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बरसात में खराब सड़क से परेशान लोग, जगह-जगह जलभराव से हादसे की आशंका - waterlogging in rewa

रेलवे स्टेशन के निर्माण के लिए सरकार को अपनी जमीनें देने वाले लोगों को करीब 35 सालों में भी एक अच्छी सड़क नहीं मिल पाई है. हर साल बारिश के मौसम में ये सड़कें लोगों के मुसीबत का सबब बन जाती है.

खराब सड़क से परेशान लोग
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Published : Jul 3, 2019, 10:56 AM IST

रीवा। शहर में हुई हल्की बारिश ने जलभराव की स्थिति पैदा कर दी है. रेलवे स्टेशन के पास रह रहे लोगों ने साल 1984 में रेलवे को अपनी जमीन दे दी थी, जिसके बाद से ही यहां रह रहे लोगों का जीना मुहाल हो गया है. करीब 35 साल बीत जाने के बाद भी लोगों को एक ढंग की सड़क नसीब नहीं हुई. सड़क में जगह-जगह गड्ढे हैं, जो बारिश में भर जाते हैं और यहां हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है. साथ ही लोगों को भी आने-जाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

खराब सड़क से परेशान लोग


रेलवे स्टेशन के लिए जिन लोगों ने अपनी जमीन रेलवे को मुहैया कराई थी, उन्हें पिछले 35 सालों से आवागमन के लिए एक रास्ता भी नसीब नहीं हो रहा है. यही वजह है कि हर साल बरसात आते ही हरिजन बस्ती में 2 सैकड़ा लोगों की आबादी अपने घरों में कैद होने के लिए मजबूर हो जाती है. जबलपुर रेल मंडल और पश्चिम मध्य रेल जोन के जिम्मेदारों को रीवा आवागमन के दौरान भी कई बार इन गरीब लोगों ने अपनी समस्याओं से अवगत कराया, लेकिन अब तक आश्वासन के सिवाय कुछ नसीब नहीं हुआ. इसी तरह से स्थानीय नेताओं से भी कई बार यहां के रहवासी अपनी समस्याओं का दुखड़ा रो चुके हैं, लेकिन उन्हें आने-जाने के लिए रास्ता नहीं मिल पाया है.

रीवा। शहर में हुई हल्की बारिश ने जलभराव की स्थिति पैदा कर दी है. रेलवे स्टेशन के पास रह रहे लोगों ने साल 1984 में रेलवे को अपनी जमीन दे दी थी, जिसके बाद से ही यहां रह रहे लोगों का जीना मुहाल हो गया है. करीब 35 साल बीत जाने के बाद भी लोगों को एक ढंग की सड़क नसीब नहीं हुई. सड़क में जगह-जगह गड्ढे हैं, जो बारिश में भर जाते हैं और यहां हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है. साथ ही लोगों को भी आने-जाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

खराब सड़क से परेशान लोग


रेलवे स्टेशन के लिए जिन लोगों ने अपनी जमीन रेलवे को मुहैया कराई थी, उन्हें पिछले 35 सालों से आवागमन के लिए एक रास्ता भी नसीब नहीं हो रहा है. यही वजह है कि हर साल बरसात आते ही हरिजन बस्ती में 2 सैकड़ा लोगों की आबादी अपने घरों में कैद होने के लिए मजबूर हो जाती है. जबलपुर रेल मंडल और पश्चिम मध्य रेल जोन के जिम्मेदारों को रीवा आवागमन के दौरान भी कई बार इन गरीब लोगों ने अपनी समस्याओं से अवगत कराया, लेकिन अब तक आश्वासन के सिवाय कुछ नसीब नहीं हुआ. इसी तरह से स्थानीय नेताओं से भी कई बार यहां के रहवासी अपनी समस्याओं का दुखड़ा रो चुके हैं, लेकिन उन्हें आने-जाने के लिए रास्ता नहीं मिल पाया है.

Intro:गर्मी का सितम धीरे धीरे कम सा हो गया काले बादलों से बीच बीच में बारिश से जहां एक तरफ लोगों को राहत मिल रही है वहीं दूसरी तरफ लोग हल्की बारिश के जलभराव से परेशान हो जाते हैं.. यह हालात रीवा के रेलवे स्टेशन के पास निवास कर रहे लोगों के सन 1984 में रेलवे को अपनी जमीन देने के बाद आज भी इस जगह में रहने वाले लोग सरकार से रोड की लड़ाई लड़ रहे हैं करीब 20 सालों से बरसात के मौसम का सितम इन पर कहर बनकर उमड़ता है मानो यह अपने घरों में ही कैद होकर रह जाते हैं.. कई बार सरकार के नुमाइंदों के द्वारा कई आश्वासन भी मिले नेताओं ने तो रोड बनाने का वादा भी कर दिया लेकिन 20 साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।









Body:रेलवे स्टेशन के लिए जमीन देने वालों को नसीब नहीं हुआ रास्ता रेलवे स्टेशन की परिकल्पना को साकार करने के लिए जिन लोगों ने सहजता के साथ अपनी जमीन रेलवे को मुहैया कराई थी उन्हें पिछले 26 वर्षों से आवागमन के लिए एक रास्ता भी नसीब नहीं हो रहा है यही वजह है कि हर वर्ष बरसात का सिलसिला प्रारंभ होते ही हरिजन बस्ती में 2 सैकड़ा लोगों की आबादी अपने घरों में कैद होने के लिए मजबूर हो जाती है

जबलपुर रेल मंडल और पश्चिम मध्य रेल जोन के जिम्मेदार आला अफसरों को रीवा आगमन के दौरान कई बार इन गरीब लोगों ने अपनी समस्याओं से अवगत कराया लेकिन अब तक आश्वासन के सिवाय कुछ नसीब नहीं हुआ इसी तरह से स्थानीय नेताओं से भी कई बार गरीब अपनी समस्याओं का दुखड़ा रो चुके हैं पर हरिजन बस्ती को आवागमन करने के लिए एक रास्ता नहीं मिल पाया है

रेलवे पुलिस चौकी के ठीक पीछे हरिजन बस्ती बसी हुई है यहां रहने वाले लोगों ने वर्ष 1984 के बाद रीवा रेलवे स्टेशन का निर्माण कराने के लिए चल रहे जमीन अधिग्रहण के दौरान अपनी बेशकीमती जमीन रेलवे को उपलब्ध कराई थी लेकिन उन्हें खुद की आवाजाही के लिए रेल प्रशासन एक रास्ता नहीं दे पाया है.. लोग परेशान हैं उनका कहना है कि बरसात के समय तो जीना ही दुश्वार हो जाता है बच्चों का स्कूल जाना भी बंद हो जाता है जैसे तैसे इन गंदे नालो को लांग कर अपनी जरूरतों को पूरा किया जाता है आज भी यहां रहने वाले लोग दूसरों के घरों से बिजली लेने को मजबूर हैं मुआवजे तो मिल गए लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है..



Conclusion:
इस पूरे मामले को लेकर कई बार कुछ नेताओं ने भी उनके हक की मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया लेकिन इन समस्याओं का हल अब तक नहीं निकाला गया..

wt स्थानीय लोगो के साथ।
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