भोपाल। मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के लिए मतदान की तारीख करीब आ रही है और चुनाव प्रचार के साथ वरिष्ठ नेताओं की सक्रियता भी बढ़ गई है. यह चुनाव दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि चुनावी नतीजे नेताओं की वजनदारी तय करने वाले होंगे. प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के लिए दो चरणों में मतदान होने वाला है. पहले चरण में मतदान छह जुलाई को और दूसरे चरण का 13 जुलाई को होगा. प्रदेश में 16 नगर निगम, 76 नगर पालिका और 298 नगर परिषदों के लिए चुनाव हो रहे हैं. मतगणना 17 और 18 जुलाई को होगी.
भाजपा और कांग्रेस ने तय की गाइडलाइन: प्रदेश के सभी 16 नगर निगम में भाजपा के महापौर थे और इस बार सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के लिए पुराने नतीजों को दोहराने की है. वहीं कांग्रेस अपना खाता खुलने के साथ कई स्थानों पर जीत की उम्मीद लगाए बैठी है. प्रदेश में उम्मीदवारी को लेकर दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस ने गाइडलाइन तय की थी, उसके बावजूद दिग्गज नेता अपने समर्थकों को उम्मीदवार बनाने में सफल रहे. भाजपा ने परिवारवाद के साथ उम्र का क्राइटेरिया तय किया था और उसका बड़े पैमाने पर पालन भी किया गया है. क्राइटेरिया का भले ही पालन किया गया हो मगर कई नेताओं ने अपने समर्थकों को उम्मीदवार बनाने में सफलता पाई है. इतना ही नहीं, कुछ स्थानों पर नेताओं के दबाव में टिकट देने की बात तक सामने आ रही है.
निकाय चुनावों में प्रमुख नेताओं की साख दांव पर: दूसरी ओर कांग्रेस ने भी गाइडलाइन तय कर उम्मीदवारी तय की. चार नगर निगम में तो विधायकों को ही महापौर का उम्मीदवार बना दिया है. कांग्रेस में भी महापौर पद के कई उम्मीदवार प्रमुख नेताओं के कोटे से बनाए गए. यही कारण है कि जिन नेताओं ने चाहा उन्होंने अपने करीबियों को उम्मीदवार बनाया है. यही कारण है कि जहां उम्मीदवार बनवाए हैं, उन इलाकों में ही नहीं प्रदेश की राजनीति में भी उन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है.
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समर्थक व्यक्ति की जीत की गारंटी ले रहे नेता: राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नगरीय निकाय चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने भले ही दावे कुछ भी किए हों, मगर महापौर पद के उम्मीदवार दोनों ही राजनीतिक दलों के नेताओं की पसंद से ही तय हुए हैं. कई नेताओं ने तो अपने समर्थक व्यक्ति को उम्मीदवार बनाकर उसकी जीत की भी गारंटी ली है, अगर नेताओं के समर्थक उम्मीदवार चुनाव नहीं जीते, तो उनके सियासी भविष्य पर भी सवाल उठ सकता हैं. साथ ही पार्टी के भीतर भी उनके खिलाफ आवाज उठने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता.
इनपुट - आईएएनएस