चे जितना एग्जाम को लेकर तैयारियां करेंगे परिणाम भी उतना ही आएगा.

एक्स्ट्रा बर्डन बच्चों के अंदर कभी नहीं देना चाहिए. अभिभावक कभी-कभी बच्चों में टारगेट रख देते हैं कि इस तरीका का परिणाम नहीं आया तो अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में एडमिशन नहीं होगा ऐसा नहीं है.

रांची। इस समय मैट्रिक और इंटर के एग्जाम का दौर चल रहा है और ऐसे समय में छात्र-छात्राएं अपनी पढ़ाई को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित रहते हैं. इस दौरान उन्हें कई मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ता है, अच्छे अंक और बेहतर परिणाम को लेकर छात्र-छात्रा सबसे ज्यादा तैयारियां करते हैं.

डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा,

स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ कोचिंग का भी तनाव लेकर चिंतित रहते हैं, बच्चों में यह चिंता जरूर रहती है. अगर एग्जाम का रिजल्ट सही नहीं हुआ तो बेहतर कॉलेज और मनपसंद सब्जेक्ट का पढ़ाई नहीं कर सकेंगे, उसके साथ-साथ अभिभावक भी चिंतित रहते हैं उनके बच्चे एक बेहतर रिजल्ट लाए.

अभिभावकों को भी अपने बच्चों से काफी ज्यादा उम्मीदें रहती है, इन तमाम चीजों के लेकर मनोचिकित्सक डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा से खास बातचीत की ईटीवी भारत के संवाददाता विजय कुमार गोप ने कि आखिर एग्जाम के समय बच्चों को किस तरह से तैयारियां करनी चाहिए.

मनोचिकित्सक डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा की माने तो बच्चों को एग्जाम के समय ज्यादा स्ट्रेस नहीं लेनी चाहिए, जिस तरीके से वह नियमित रूटीन के अनुसार खेलकूद, व्यायाम और पढ़ाई करते हैं उसी तरह से करें. एग्जाम के समय थोड़ ज्यादा पढ़ाई पर भी ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन परिणाम के दृष्टिकोण से नहीं सोते समय फेसबुक, व्हाट्सएप का इस्तेमाल कम करें.

कई बार ऐसा होता है कि बच्चे एग्जाम के समय सबसे ज्यादा पढ़ाई को लेकर चिंतित होते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए एग्जाम को लेकर 1 साल पहले से ही तैयारियां करनी चाहिए. कभी-कभी बच्चे एग्जाम के समय 4 से 5 इंस्टीट्यूट और ट्यूशन ज्वाइन कर लेते हैं.

डॉ सिद्धार्थ सिन्हा ने अभिभावकों के लिए भी कई टिप्स दिए हैं, उन्होंने कहा कि एग्जाम के समय बच्चों का बेहतर रिजल्ट हो. इसको लेकर अभिभावक चिंतित रहते हैं ऐसा होना भी चाहिए लेकिन बहुत ज्यादा उनके ऊपर दबाव ही नहीं डालना चाहिए. क्योंकि बच्चे जितना एग्जाम को लेकर तैयारियां करेंगे परिणाम भी उतना ही आएगा.

एक्स्ट्रा बर्डन बच्चों के अंदर कभी नहीं देना चाहिए. अभिभावक कभी-कभी बच्चों में टारगेट रख देते हैं कि इस तरीका का परिणाम नहीं आया तो अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में एडमिशन नहीं होगा ऐसा नहीं है.

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