भोपाल। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए आज पार्टी कार्यालय से नामांकन पत्र लिया. दिग्विजय सिंह केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण से नामांकन पत्र लेकर सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद 30 सितंबर को अपना नामांकन पत्र जमा करेंगे, क्योंकि CEA अध्यक्ष फिलहाल दिल्ली से बाहर हैं. बता दें कि दिग्विजय सिंह बुधवार रात को ही केरल से दिल्ली पहुंचे थे. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दिग्विजय सिंह का पलड़ा भारी दिख रहा है. उनके पास लंबा संगठनात्मक और प्रशासनिक अनुभव है. वह दो बार मध्यप्रदेश के सीएम रहे हैं. उनकी गिनती गांधी परिवार के वफादारों में होती है. कमलनाथ के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर खबरें सामने आईं. लेकिन उन्होंने साथ कर दिया कि वह मध्यप्रदेश छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे.
53 साल से राजनीति में सक्रिय दिग्विजय सिंह: मध्यप्रदेश के राघोगढ़ से राजनीति शुरू करने वाले दिग्विजय सिंह पिछले 53 सालों से राजनीति में प्रासांगिक बने हुए हैं. 22 साल की उम्र में दिग्विजय सिंह ने पहला चुनाव लड़ा और 75 की उम्र में कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी के साथ राजनीति में कदमताल कर रहे हैं. हालांकि इन 53 सालों में दिग्विजय सिंह ने दस सालों तक सत्ता सुख देखा तो फिर उन्हें दस सालों के लिए चुनावी राजनीति भी छोडनी पड़ी.
22 साल की उम्र में लड़ा पहला चुनाव: दिग्विजय सिंह 10 सालों तक भले ही मध्यप्रदेश के सीएम रहे, लेकिन उन्होंने राजनीति की शुरूआत नगर पालिका स्तर से की. राघोगढ़ राजपरिवार के सदस्य दिग्गी ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग से पढ़ाई की, लेकिन बाद में राजनीति में खिंचे चले आए. राजगढ़-ब्यावरा बेल्ट में राजा साहब बुलाए जाने वाले दिग्गी राजा 1969 में पहली बार राघोगढ़ नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष बने. उस वक्त उनकी उम्र महज 22 साल थी. 25 की उम्र में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. यह अलग बात थी कि उनके पिता बालभद्र सिंह भारतीय जनसंघ पार्टी से जुड़े हुए थे. कहा जाता है इसकी वजह उनके पिता ही थे. बलभद्र सिंह की कांग्रेस नेता गोविंद नारायण सिंह से गहरी दोस्ती थी.
जब पहली बार अपनी ही जमीं पर हारे दिग्गी: 22 साल की उम्र से उनका चुनावी सफर शुरू हुआ. कांग्रेस से जुड़ने के बाद 1977 में वे पहली बार राघोगढ़ से विधायक बने. तीन साल बाद फिर चुनाव हुए. 1980 में दिग्विजय सिंह फिर इसी सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे और पहली बार मंत्री पद संभाला. उस समय मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह. 1984 में दिग्विजय सिंह ने लोकसभा चुनाव जीता और सबसे पहले गांधी परिवार के करीब आए. दिग्विजय सिंह राजीव गांधी की नजरों में आए. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाली. हालांकि 1989 में दिग्विजय सिंह के सामने पहली बार ऐसा समय भी आया, जब उनके गले में जीत का हार नहीं था. वे अपने ही गढ़ में पहली बार चित हुए. उन्हें हराया बीजेपी के प्यारेलाल खंडेलवाल ने. हालांकि 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में जीत गए. दिग्विजय सिंह दूसरा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव में हारे. यह चुनाव उन्होंने भोपाल लोकसभा सीट से लड़ा था.
तीन दावेदारों को पछाड़कर बने थे एमपी के सीएम: 1993 में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 320 में से 174 सीटें मिलीं. दिग्गी के राजनीतिक गुरू अर्जुन सिंह ने उन्हें मुख्यमंत्री बनवा दिया. हालांकि रेस में श्यामाचरण शुक्ला, माधवराव सिंधिया और सुभाष यादव भी थे. दिग्विजय सिंह दस सालों तक एमपी के सीएम रहे. हालांकि अपने दूसरे मुख्यमंत्री काल में उनकी प्रशासनिक गलतियां उन पर भारी पड़ी और 2003 में कांग्रेस का बुरी तरह सफाया हो गया. इसी दौरान दिग्विजय सिंह को बीजेपी ने नया नाम दिया... मिस्टर बंटाधार.
पार्टी के लिए बदली गुरू की निष्ठा: कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा कभी नहीं बदली. इसके लिए उन्हें अपने राजनीतिक गुरू अर्जुन सिंह के प्रति निष्ठा बदलनी पड़ी. यही वजह है दिग्विजय सिंह गांधी परिवार की पीढ़ियां बदलने पर भी प्रासांगिक बने रहे. दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश में 10 सालों तक सीएम बने रहे, लेकिन जब सत्ता गई तो उन्होंने भी दस सालों तक चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया. केन्द्र में संगठन का काम देखा. राहुल गांधी से नजदीकि बनाए रखी. 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले नर्मदा यात्रा के जरिए उन्होंने कांग्रेस की चुनावी जमीन तैयार करने में बेहतरीन भूमिका निभाई.
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