ये ऐसा शाही घराना जो देश को 25 बार से ज्यादा सांसद दे चुका है. मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल की सियासत के ये सबसे बड़े खिलाड़ी रहे हैं. एक ऐसा राजघराना जिनके खून में सियासत है. जोश और जज्बे के साथ बगावत भी ये डंके की चोट करता है. बात करते हैं सिंधिया राजपरिवार की. सिंधिया परिवार 1957 से सियासी मैदान में है. तब से अब तक ये पूर्व राजघराना 28 सांसद पार्लियामेंट में भेज चुका है.
सिंधिया राजनीति का केन्द रहा जयविलास महल
ग्वालियर का जयविलास महल आजादी के बाद सिंधिया घराने की राजनीति का एक केंद्र रहा है. देश के मध्य में बिखऱी हुई कई रियासतों को जोड़कर जब मध्य भारत नाम का एक राज्य बनाया गया. ग्वालियर परिवार के मुखिया जिवाजीराव इन सबको कंट्रोल करते थे. वे ही इनकी रियासतों की धुरी थे.
जीवाजीराव सिंधिया ने थामा कांग्रेस का हाथ
50 के दशक में देश में कांग्रेस छाई हुई थी. इसकी तरह ग्वालियर क्षेत्र में सिंधिया परिवार की तूती बोलती थी. कांग्रेस चाहती थी कि सिंधिया राजपरिवार के मुखिया जिवाजीराव भी कांग्रेस से जुड़ जाएं. जानकार बताते हैं कि जीवाजीराव राजनीति से दूर रहना चाहते थे. लेकिन उनकी पत्नी राजमाता विजयाराजे ने उन्हें राजनीति की पिच पर खेलने के लिए मना लिया. 1957 में जीवाजीराव कांग्रेस के टिकट पर गुना से कांग्रेस के प्रत्याशी बने. जीत के साथ सिंधिया परिवार ने भारत की राजनीति में धमाकेदार एंट्री की.
विजयाराजे को रास नहीं आई कांग्रेस
विजयाराजे सिंधिया को भी कांग्रेस ने 1962 के आम चुनावों में ग्वालियर से मैदान में उतारा. 1957 में सिंधिया परिवार ने गुना में धमाकेदार जीत दर्ज की थी, तो इस बार विजयाराजे ने विरोधियों को धूल चटा दी. फिर किन्हीं कारणों से राजमाता विजयाराजे का कांग्रेस से मोहभंग हो गया. 1967 में विधानसभा चुनाव में वे स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में खड़ी हुईं. इस बार भी जीत उन्हीं की हुई. पहले कांग्रेस, फिर स्वतंत्र उम्मीदवार और अब बीजेपी से उनकी नजदीकियां बढ़ने लगी.विजयाराजे ने 1989 के आम चुनाव में बीजेपी के टिकट पर गुना लोकसभा से चुनाव लड़ा. इस बार वे एक लाख से ज्यादा मतों से जीतीं .इसके बाद वे हमेशा के लिए बीजेपी में ही रहीं.
माधवराव की राजमाता से बगावत!
जानकार कहते हैं कि राजमाता विजयाराजे के कहने पर ही उनके बेटे माधवराव सिंधिया भी राजनीति के मैदान में उतरे. माधवराव ने 1971 में जनसंघ के टिकट पर गुना से लोकसभा चुनाव लड़ा. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को डेढ़ लाख वोटों से हराया. 1977 के आम चुनाव में ग्वालियर सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे और फिर जीते. 1979 में केन्द्र में मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई. जनवरी 1980 में आम चुनाव की घोषणा हुई. जनता पार्टी ने राजमाता विजयाराजे को रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ाने की घोषणा की. ये वो वक्त था जब माधवराव सिंधिया के संजय गांधी के साथ रिश्ते बन रहे थे. माधवराव ने अपनी मां विजयाराजे से अपना फैसला बदलने के लिए कहा.विजयाराजे नहीं मानीं.यहीं से मां-बेटे के राजनीति रिश्ते में दरार आ गई.1980 तक माधवराव कांग्रेस के हो चुके थे. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर उन्होंने जीत दर्ज की. इसके उलट विजयाराजे सिंधिया इंदिरा गांधी से चुनाव हार गईं.
वसुंधरा को चुनौतियों से लड़ना आता है
माधवराव सिंधिया ने अपनी मां से अलग रास्ता चुनकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. लेकिन उनकी बहन वसुंधरा राजे भाजपा का हाथ पकड़कर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ रही थीं . 8 मार्च 1953 को मुम्बई में जन्मी वसुंधरा राजे की शादी राजस्थान में धौलपुर के जाट राजघराने में हुई. वसुंधरा राजे ने अपना पहला चुनाव 1984 में मध्य प्रदेश के भिंड लोकसभा से लड़ा. इस वक्त सारे देश में इंदिरा गांधी की हत्या के कारण कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर चल रही थी. इस सहानुभुति लहर ने बड़े-बड़े सूरमाओं को भी डुबा दिया था. वसुंधरा राजे भी इसी दौर में भिंड से चुनाव हार गईं. इसके बादवजूद वसुंधरा राजे बीजेपी संगठन के लिए काम करती रहीं . बीजेपी में उनका कद धीरे धीरे बढ़ने लगा. 2003 में बीजेपी ने वसुंधरा राजे को राजस्थान का मुख्यमंत्री बना दिया. 2003 से वसुंधरा राजे राजस्थान की राजनीति में एक्टिव हैं. राजस्थान बीजेपी का वे सबसे बड़ा चेहरा मानी जाती हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस ने बीजेपी से सत्ता छीन ली थी.
जोशीले ज्योतिरादित्य की एंट्री
पिता माधवराव की प्लेन क्रैश में मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री हुई.30 सितंबर, 2001 को विमान हादसे में ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया की मौत हो गई. पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए ज्योतिरादित्य भी कांग्रेस में शामिल हो गए. . 2002 में कांग्रेस की टिकट पर गुना से लोकसभा चुनाव जीते. 2004 में 14वीं लोकसभा में फिर से वे गुना से संसद पहुंचे.
सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए सिंधिया
सांसद ज्योतिरादित्य 6 अप्रैल, 2008 को पहली बार यूपीए की मनमोहन सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री बने. यूपीए-2 में सिंधिया को राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार दिया गया. सिंधिया सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बेहद करीबियों में गिने जाते रहे.
ज्योतिरादित्य को मिला नागरिक उड्डयन मंत्रालय, कभी पिता माधव राव ने भी संभाली थी जिम्मेदारी
ज्योतिरादित्य का कांग्रेस से मोहभंग
ज्योतिरादित्य 2002 के बाद से गुना लोकसभा से लगातार जीतते रहे. 2018 के मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. ज्योतिरादित्य का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए चर्चा में आया. हालांकि पार्टी ने कमलनाथ के अनुभव को सिंधिया के युवा जोश पर ज्यादा तरजीह दी थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश के सीएम नहीं बन पाए.
आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गिरा दी कांग्रेस सरकार
राजनीतिक जीवन के 18 साल कांग्रेस के साथ बिताने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 10 मार्च 2020 को कांग्रेस छोड़ दी. कांग्रेस से बगावत कर 11 मार्च को सिंधिया अपने 20 से ज्यादा समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. इससे कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अल्पमत में आए गई.आखिर 20 मार्च 2020 को कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
अब बीजेपी के लाडले हुए ज्योतिरादित्य
कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य को मोदी ने कैबिनेट में जगह दी है. बुधवार 7 जुलाई, 2021 को हुए कैबिनेट विस्तार में ज्योतिरादित्य सिंधिया को नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. दिलचस्प यह है कि इसी मंत्रालय की जिम्मेदारी कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया के पास भी थी.