भोपाल। सरकारें बदलती हैं, नेता बदलते हैं, जब पूछा जाता है प्रदेश का हाल. ये सुनते हैं हंसकर, और बात बदलतें हैं. जी हां कुछ ऐसा ही नजारा है हमारे प्रदेश के हालात का, जहां सरकार तो बदल गई, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वो है प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या का आंकड़ा. आज भी प्रदेश के लगभग हर जिले के बच्चे कुपोषण की जद में हैं.
पिछले साल नवंबर महीने में चले विधानसभा चुनाव प्रचार में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने '40 दिन, 40 सवाल' पूछकर राज्य की सत्तारुढ़ पार्टी को घेरने की रणनीति बनाई थी, जिसमें दूसरे सवाल के तहत कमलनाथ ने स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर शिवराज सरकार को घेरा था.
आइए आपको दिखाते हैं क्या कहते हैं आंकड़े
सोशल साइड ट्विटर पर साझा किए गए इस सवाल में दावा किया गया था 42.8 प्रतिशत अर्थात 48 लाख बच्चे प्रदेश में कुपोषण का शिकार हैं, मध्य प्रदेश के 68.9 प्रतिशत बच्चे खून की कमी के शिकार और 15 से 49 साल की 52.4 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी की शिकार हैं. मध्य प्रदेश में एक साल तक के बच्चों की मृत्यु दर देश में सबसे अधिक 47 अर्थात 90 हजार बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते और मौत की आगोश में समा जाते हैं. मध्य प्रदेश में 46 प्रतिशत बच्चों का सम्पूर्ण टीकाकरण नहीं होता. हालांकि मध्य प्रदेश में कुपोषण के आंकड़े सिर्फ इतने ही नहीं हैं. आंकडों के मुताबिक हर दिन 61 बच्चों की कुपोषण से मौत हो जाती है.
कांग्रेस का कदम
विधानसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देने के बाद सरकार बदली, मुख्यमंत्री बदला, नहीं बदलीं तो कुपोषित बच्चों की सिसकियां. जब सत्ता में आई कांग्रेस ने कुपोषित बच्चों के आंकड़ें जानने के लिए राज्यव्यापी दस्तक अभियान शुरु किया तो जो आंकडे़ निकलकर सामने आए, उसने सरकार को भी हैरत में डाल दिया. 20 जुलाई तक जारी अभियान में पता चला कि 10 हजार सात सौ 36 बच्चे गंभीर कुपोषण की श्रेणी में पाए गए हैं.
मध्य प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग के पुराने आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में जनवरी 2016 से जनवरी 2018 के बीच करीब 57 हजार बच्चों ने कुपोषण के चलते दम तोड़ दिया था और यदि वर्तमान स्थिति की बात करें, तो हालत में ज्यादा सुधार नजर नहीं आ रहा है. वहीं प्रदेश में श्योपुर, मंडला, शिवपुरी जैसे 12 जिले हैं जिन्हें कुपोषण के दायरे में रखा गया है. यहां तक कि श्योपुर को 'भारत का इथोपिया' कहा जाता है.
सरकारों का आना-जाना जारी रहेगा, लेकिन कुपोषण का जारी रहना देश के भविष्य को किस मुकाम पर ले जाएगा, इस बात का अंदाजा इन आंकड़ों से साफ लगाया जा सकता है. हालांकि ये सरकारी आंकड़ें हैं, जो वास्तविकता से हमेशा कम होते हैं. तो यह कहना गलत नहीं है कि प्रदेश का ये 'कुपोषित विकास' मासूमों की किलकारी को कराहने पर मजबूर कर रहा है.