भोपाल। लॉकडाउन के बाद अनलॉक को एक माह बीत चुके हैं, अब लोग कोरोना संक्रमण के डर के साथ जीने की आदत डाल रहे हैं. 3 महीने के लॉकडाउन के बाद अनलॉक शुरू हुआ और सरकार ने लोगों को हर छेत्र में छूट दे दी, कपड़ों के बाजार, शॉपिंग मॉल्स और होटल्स अब खुल चुके हैं. लोग जिस तरह खरीददारी करने बाजारों में निकल रहे हैं, उसी तरह होटल्स में भी खाने-पीने के लिए लोग पहुंच रहे हैं. अब कोरोना का डर तो है, लेकिन अपने जरूरी काम करना भी मजबूरी है.
राजधानी के तमाम बड़े होटल्स जहां खाने के लिए वेटिंग लिस्ट में नाम लिखाना पड़ता था, आज वहां सोशल डिस्टेंसिंग के कारण ग्राहक आ भी रहे हैं, तो उन्हें निराश होकर वापस जाना पड़ता है, क्योंकि होटलों में केवल 50फीसदी लोगों को ही एंट्री है. बाकी जो लोग बाहर हैं, वो या तो लम्बा इंतजार कर रहे हैं या ऑनलाइन ऑर्डर लेकर जा रहे हैं. होटलों को चालू करने के लिए सरकार ने अनुमति तो दे दी है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग और सुरक्षा का ख्याल रखने की जिम्मेदारी भी होटल मालिकों की है. ऐसे में होटलों में ग्राहक आ भी रहे हैं, तो उन्हें ऑनलाइन डिलेवरी देकर भेज दिया जाता है, क्योंकि होटल के अंदर सिर्फ 50 फीसदी ग्राहक ही बैठकर खाना खा सकते हैं.
भोपाल का मनोहर होटल जो मिठाइयों के लिए खासतौर पर जाना जाता है. इस होटल में खाने के लिए भी लंबी लाइन लगी करती थी. शनिवार और रविवार को लोग यहां शाम 4 बजे से रात के खाने के लिए नम्बर लगाया करते थे, आज इस होटल में ग्राहकों के लिए कई सारी पाबंदियां लग चुकी हैं. अब ग्राहक बाहर से खाना ऑर्डर कर रहा है और पैक कराकर घर ले जा रहा है. जिन्हें होटल में खाना है वो भी ऑनलाइन टेबल बुक करके फिर होटल जा रहे हैं.
होटल के मैनेजर ने बताया, आज की स्थिति में होटल दोबारा खोल पाना होटल स्टाफ के लिए भी चुनौती है, क्योंकि होटल में बड़ी संख्या में ग्राहकों का आना जाना होता है. ऐसे में ग्राहकों को बैठने के लिए मना करना और जो ग्राहक आ रहे हैं, उन्हें सुरक्षित जगह बिठाना और खिलाना मुश्किल है, लेकिन काम न करें, तो रोजी रोटी का संकट है. ऐसे में होटल शुरू हो चुके हैं, लेकिन ग्राहकों की संख्या आधे से भी कम हो गई है.
ये स्थिति देश में कब तक रहेगी ये मालूम नहीं, लेकिन लोग अपना पेट पालने के लिए और रोजी-रोटी के लिए कोरोना काल में भी काम कर रहे हैं. जहां बड़े-बड़े रेस्टोरेंट घाटे में काम कर रहे हैं, वहीं स्ट्रीट फूड भी अब खुल चुके हैं. यहां भी ग्राहकों में कमी है, थोड़ा बहुत खर्चा निकल जाए, तो कोरोना काल में रोजी-रोटी का सहारा मिलेगा. यही सोचकर लोग अपनी दुकानें खोले बैठे हैं.