भोपाल। मप्र कांग्रेस की राजनीति फिलहाल दो बुजुर्गों (congress mla are older than bjp mla) के ही इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है. 2018 के विधानसभा चुनाव में इसी बुजुर्ग अनुभवी जोड़ी ने कांग्रेस की वापसी कराई थी. नई युवा लीडरशिप को आगे न बढ़ाए जाने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है. यही वजह है कि 2023 में (congress have no big plan for 2023 election) होने वाले विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी पर ही चुनावी वैतरणी पार लगाने का जिम्मा है. पॉलिटिकल पंडित भी यही मानते हैं कि कांग्रेस के पास फिलहाल ऐसा कोई युवा चेहरा नहीं है, जो पूरी कांग्रेस को एकजुट कर सके. यही वजह है कि इन दोनों नेताओं के बगैर कांग्रेस के सफल होने की कोई गुंजाइश भी नहीं दिखाई देती है.
विधानसभा में बीजेपी से अधिक कांग्रेस के युवा विधायक
एमपी के कांग्रेसी विधायकों में युवाओं की संख्या बीजेपी के मुकाबले ज्यादा है, महाराजपुर से नीरज दीक्षित सबसे युवा विधायक हैं, जिनकी उम्र 31 साल है, जबकि सबसे अधिक उम्र के कांग्रेस विधायक पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ हैं, जिनकी उम्र 75 वर्ष है, इन्हीं के हाथ में इस समय मध्यप्रदेश कांग्रेस की बागडोर भी है. कांग्रेस के युवा विधायकों में निलेश पुसाराम उइके और विपिन वानखेड़े भी शामिल हैं, जिनकी उम्र 32 साल हैं, जबकि सिद्धार्थ कुशवाहा 33 साल के हैं और जयवर्धन सिंह की उम्र 35 वर्ष है. इस तरह 30 से 35 वर्ष की आयु वाले विधायकों की संख्या पांच है, जबकि 35 से 40 साल के विधायकों की संख्या 9 है.
कांग्रेस में 40 से 50 की उम्र वाले 34 विधायक
मध्यप्रदेश कांग्रेस के 95 विधायकों में 40 से 50 की आयु वाले कांग्रेस विधायकों की संख्या 34 है. इनमें से 40 से 45 की आयु वाले विधायक 12 हैं और 45 से 50 की आयु वाले विधायक 22 हैं. वहीं 50 से 60 की उम्र वाले कांग्रेस विधायक 28 हैं, इनमें 50 से 55 की आयु वाले विधायक 12 हैं और 55 से 60 की आयु वाले विधायक 16 हैं. 60 से 70 की आयु वाले कांग्रेस विधायकों की संख्या 15 है. इनमें से 10 विधायक 60 से 65 वर्ष की आयु वाले हैं और 5 विधायक 65 से 70 की आयु के हैं.
बीजेपी में किस उम्र के कितने विधायक
साल 2013 में विधानसभा में सदस्यों की औसत उम्र 47 साल थी, जो 2018 में बढ़कर 51 साल हो गई है. युवाओं को तरजीह देने वाली पार्टियों ने टिकट वितरण से लेकर मुख्यमंत्री पद तक के चयन में अनुभव की बजाय उम्र को तरजीह दी है, लेकिन इस बार जनता जनार्दन ने युवाओं को नहीं बल्कि अनुभव को प्राथमिकता दी है, 2018 में जिन युवाओं को टिकट दिए गए थे, उनमें से भी ज्यादातर हार गए. आइए जानते हैं किस उम्र के कितने विधायक हैं.
क्रमांक | विधायकों की संख्या (उम्र के आधार पर) | कुल संख्या |
1 | 25 से 30 साल के विधायक | 0 |
2 | 30 से 40 साल के विधायक | 5 |
3 | 40 से 50 साल के विधायक | 19 |
4 | 50 से 60 साल के विधायक | 47 |
5 | 60 से 70 साल के विधायक | 44 |
6 | 70 से 75 साल के विधायक | 8 |
7 | 75 साल से अधिक उम्र वाले विधायक | 2 |
मप्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ 75 की उम्र पार कर चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह भी 74 के हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी (69), कांतिलाल भूरिया (71), पूर्व विधानसभा स्पीकर एनपी प्रजापति (63), सज्जन सिंह वर्मा (69), अजय सिंह राहुल (67) जैसे नेता भी सीनियर सिटिजन की श्रेणी में हैं. युवा पीढ़ी का कोई भी नेता ऐसा नहीं है, जो एमपी कांग्रेस की कमान संभाल सके. ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कोई भी युवा कमलनाथ-दिग्विजय के मुकाबले खड़ा नहीं हो सका है. हालात ये हो गए हैं कि प्रदेश में कांग्रेस कमलनाथ और दिग्विजय के इर्द-गिर्द ही सिमटकर रह गई है.
2023 में निर्णायक होगी दिग्गी-नाथ की भूमिका
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार उमेश त्रिवेदी मानते हैं कि 2023 के चुनाव में मप्र में कांग्रेस की रणनीति का स्वरूप क्या और कैसा होगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा नहीं जा सकता है, लेकिन इतना जरूर है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण, निर्णायक और कांग्रेस को आगे ले जाने वाली होगी. इसका एकमात्र कारण यह है कि अभी कांग्रेस की नई लीडरशिप में कोई ऐसा चेहरा नजर नहीं आता, जिसकी मान्यता प्रदेश भर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में हो. इसलिए इन दोनों के बिना कांग्रेस में कोई भी नया नेतृत्व सफल नहीं हो सकता. उमेश त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
दोनों की राजनीति का तरीका अलग
त्रिवेदी बताते हैं कि इन दोनों में कोई आपसी गुटबाजी नहीं है. 1980 से दोनों साथ काम कर रहे हैं. इनके कद में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं हैं. 1980 से 1990 तक कमलनाथ दिल्ली की राजनीति में दिग्विजय से बड़े नेता माने जाते थे, लेकिन दोनों के बीच एक सम्मानजनक रिश्ता हमेशा बना रहा है. ये भी माना जाता है कि दिग्विजय सिंह को मप्र का मुख्यमंत्री बनाने में कमलनाथ ने मदद की थी. दोनों के बीच आपसी भाइचारे और दोस्ती के रिश्ते रहे हैं. हर नेता का अपना गुट होता है. जिसका पार्टी से ही नाता होता है और पार्टी की जिम्मेदारी को पूरी करने की जिम्मेदारी उस गुट के नेता की होती है. यही वजह है कि कमलनाथ अपने तरीके से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाते हैं और दिग्विजय सिंह अपने तरीके से.
किसी और को बागडोर मिलने की संभावना बेहद कम
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अरुण पटेल का मानना है कि अभी तो ऐसा लगता है कि स्थिति यही बनी रहेगी. 2018 के चुनाव में कमलनाथ और दिग्विजय के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी थे, लेकिन अब वे बीजेपी में चले गए हैं. इसलिए किसी नए नेता को बागडोर मिलेगी इसकी संभावना कम है. कांग्रेस में अभी कोई इस लायक तैयार नहीं हुआ है. कांग्रेस में दूसरी पीढ़ी के नेता तो हैं जैसे अरुण यादव, अजय सिंह राहुल, तरुण भनोत, जयवर्धन सिंह, जीतू पटवारी इन्हें आगे किया जा सकता है, लेकिन इन्हें नेतृत्व सौंपा जा सकता है इसकी संभावना फिलहाल कम है. विवाद की वजह से ही एक ही नेता दो पदों पर हैं. कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष और पार्टी अध्यक्ष दोनों ही हैं. अरुण पटेल, वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
कांग्रेस के पास बड़ा प्लान नहीं
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि संगठन में जान फूंकने के लिए कांग्रेस के पास कोई बड़ा प्लान नहीं है, जबकि इसके मुकाबले भाजपा काफी मजबूत है. भाजपा के पास बूथ लेवल, वोटर लिस्ट से लेकर पन्ना प्रमुख तक संगठन है. हालांकि कमलनाथ लगातार बूथ-मंडल स्तर तक कांग्रेस को मजबूत करने की बात करते रहे हैं, पर संगठन में मजबूती दिखाई नहीं दे रही है. मप्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल कमलनाथ की कार्यशैली और उनके व्यवहार को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. अरुण को खंडवा लोकसभा चुनाव से अपनी दावेदारी वापस लेना पड़ी थी. अजय सिंह विंध्य में कांग्रेस की राजनीति को लेकर कमलनाथ के बयान पर आपत्ति जता चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर भी कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार आरोप लगा चुके हैं, पर खास बात ये है कि घर के भीतर से लग रहे तमाम आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच कमलनाथ और दिग्विजय मप्र कांग्रेस पर अपना वर्चस्व कायम रखे हुए हैं. बड़ा सवाल यह है कि क्या इन उम्रदराज हो चुके नेताओं के दम पर बूढ़ी कांग्रेस अपने से कहीं ज्यादा मजबूत बीजेपी के मुकाबले खड़ी नजर आएगी.
बीजेपी से अधिक जवान है कांग्रेस
विधानसभा में कांग्रेस के 95 विधायकों के मुकाबले बीजेपी के 125 विधायक हैं, जिनमें से 50-60 की उम्र वाले विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा है, जबकि दूसरे नंबर पर 60 से 70 साल के उम्र वाले विधायकों की संख्या है. उम्र की क्राइटेरिया को लेकर बीजेपी ने 70+ उम्र वाले बुजुर्गों को घर बैठाने का फैसला किया था, यही वजह है कि मप्र विधानसभा में सिर्फ दो ही विधायक ऐसे हैं, जो 75 प्लस हैं, जबकि सत्ताधारी दल बीजेपी के सबसे युवा विधायक ब्यौहारी शहडोल से शरद कौल हैं, जोकि 31 साल के हैं, दूसरे नंबर पर राम दांगोरे (32 वर्ष) जोकि पंधाना-खंडवा से विधायक हैं. बीजेपी के सबसे उम्रदराज विधायक नागेद्र सिंह, गुढ़ (रीवा) जोकि 79 साल के हैं, दूसरे नंबर पर नागेंद्र सिंह, नागौद (सतना) से आते हैं.