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दो सौ साल पुराना ये मंदिर है चमत्कारी, खजूर के पेड़ से प्रकट हुईं थीं शीतला माता - Sharadiya Navratri 2020

भोपाल के माता मंदिर क्षेत्र में एक ऐसा मंदिर है, जिसका निर्माण 200 साल पहले किया गया था. जानकारों के अनुसार यहां विराजित माता कि मूर्ती स्वयंभू है, यानी मूर्ति का निर्माण करा के स्थापना नहीं की गई, बल्कि माता की ये मुर्ति यहीं प्रकट हुई है.

200 year old Shitala Mata Temple
चमत्कारी शीतला माता मंदिर
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Published : Oct 19, 2020, 4:11 AM IST

भोपाल। शारदीय नवरात्र आते ही प्राचीन देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है. राजधानी भोपाल के माता मंदिर क्षेत्र में भी एक ऐसा मंदिर है, प्राचीन शीतला माता मंदिर मंदिर, जिसका निर्माण 200 साल पहले किया गया था. जानकारों के अनुसार यहां विराजित माता कि मूर्ति स्वयंभू है, यानी मूर्ति का निर्माण कर स्थापना नहीं की गई, बल्कि माता की ये मुर्ति यहीं से उत्पन्न हुई है.

चमत्कारी शीतला माता मंदिर

प्राचीन शीतला माता मंदिर में मां शीतला पिंडी स्वरूप में विराजमान हैं, उनके साथ ही मां दुर्गा मां काली भी विराजमान हैं. पंडित राजीव चतुर्वेदी के अनुसार यह मंदिर 200 साल पुराना है और नवाबी दौर के पहले यहां खजूर के पेड़ से मां शीतला माता स्वयं प्रकट हुईं थीं, जिसके बाद से वहां पर मढ़िया बना कर पूजा-अर्चना होने लगी और आज तक लोगों की आस्था बना हुआ है.

वैसे तो हर साल इस मंदिर में काफी भीड़ रहती है, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के कारण श्रद्धालुओं की संख्या में कमी आई है. संक्रमण के कारण मंदिर में अंदर किसी को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. पूजा-पाठ की सामग्री भी बाहर ही अलग-अलग स्थानों पर औपचारि रुप से समर्पित की जा रही है. इसके लिए मंदिर प्रबंधन ने भी टेवल लगा कर व्यवस्था की है, जहां भक्त पूजन की सामग्री समर्पित कर रहे हैं.

कहा जाता है 200 साल पहले मूर्ती यहां पर लगे एक खजूर के वृक्ष के नीचे से निकली थी. मान्यता है कि आज तक इस मंदिर के सामने कभी कोई हादसा भी नहीं हुआ है. हर साल नवरात्रि के दौरान राजधानी भोपाल का शीतला माता मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र रहता है. यहां मान्यता है कि माता के त्रिशूल पर चुन्नी बांधने से हर मुराद पूरी होती है शायद यही वजह है कि लोग मन्नत मांगने इस मंदिर में पहुंचते हैं.

पुजारी राजीव चतुर्वेदी के अनुसार उनकी पांचवी पीढ़ी इस मंदिर में पूजा करती आ रही है. यानी उनके दादा, परदादा इस मंदिर की पूजा करते आए हैं. उन्होंने बताया कि पूर्वजों के अनुसार जब यहां पर माता प्रकट हुई थी, उस समय आसपास सिर्फ जंगल और बीच में कोटरा गांव, नीलबड़, अकबरपुर, रातीबड़ के अलावा अन्य स्थानों से लोग यहां पूजा कर अर्चना करने आते थे. हालांकि धीरे-धीरे आबादी बढ़ती गई और शहर बड़ा होने के साथ ही अब यह मंदिर नए शहर के बीचो-बीच आ गया है.

भोपाल। शारदीय नवरात्र आते ही प्राचीन देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है. राजधानी भोपाल के माता मंदिर क्षेत्र में भी एक ऐसा मंदिर है, प्राचीन शीतला माता मंदिर मंदिर, जिसका निर्माण 200 साल पहले किया गया था. जानकारों के अनुसार यहां विराजित माता कि मूर्ति स्वयंभू है, यानी मूर्ति का निर्माण कर स्थापना नहीं की गई, बल्कि माता की ये मुर्ति यहीं से उत्पन्न हुई है.

चमत्कारी शीतला माता मंदिर

प्राचीन शीतला माता मंदिर में मां शीतला पिंडी स्वरूप में विराजमान हैं, उनके साथ ही मां दुर्गा मां काली भी विराजमान हैं. पंडित राजीव चतुर्वेदी के अनुसार यह मंदिर 200 साल पुराना है और नवाबी दौर के पहले यहां खजूर के पेड़ से मां शीतला माता स्वयं प्रकट हुईं थीं, जिसके बाद से वहां पर मढ़िया बना कर पूजा-अर्चना होने लगी और आज तक लोगों की आस्था बना हुआ है.

वैसे तो हर साल इस मंदिर में काफी भीड़ रहती है, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के कारण श्रद्धालुओं की संख्या में कमी आई है. संक्रमण के कारण मंदिर में अंदर किसी को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. पूजा-पाठ की सामग्री भी बाहर ही अलग-अलग स्थानों पर औपचारि रुप से समर्पित की जा रही है. इसके लिए मंदिर प्रबंधन ने भी टेवल लगा कर व्यवस्था की है, जहां भक्त पूजन की सामग्री समर्पित कर रहे हैं.

कहा जाता है 200 साल पहले मूर्ती यहां पर लगे एक खजूर के वृक्ष के नीचे से निकली थी. मान्यता है कि आज तक इस मंदिर के सामने कभी कोई हादसा भी नहीं हुआ है. हर साल नवरात्रि के दौरान राजधानी भोपाल का शीतला माता मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र रहता है. यहां मान्यता है कि माता के त्रिशूल पर चुन्नी बांधने से हर मुराद पूरी होती है शायद यही वजह है कि लोग मन्नत मांगने इस मंदिर में पहुंचते हैं.

पुजारी राजीव चतुर्वेदी के अनुसार उनकी पांचवी पीढ़ी इस मंदिर में पूजा करती आ रही है. यानी उनके दादा, परदादा इस मंदिर की पूजा करते आए हैं. उन्होंने बताया कि पूर्वजों के अनुसार जब यहां पर माता प्रकट हुई थी, उस समय आसपास सिर्फ जंगल और बीच में कोटरा गांव, नीलबड़, अकबरपुर, रातीबड़ के अलावा अन्य स्थानों से लोग यहां पूजा कर अर्चना करने आते थे. हालांकि धीरे-धीरे आबादी बढ़ती गई और शहर बड़ा होने के साथ ही अब यह मंदिर नए शहर के बीचो-बीच आ गया है.

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