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भगवान गणेश के 'गजवक्र' स्वरूप की ऐसे करें अराधना, अभीष्ट सिद्धि की होती है प्राप्ति

भगवान गणेश के 'गजवक्र' रूप की अराधना करने से अभीष्ट सिद्धि और तीक्ष्ण बुद्धि की प्राप्ति होती है.

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Published : Sep 19, 2021, 4:50 PM IST

'गजवक्र' स्वरूप की अराधना
'गजवक्र' स्वरूप की अराधना

भोपाल। गणेश चतुर्थी के चौथे दिन भगवान के 'गजवक्र' रूप की अराधना की जाती है. कहते हैं कि भगवान के इस रूप की पूजा करने से अभीष्ट सिद्धि और तीक्ष्ण बुद्धि की प्राप्ति होती है. तो आइए गणेश चतुर्थी के चौथे दिन हम आपको भगवान गणेश के चौथे नाम 'गजवक्र' के बारे में बताते हैं. यह भी जानें कि आखिर कैसे तीसरे दिन आप गजानन को प्रसन्न कर सकते हैं.

'गजवक्र' रूप की अराधना

पंडित विष्णु राजोरिया बताते हैं कि भगवान गणेश का चौथा स्वरूप 'गजवक्र' है, इसे 'गजकण' भी कहा जाता है. अत्यंत विशाल देह और मस्तक वाले तथा सूपे की तरह कान वाले, तीक्ष्ण बुद्धि वाला होने के कारण इन्हें अभीष्ट सिद्धि का प्रदाता माना जाता है. गजवक्र या गजकण स्वरूप की आराधना करने से अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है, तीक्ष्ण बुद्धि भी मिलती है.

पंडित विष्णु राजोरिया

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इस पर्वत पर हुआ था गणेश जी का जन्म

एक कथा के अनुसार, भगवान शंकर द्वारा मां पार्वती को दिए गए पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद ही गणेश जी ने अर्बुद पर्वत (माउंट आबू जिसे अर्बुदारण्य भी कहा जाता है) पर जन्म लिया था. गणपति के जन्म के बाद देवी-देवताओं ने इस पर्वत की परिक्रमा की थी. इसके साथ ही साधु-संतों ने गोबर से वहां भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की थी.

भोपाल। गणेश चतुर्थी के चौथे दिन भगवान के 'गजवक्र' रूप की अराधना की जाती है. कहते हैं कि भगवान के इस रूप की पूजा करने से अभीष्ट सिद्धि और तीक्ष्ण बुद्धि की प्राप्ति होती है. तो आइए गणेश चतुर्थी के चौथे दिन हम आपको भगवान गणेश के चौथे नाम 'गजवक्र' के बारे में बताते हैं. यह भी जानें कि आखिर कैसे तीसरे दिन आप गजानन को प्रसन्न कर सकते हैं.

'गजवक्र' रूप की अराधना

पंडित विष्णु राजोरिया बताते हैं कि भगवान गणेश का चौथा स्वरूप 'गजवक्र' है, इसे 'गजकण' भी कहा जाता है. अत्यंत विशाल देह और मस्तक वाले तथा सूपे की तरह कान वाले, तीक्ष्ण बुद्धि वाला होने के कारण इन्हें अभीष्ट सिद्धि का प्रदाता माना जाता है. गजवक्र या गजकण स्वरूप की आराधना करने से अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है, तीक्ष्ण बुद्धि भी मिलती है.

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एक कथा के अनुसार, भगवान शंकर द्वारा मां पार्वती को दिए गए पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद ही गणेश जी ने अर्बुद पर्वत (माउंट आबू जिसे अर्बुदारण्य भी कहा जाता है) पर जन्म लिया था. गणपति के जन्म के बाद देवी-देवताओं ने इस पर्वत की परिक्रमा की थी. इसके साथ ही साधु-संतों ने गोबर से वहां भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की थी.

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