ETV Bharat / city

Chaitra Navratri 2022: 'कर्फ्यू वाली माता मंदिर' की ये है महिमा, कैसे पड़ा इसका नाम, जानिए यहां - Specialties of Curfew Mata Mandir

भोपाल शहर का एक मंदिर 'कर्फ्यू वाली माता का मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध है. इसके नाम के पीछे भी बड़ा रोचक मामला है, पढ़िए यहां. (Chaitra Navratri 2022) (curfew wali mata temple in bhopal)

curfew mata mandir in Bhopal
भोपाल में कर्फ्यू माता मंदिर
author img

By

Published : Mar 30, 2022, 10:53 PM IST

भोपाल। शहर में चैत्र नवरात्र की तैयारियां तेज हो गई हैं. इस साल चैत्र नवरात्र दो अप्रैल से प्रारंभ हो रहे हैं, जो पूरे नौ दिन के होंगे. समापन 11 अप्रैल को होगा. बीते दो साल में कोरोना संक्रमण के प्रकोप के चलते देवी मंदिरों में श्रद्धालु दर्शन के लिए नहीं पहुंच पाए थे, लेकिन इस बार पाबंदियां खत्म हो गई हैं. इसकी वजह से प्राचीन मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी. राजधानी भोपाल में एक ऐसा मंदिर है जो मां दुर्गा के भक्तों की आस्था का केंद्र तो है ही, साथ ही राजधानी भोपाल की राजनीति का अड्डा भी माना जाता है. इस मंदिर के निर्माण के दौरान हालात ऐसे बन गए थे कि यहां पर कई दिनों तक कर्फ्यू लगाना पड़ा था. आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी.

कैसे बनी कर्फ्यू वाली माता: इस मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है. माना जाता है कि पहले यहां चबूतरे पर अस्‍थाई रूप से माता की प्रतिमा स्‍थापित की जाती थी. उसके बाद 1982 में विधि-विधान के साथ मूर्ति की स्‍थापना कर दी गई. इसी वजह से यहां मूर्ति को लेकर विवाद हो गया था. कर्फ्यू वाली माता मंदिर के पुजारी रमेशचंद्र दुबे ने बताया कि मंदिर बने हुए 45 साल हो गए हैं. मंदिर बनने के समय विवाद की स्थिति बनी थी, कई बाधाएं आई थी. इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ गया था. उसके बाद मंदिर की स्‍थापना हुई. तभी से इस मंदिर का नाम कर्फ्यू वाली माता पड़ गया.

ऐसी है मंदिर की ये है खासियत : कर्फ्यू माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. नवरात्र में यहां दूर-दूर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. नवरात्र के अलावा महाशिवरात्रि भी यहां धूमधाम से मनाई जाती है. मातारानी के इस दरबार में भक्‍तगण नारियल में लपेटकर अर्जी रखकर जाते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से मातारानी भक्‍तों की मनचाही मुराद जरूर पूरी करती हैं. रमेशचंद्र दुबे का कहना है कि मां जगदंबा के दरबार में जो भी आता है वह खाली नहीं जाता है. यह एक सिद्धपीठ है जो भी लोग यहां आते हैं उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. मनोकामनाएं पूरी होने पर यहां पर लोग भंडारा आयोजित करते हैं ,साथ ही मुंडन भी किया जाता है.

Chaitra Navratri 2022: 1563 साल बाद दुर्लभ संयोग में शुरू होगा हिंदू नव वर्ष, अप्रैल में ग्रहों का होगा महा परिवर्तन

सोने का वर्क, चांदी का सिंहासन: मंदिर की साज-सज्जा में कई धातुओं का इस्तेमाल किया गया है. बताया जाता है कि मंदिर में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के सानिध्य में श्रीयंत्र की स्थापना की गई है, जो चांदी का है, उस पर सोने का वर्क है. यहां स्वर्ण कलश भी है. 130 किलो चांदी का आकर्षक गेट, 18 किलो चांदी की छोटी प्रतिमा, 21 किलो चांदी का सिंहासन है. आधा किलो सोने का वर्क दरवाजों और दीवारों पर किया गया है. यहां मंदिर कमेटी 50 रुपये से अधिक राशि का दान चेक से स्‍वीकार करती है. मंदिर वर्ष 2015 में ढाई लाख रुपये टैक्‍स के तौर पर जमा करके ऐसा शहर का पहला मंदिर बन गया है.

मंदिर से पहले थी शराब की दुकान: सियासी जंग का गवाह रहा यह मंदिर से पहले इस जगह के पास शराब की दुकान हुआ करती थी, और यहां पर आए दिन असामाजिक तत्वों का जमावड़ा बना रहता था. इसके चलते हिंदू संगठनों ने मिलकर यहां पर मंदिर निर्माण का निर्णय लिया था. मुस्लिम बाहुल्य पीर गेट इलाके में स्थित इस मंदिर के निर्माण में विवाद की वजह से प्रशासन ने मूर्ति स्थापना नहीं करने दी थी, और मूर्ति को जप्त कर शीतल दास की बगिया में रखवा दिया था. जिसके बाद विरोध और बढ़ गया, अंत में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को झुकना पड़ा और बाद में जमीन का पट्टा मंदिर के नाम किया गया. इसके बाद विधि विधान से मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की गई. आज भी पीर गेट स्थित इस मंदिर के आसपास कांग्रेस या बीजेपी के अलावा हिंदू और मुस्लिम संगठनों के लोग बड़ी मात्रा में इकट्ठा होते हैं. (Chaitra Navratri 2022) (curfew wali mata temple in bhopal)

भोपाल। शहर में चैत्र नवरात्र की तैयारियां तेज हो गई हैं. इस साल चैत्र नवरात्र दो अप्रैल से प्रारंभ हो रहे हैं, जो पूरे नौ दिन के होंगे. समापन 11 अप्रैल को होगा. बीते दो साल में कोरोना संक्रमण के प्रकोप के चलते देवी मंदिरों में श्रद्धालु दर्शन के लिए नहीं पहुंच पाए थे, लेकिन इस बार पाबंदियां खत्म हो गई हैं. इसकी वजह से प्राचीन मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी. राजधानी भोपाल में एक ऐसा मंदिर है जो मां दुर्गा के भक्तों की आस्था का केंद्र तो है ही, साथ ही राजधानी भोपाल की राजनीति का अड्डा भी माना जाता है. इस मंदिर के निर्माण के दौरान हालात ऐसे बन गए थे कि यहां पर कई दिनों तक कर्फ्यू लगाना पड़ा था. आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी.

कैसे बनी कर्फ्यू वाली माता: इस मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है. माना जाता है कि पहले यहां चबूतरे पर अस्‍थाई रूप से माता की प्रतिमा स्‍थापित की जाती थी. उसके बाद 1982 में विधि-विधान के साथ मूर्ति की स्‍थापना कर दी गई. इसी वजह से यहां मूर्ति को लेकर विवाद हो गया था. कर्फ्यू वाली माता मंदिर के पुजारी रमेशचंद्र दुबे ने बताया कि मंदिर बने हुए 45 साल हो गए हैं. मंदिर बनने के समय विवाद की स्थिति बनी थी, कई बाधाएं आई थी. इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ गया था. उसके बाद मंदिर की स्‍थापना हुई. तभी से इस मंदिर का नाम कर्फ्यू वाली माता पड़ गया.

ऐसी है मंदिर की ये है खासियत : कर्फ्यू माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. नवरात्र में यहां दूर-दूर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. नवरात्र के अलावा महाशिवरात्रि भी यहां धूमधाम से मनाई जाती है. मातारानी के इस दरबार में भक्‍तगण नारियल में लपेटकर अर्जी रखकर जाते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से मातारानी भक्‍तों की मनचाही मुराद जरूर पूरी करती हैं. रमेशचंद्र दुबे का कहना है कि मां जगदंबा के दरबार में जो भी आता है वह खाली नहीं जाता है. यह एक सिद्धपीठ है जो भी लोग यहां आते हैं उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. मनोकामनाएं पूरी होने पर यहां पर लोग भंडारा आयोजित करते हैं ,साथ ही मुंडन भी किया जाता है.

Chaitra Navratri 2022: 1563 साल बाद दुर्लभ संयोग में शुरू होगा हिंदू नव वर्ष, अप्रैल में ग्रहों का होगा महा परिवर्तन

सोने का वर्क, चांदी का सिंहासन: मंदिर की साज-सज्जा में कई धातुओं का इस्तेमाल किया गया है. बताया जाता है कि मंदिर में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के सानिध्य में श्रीयंत्र की स्थापना की गई है, जो चांदी का है, उस पर सोने का वर्क है. यहां स्वर्ण कलश भी है. 130 किलो चांदी का आकर्षक गेट, 18 किलो चांदी की छोटी प्रतिमा, 21 किलो चांदी का सिंहासन है. आधा किलो सोने का वर्क दरवाजों और दीवारों पर किया गया है. यहां मंदिर कमेटी 50 रुपये से अधिक राशि का दान चेक से स्‍वीकार करती है. मंदिर वर्ष 2015 में ढाई लाख रुपये टैक्‍स के तौर पर जमा करके ऐसा शहर का पहला मंदिर बन गया है.

मंदिर से पहले थी शराब की दुकान: सियासी जंग का गवाह रहा यह मंदिर से पहले इस जगह के पास शराब की दुकान हुआ करती थी, और यहां पर आए दिन असामाजिक तत्वों का जमावड़ा बना रहता था. इसके चलते हिंदू संगठनों ने मिलकर यहां पर मंदिर निर्माण का निर्णय लिया था. मुस्लिम बाहुल्य पीर गेट इलाके में स्थित इस मंदिर के निर्माण में विवाद की वजह से प्रशासन ने मूर्ति स्थापना नहीं करने दी थी, और मूर्ति को जप्त कर शीतल दास की बगिया में रखवा दिया था. जिसके बाद विरोध और बढ़ गया, अंत में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को झुकना पड़ा और बाद में जमीन का पट्टा मंदिर के नाम किया गया. इसके बाद विधि विधान से मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की गई. आज भी पीर गेट स्थित इस मंदिर के आसपास कांग्रेस या बीजेपी के अलावा हिंदू और मुस्लिम संगठनों के लोग बड़ी मात्रा में इकट्ठा होते हैं. (Chaitra Navratri 2022) (curfew wali mata temple in bhopal)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.