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भूमि अधिग्रहण मामले में जवाब नहीं देने पर हाईकोर्ट ने सरकार पर लगाया 30 हजार का जुर्माना - JABALPUR HIGH COURT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदेश सरकार पर 30 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है.

JABALPUR HIGH COURT
जबलपुर हाई कोर्ट (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 31, 2025, 9:46 AM IST

जबलपुर: हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण के एक मामले मामले में कई अवसर देने के बावजूद जवाब नहीं देने पर प्रदेश सरकार पर 30 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी को निर्धारित की है.

मामला नर्मदा बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका से संबंधित है. कोर्ट ने 15 हजार रुपये नर्मदा बचाओ आंदोलन व 15 हजार रुपये हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति के कोष में जमा करने के निर्देश दिए हैं.

नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने बताया कि नए भू-अर्जन कानून 2013 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में अधिग्रहित जमीन के मुआवजे में एक गुणांक जो कि एक से दो के बीच होगा से गुणा किया जाएगा. शहरी क्षेत्र से जितनी अधिक दूरी होगी यह गुणांक उतना ही बढ़ जाएगा. ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनों की कीमतें कम होने के कारण यह प्रावधान रखा गया है. परन्तु मध्य प्रदेश सरकार ने इसका उल्लंघन करते हुए सभी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह गुणांक एक निर्धारित कर दिया है. जिससे ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहित होने पर उन्हें बहुत कम मुआवजा मिलता है.

राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने दाखिल की है जनहित याचिका

राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन की तरफ से जनहित याचिका दाखिल की गई है. जिसमें सरकार के इस गैरकानूनी निर्णय को रद्द करते हुए मुआवजे में उचित गुणांक से गुणा करने का आदेश दिने की मांग की गई है. याचिका में यह भी कहा गया है कि अनेक राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड आदि ने यह गुणांक दो निर्धारित किया है, जिस कारण इन राज्यों में ग्रामीणों को दुगना मुआवजा मिल रहा है.

याचिका में कहा गया है कि सरकार के फैसले से ग्रामीणों आदिवासियों का हो रहा है बहुत नुकसान

नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से अधिवक्ता श्रेयस पंडित ने दलील दी कि कई बार अवसर दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार की तरफ से जानबूझकर जवाब नहीं पेश किया जा रहा है ताकि उन्हें ग्रामीणों को कम मुआवजा देना पड़ा. इस तरह गरीब ग्रामीणों आदिवासियों का बहुत नुकसान हो रहा है. यदि सरकार जवाब नहीं दे रही है तो राज्य में सम्पूर्ण भू-अर्जन पर रोक लगा दी जाए.

सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए हाईकोर्ट से की एक और अंतिम अवसर देने की मांग

इस पर सरकार की ओर से एक और अंतिम अवसर मांगने पर हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार का जवाब तभी स्वीकार होगा जब वह दो हफ्ते में नर्मदा बचाओ आंदोलन को 15 हजार रुपये और हाईकोर्ट विधि सेवा समिति को 15 हजार रुपये का भुगतान करे. इस भुगतान की रसीद प्राप्त होने पर ही सरकार का जवाब स्वीकार किया जाएगा.

जबलपुर: हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण के एक मामले मामले में कई अवसर देने के बावजूद जवाब नहीं देने पर प्रदेश सरकार पर 30 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी को निर्धारित की है.

मामला नर्मदा बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका से संबंधित है. कोर्ट ने 15 हजार रुपये नर्मदा बचाओ आंदोलन व 15 हजार रुपये हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति के कोष में जमा करने के निर्देश दिए हैं.

नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने बताया कि नए भू-अर्जन कानून 2013 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में अधिग्रहित जमीन के मुआवजे में एक गुणांक जो कि एक से दो के बीच होगा से गुणा किया जाएगा. शहरी क्षेत्र से जितनी अधिक दूरी होगी यह गुणांक उतना ही बढ़ जाएगा. ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनों की कीमतें कम होने के कारण यह प्रावधान रखा गया है. परन्तु मध्य प्रदेश सरकार ने इसका उल्लंघन करते हुए सभी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह गुणांक एक निर्धारित कर दिया है. जिससे ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहित होने पर उन्हें बहुत कम मुआवजा मिलता है.

राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने दाखिल की है जनहित याचिका

राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन की तरफ से जनहित याचिका दाखिल की गई है. जिसमें सरकार के इस गैरकानूनी निर्णय को रद्द करते हुए मुआवजे में उचित गुणांक से गुणा करने का आदेश दिने की मांग की गई है. याचिका में यह भी कहा गया है कि अनेक राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड आदि ने यह गुणांक दो निर्धारित किया है, जिस कारण इन राज्यों में ग्रामीणों को दुगना मुआवजा मिल रहा है.

याचिका में कहा गया है कि सरकार के फैसले से ग्रामीणों आदिवासियों का हो रहा है बहुत नुकसान

नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से अधिवक्ता श्रेयस पंडित ने दलील दी कि कई बार अवसर दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार की तरफ से जानबूझकर जवाब नहीं पेश किया जा रहा है ताकि उन्हें ग्रामीणों को कम मुआवजा देना पड़ा. इस तरह गरीब ग्रामीणों आदिवासियों का बहुत नुकसान हो रहा है. यदि सरकार जवाब नहीं दे रही है तो राज्य में सम्पूर्ण भू-अर्जन पर रोक लगा दी जाए.

सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए हाईकोर्ट से की एक और अंतिम अवसर देने की मांग

इस पर सरकार की ओर से एक और अंतिम अवसर मांगने पर हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार का जवाब तभी स्वीकार होगा जब वह दो हफ्ते में नर्मदा बचाओ आंदोलन को 15 हजार रुपये और हाईकोर्ट विधि सेवा समिति को 15 हजार रुपये का भुगतान करे. इस भुगतान की रसीद प्राप्त होने पर ही सरकार का जवाब स्वीकार किया जाएगा.

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