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जनजातीय संग्रहालय में भोजपुरी लोक और ठुमरी गायन से गुलजार हुई शाम - Thumri Singing

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कला अनुशासन की गतिविधियों पर आधारित एक रंग श्रंखला के अंतर्गत भोजपुरी साहित्य अकादमी द्वारा सुश्री रूपन सामंता के गायन का आयोजन किया गया.

Bhopal Cultural News
मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय
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Published : Nov 12, 2020, 3:37 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कला अनुशासन की गतिविधियों पर एक आक्रामक रंग मध्यप्रदेश श्रंखला के अंतर्गत भोजपुरी साहित्य अकादमी द्वारा सुश्री रूपन सामंता हरिद्वार के भोजपुरी लोक एवं ठुमरी गायन की प्रस्तुति दी गई.

ठुमरी गायन से गुलजार हुई शाम
गायन की शुरुआत मिश्र खमाज की ठुमरी ''कारे मतवारे मन हर लीनो श्याम'' से हुई इसके बाद मिश्र पहाड़ी में ''चैती चैत मास बोलेले कोयलिया'' मिश्र पीलू में ''होली आंखिन भरत गुलाल रसिया ना माने, कजरी झिर झिर बरसे सावन बुंदिया'' और भैरवी में भजन ''जोगिया तू कब रे मिलोगे आई'' से अपने गायन को विराम दिया.

रूपन सामंता बनारस घराने की अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गायिका पदम विभूषण स्वर्गीय गिरिजा देवी की शिष्या हैं. उन्होंने सुश्री गिरिजा देवी के सानिध्य में 10 वर्षों तक गुरु गृह में रहकर संगीत की शिक्षा प्राप्त की. रूपन सामंता ने बनारस घराने की विधाओं ख्याल, टप्पा, ठुमरी, दादरा, झूला कजरी, होली चैती इत्यादि अनुषंगो रूपन सामंता ने शिक्षा प्राप्त की है. आकाशवाणी और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद से जुड़ी हैं और देश एवं विदेश में कई प्रस्तुतियां दी हैं. रूपन समय-समय पर कई पुरस्कार और सुरमनी कला केतकी के साथ ही कला रत्न मिले हैं. रूपन सामंता के गायन में तबले पर रामेंद्र सोलंकी और हारमोनियम पर समीर खान ने संगत दी.

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कला अनुशासन की गतिविधियों पर एक आक्रामक रंग मध्यप्रदेश श्रंखला के अंतर्गत भोजपुरी साहित्य अकादमी द्वारा सुश्री रूपन सामंता हरिद्वार के भोजपुरी लोक एवं ठुमरी गायन की प्रस्तुति दी गई.

ठुमरी गायन से गुलजार हुई शाम
गायन की शुरुआत मिश्र खमाज की ठुमरी ''कारे मतवारे मन हर लीनो श्याम'' से हुई इसके बाद मिश्र पहाड़ी में ''चैती चैत मास बोलेले कोयलिया'' मिश्र पीलू में ''होली आंखिन भरत गुलाल रसिया ना माने, कजरी झिर झिर बरसे सावन बुंदिया'' और भैरवी में भजन ''जोगिया तू कब रे मिलोगे आई'' से अपने गायन को विराम दिया.

रूपन सामंता बनारस घराने की अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गायिका पदम विभूषण स्वर्गीय गिरिजा देवी की शिष्या हैं. उन्होंने सुश्री गिरिजा देवी के सानिध्य में 10 वर्षों तक गुरु गृह में रहकर संगीत की शिक्षा प्राप्त की. रूपन सामंता ने बनारस घराने की विधाओं ख्याल, टप्पा, ठुमरी, दादरा, झूला कजरी, होली चैती इत्यादि अनुषंगो रूपन सामंता ने शिक्षा प्राप्त की है. आकाशवाणी और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद से जुड़ी हैं और देश एवं विदेश में कई प्रस्तुतियां दी हैं. रूपन समय-समय पर कई पुरस्कार और सुरमनी कला केतकी के साथ ही कला रत्न मिले हैं. रूपन सामंता के गायन में तबले पर रामेंद्र सोलंकी और हारमोनियम पर समीर खान ने संगत दी.

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