भोपाल। बीजेपी नेता प्रीतम सिंह लोधी की ब्राम्हणों को लेकर दी गई टिप्पणी की आंच क्या जल्दी ठंडी पड़ जाएगी. क्या पार्टी का नोटिस, प्रीतम लोधी की माफी और सफाईनामें के बाद मामले पर आसानी से पूर्ण विराम लग जाएगा.ब्राह्मण समाज की नाराजगी, Brahman Community Warn BJP सड़कों पर होता विरोध और प्रीतम लोधी की गिरफ्तारी की मांग pritam lodhi statement अब ब्राम्हण समाज के सम्मान का सवाल बन चुका है. प्रीतम लोधी के बीजेपी से निष्कासन और उन पर रासुका लगाए जाने पर अड़े ब्राम्हण समाज ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो 2018 की तरह 2023 में एक बार फिर बीजेपी को सबक सिखाया जाएगा. तो क्या मान लिया जाए कि बीजेपी और शिवराज के लिए 'माई का लाल' पार्ट टू की ज़मीन तैयार होने लगी है.
विरोध देख लोधी बोले, ब्राम्हण तो देवता हैं: प्रीतम लोधी के ब्रहाम्ण समाज को लेकर दिए गए अपमानजनक बयान के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद बवाल मच गया. पार्टी अध्यक्ष ने उनके बयान पर स्पष्टीकरण मांगा. प्रीतम लोधी बगैर समय गंवाए भोपाल पहुंचे और संगठन को स्पष्टीकरण भी दिया और लिखित में ब्राम्हण समाज से माफी मांगी है. उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान के टुकड़ों को जोड़कर ऐसा बना दिया गया है जिसकी वजह से विवाद की स्थिति बनी है. अब प्रीतम लोधी ब्राह्मण वर्ग को देवतातुल्य बता रहे हैं और गुहार लगा रहे हैं कि ब्राम्हण समाज बड़ा दिल दिखाकर उन्हें क्षमा कर दे.
ब्राह्मणों ने किया लोधी का बायकॉट: कई ब्राम्हण संगठनों ने ये निर्णय भी लिया है कि प्रीतम लोधी ने धर्म का प्रचार करने वाले ब्राम्हणों और कथा वाचकों को लेकर जो टिप्पणी की है उसके विरोधस्वरुप अब कोई उनके घर पूजा पाठ के लिए नहीं जाएगा. संगठन की ओर से प्रदेश भर के ब्राम्हणों से ये अपील की गई है. अखिल भारतीय ब्राम्हण समाज के प्रमुख पुष्पेन्द्र मिश्रा का कहना है कि जो ब्राम्हण देवता का इतना अपमान करे, ऐसी घृणित विचारधारा के व्यक्ति के यहां कोई भी ब्राम्हण पूजा पाठ नहीं कराएगा.
लोधी का बयान क्या माई का लाल पार्ट 2: तस्वीर एक दम साफ है. चुनावी साल से कुछ दिन पहले ही ब्राम्हण वोटर को नाराज करना क्या बीजेपी के लिए एक बार फिर सियासी मात की पटकथा लिखेगा. मध्यप्रदेश में ब्राह्मणों की नाराजगी कहां कितना असर दिखा सकती है. इस पर गौर करना जरूरी है. 2018 के विधानसभा चुनाव में सीएम शिवराज सिंह के दिए गए एक बयान 'माई का लाल' का असर ग्वालियर चंबल में बीजेपी देख चुकी है.
- बीजेपी के सत्ता से बेदखल होने की वजह बना था ग्वालियर चंबल, प्रीतम लोधी भी इसी इलाके से आते हैं.
- यहां की 34 सीटों में से कुल सात विधानसभा सीटों पर सिमट गई थी बीजेपी और कांग्रेस ने 26 सीटों के साथ यहां बड़ी जीत हासिल की थी.
- इलाके में 28 फीसदी सवर्ण आबादी की नाराज़गी ने 'माई के लाल' का ये नतीजा दिया था.
- ऐसे में इस बार ब्राम्हण की नाराज़गी को कम इसलिए नहीं आंका जा सकता है. केवल ग्वलियर चंबल ही नहीं विंध्य में भी 29 फीसदी सवर्ण आबादी है.
- ब्राम्हण वोटर भी बहुतायत में हैं महाकौशल में भी सवर्ण आबादी 22 फीसदी के करीब है.
पार्टी ने प्रीतम लोधी को भले ही पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया है, लेकिन ब्राह्मण समाज की दो और मांग हैं. जिसमें लोधी की गिरफ्तार और उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत मामला दर्ज किए जाने की है. ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर बीजेपी समय रहते लोधी प्रकरण को अगर नहीं संभाल पाई तो आगामी विधानसभा चुनाव 2023 में ब्राह्मणों की नाराजगी उसे बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है.