सागर: टाइगर स्टेट के तौर पर देश और दुनिया में अलग पहचान रखने वाले मध्यप्रदेश के बाघ क्या खतरे में हैं. इन बाघों के दुश्मन शिकारी नहीं, तो कौन हैं. आखिर किससे मध्यप्रदेश के बाघों को खतरा है. जी हां टाइगर स्टेट के बाघों को शिकारियों से नहीं बल्कि कुत्तों से खतरा है. क्योंकि कुत्तों से बाघों को 5 तरह की बीमारियां फैल सकती हैं, जो बाघों की मौत का कारण बन सकती हैं. इस बडे़ खतरे से निपटने के लिए मध्यप्रदेश का वन विभाग व्यापक स्तर पर कार्य कर रहा है.
इस खतरे से बाघों को बचाने के लिए वन विभाग सभी टाइगर रिजर्व में रिंग वैक्सीनेशन (Ring vaccination) कर रहा है. मध्यप्रदेश के सबसे बडे़ टाइगर रिजर्व वीरांगना दुर्गावती (नौरादेही) टाइगर रिजर्व में तीन जिलों सागर,दमोह और नरसिंहपुर में Ring vaccination व्यापक स्तर पर शुरू हो गया है और करीब 24 हजार डोज बफर जोन के कुत्तों के साथ मवेशियों को भी लगाए जा रहे हैं. क्योंकि बाघों के साथ टाइगर रिजर्व के शाकाहारी प्राणियों को भी खतरा है.
बाघों को कुत्तों से क्या है खतरा
वीरागंना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (नौरादेही) के डिप्टी डायरेक्टर डाॅ. एए अंसारी बताते हैं कि, ''जंगली जानवरों जिनमें बाघ के अलावा जंगल के शाकाहारी प्राणी होते हैं. इनको टाइगर रिजर्व की सीमा से लगे गांवों में रहने वाले कुत्तों और मवेशियों से बड़ा खतरा रहता है. बाघों को बफर जोन के कुत्ते से बड़ा खतरा होता है. इन कुत्तों से कैनाइन डिस्टेम्पर (Canine distemper) और पार्वो वायरस (Parvovirus) बीमारी बाघों में फैल सकती है. इसलिए हम बाघों को बचाने कुत्तों को टारगेट करते हैं.''
''वीरांगना रानी दुर्गावती (नौरादेही) टाइगर रिजर्व में भेडिए बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. भेडिए और कुत्ते एक ही प्रजाति कैनिस ल्यूपस (canis lupus) की उप प्रजातियां हैं. इसलिए ज्यादा जरूरी है कि कुत्तों को वैक्सीनेशन के लिए हम टारगेट करें. कुत्तों के लिए कोर वैक्सीन आती है, जिसमें रैबीज, कैनाइन डिस्टेंपर, पार्वो वायरस, एडीनो वायरस और पैरा इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारियों से बचाव होता है. इसका उपयोग हम वैक्सीनेशन में करते हैं.''
कैनाइन डिस्टेंपर क्या है (Canine distemper)
कैनाइन डिस्टेंपर कुत्तों को प्रभावित करने वाला संक्रामक और गंभीर रोग है. इसके प्रभावित कुत्तों में आंख-नाक से आंसू निकलते हैं, सांस लेने में तकलीफ और खांसी निमोनिया के लक्षण देखने मिलते हैं. अगर इस बीमारी का इलाज ना हो, तो कुत्तों की मौत हो जाती है. खास बात ये है कि ये बीमारी कुत्तों के जरिए दूसरे जानवरों में लार, मूत्र या खून के संपर्क से फैल सकती है. ये बीमारी ज्यादातर सर्दी के मौसम के आखिर में फैलती है. कुत्तों के जरिए ये बीमारी बाघों में फैल सकती है.
पार्वो वायरस क्या है (Parvovirus)
यह कुत्तों को होने वाला गंभीर संक्रामक रोग है. पार्वो कैनाइन पार्वोवायरस (CPV) यह कुत्तों में गंभीर संक्रामक रोग है. इस बीमारी में कम उम्र के कुत्तों को दस्त, उल्टी, भूख न लगना और वजन कम होने की शिकायत सामने आती हैं और यह हृदय की मांसपेशियों को खराब कर देता है. जो आमतौर पर कुत्तों की मौत का कारण बनता है. ये कुत्तों से बाघों तक फैल सकता है. इसलिए इस बीमारी को लेकर संरक्षित वन क्षेत्र के आसपास के इलाकों के कुत्तों का वैक्सीनेशन वनविभाग द्वारा किया जाता है.
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संरक्षित वन के शाकाहारी प्राणियों को खतरा
नौरादेही टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डाॅ. एए अंसारी बताते हैं कि, ''हमारे संरक्षित वन के शाकाहारी प्राणी (herbivores) होते हैं. इनको मवेशियों से संक्रामक रोग फैलने का खतरा होता है. इसलिए हम लोग खासकर बफर जोन में वैक्सीनेशन करते हैं. वैक्सीनेशन में हमारी टारगेट स्पीशीज दो तरह की होती है. जिनमें एक शाकाहारी (herbivores) प्राणी होते हैं, उनको मवेशियों से संक्रामक रोगों का खतरा है. जिनमें खुरपका-मुंहपका रोग (एफ़एमडी) के अलावा लंगडी रोग (Black Quarter Disease) और गलघोंटू रोग (Haemorrhagic Septicaemia) इसे HS भी कहा जाता है. ये तीन चार बड़ी बीमारियां हैं, जो शाकाहारी (herbivores) प्राणियों में बड़ी तेजी से फैलती हैं.''
रिंग वैक्सीनेशन (Ring vaccination) एकमात्र उपाय
डाॅ एए अंसारी बताते हैं कि, ''बाघों के साथ-साथ हमारे संरक्षित वनों के शाकाहारी प्राणियों (herbivores) को बचाने के लिए हम लोग रिंग वैक्सीनेशन (Ring vaccination) की रणनीति अपनाते हैं. इसके लिए हम लोग संरक्षित वन के बफर जोन से लगे इलाके को एक रिंग की तरह चिन्हित करते हैं और फिर वैक्सीनेशन शुरू करते हैं. ये कार्य सामान्य तौर पर संरक्षित वन क्षेत्र टाइगर रिजर्व या वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को हम लोग प्राथमिकता पर लेते हैं.''
''इसमें हमें पशु चिकित्सा विभाग की मदद मिलती है. जैसे हमारा टाइगर रिजर्व तीन जिलों सागर, दमोह और नरसिंहपुर में है. हम लोग 17 जनवरी को बैठक करके रणनीति तैयार कर ली है. हमनें 24 हजार वैक्सीन के डोज खरीदे हैं, जिनको लगाने का काम तीनों जिलों में शुरू हो गया है. हम लोग गौ सेवकों के माध्यम से लगाते हैं और इसका उन्हें भुगतान करते हैं.''