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कीचक वध का मंचन, कलाकारों का अभिनय देख मुग्ध हुए दर्शक

राधेश्याम पंडा के निर्देशन में उड़िया पाला शैली में कीचक वध का मंचन किया गया. इस प्रस्तुति का निर्देशन राधेश्याम पंडा के द्वारा किया गया. बता दें कि राधेश्याम पंडा कई वर्षों से रंगकर्म से जुड़े हुए हैं.

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Published : Apr 27, 2019, 11:56 AM IST

कीचक वध का मंचन

भोपाल| मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में रंग प्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रृंखला अभिनयन में राधेश्याम पंडा के निर्देशन में उड़िया पाला शैली में कीचक वध का मंचन किया गया. इस प्रस्तुति को देखने के लिए राजधानी में रह रहे उड़िया समाज के लोग भारी संख्या में पहुंचे. सभी ने इस प्रस्तुति की प्रशंसा भी की है.

कीचक वध का मंचन


शुक्रवार को हुई प्रस्तुति पांडवों के अज्ञातवास के दौरान की कथा पर आधारित थी. इस प्रस्तुति के केंद्र में कीचक है, जो असल में विराट नगर का सेनापति और महारानी सुदेशना का भाई है. इसी नगर में पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ वेश बदलकर रह रहे होते हैं. द्रौपदी महारानी सुदर्शना की दासी के वेश में होती है. एक दिन कीचक की नजर अपनी बहन की दासी द्रौपदी पर पड़ती है और वह दासी द्रौपदी को अपने पास बुलाता है, लेकिन कुछ ही देर में दासी द्रौपदी कीचक को अंजाम बुरा होने की बात कहती है और चली जाती है.


द्रौपदी पूरा किस्सा पांडवों को बताती है. सब योजना बनाते हैं और योजना के अनुरूप ही भीम अपने बल से कीचक का वध कर देते हैं. कीचक वध के ही साथ प्रस्तुति का अंत होता है. यह प्रस्तुति लगभग 1 घंटे की रही. इस प्रस्तुति में कलाकारों ने अपनी कला कौशल से दर्शकों को नारी का सम्मान करने और हमेशा सकारात्मक कार्य में संलग्न रहने की प्रेरणा दी.

भोपाल| मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में रंग प्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रृंखला अभिनयन में राधेश्याम पंडा के निर्देशन में उड़िया पाला शैली में कीचक वध का मंचन किया गया. इस प्रस्तुति को देखने के लिए राजधानी में रह रहे उड़िया समाज के लोग भारी संख्या में पहुंचे. सभी ने इस प्रस्तुति की प्रशंसा भी की है.

कीचक वध का मंचन


शुक्रवार को हुई प्रस्तुति पांडवों के अज्ञातवास के दौरान की कथा पर आधारित थी. इस प्रस्तुति के केंद्र में कीचक है, जो असल में विराट नगर का सेनापति और महारानी सुदेशना का भाई है. इसी नगर में पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ वेश बदलकर रह रहे होते हैं. द्रौपदी महारानी सुदर्शना की दासी के वेश में होती है. एक दिन कीचक की नजर अपनी बहन की दासी द्रौपदी पर पड़ती है और वह दासी द्रौपदी को अपने पास बुलाता है, लेकिन कुछ ही देर में दासी द्रौपदी कीचक को अंजाम बुरा होने की बात कहती है और चली जाती है.


द्रौपदी पूरा किस्सा पांडवों को बताती है. सब योजना बनाते हैं और योजना के अनुरूप ही भीम अपने बल से कीचक का वध कर देते हैं. कीचक वध के ही साथ प्रस्तुति का अंत होता है. यह प्रस्तुति लगभग 1 घंटे की रही. इस प्रस्तुति में कलाकारों ने अपनी कला कौशल से दर्शकों को नारी का सम्मान करने और हमेशा सकारात्मक कार्य में संलग्न रहने की प्रेरणा दी.

Intro:जनजातीय संग्रहालय के मुक्ताकाश मंच पर हुआ उड़िया पाला शैली में कीचक वध का मंचन



भोपाल | मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में रंग प्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रंखला अभिनयन मैं राधेश्याम पंडा के निर्देशन में उड़िया पाला शैली में कीचक वध का मंचन संग्रहालय के मुक्ताकाश मंच पर आयोजित किया गया इस प्रस्तुति को देखने के लिए राजधानी में रह रहे उड़िया समाज के लोग भारी संख्या में पहुंचे सभी ने इस प्रस्तुति की प्रशंसा भी की है


Body:आज की प्रस्तुति पांडवों के अज्ञातवास के दौरान की कथा पर आधारित है इस प्रस्तुति के केंद्र में कीचक है जो असल में विराट नगर का सेनापति और महारानी सुदेशना का भाई है इसी नगर में पांडव अपनी पत्नी द्रोपदी के साथ वेश बदलकर रह रहे होते हैं . द्रौपदी महारानी सुदर्शना की दासी के वेश में होती है . 1 दिन कीचक की नजर अपनी बहन की दासी द्रोपदी पर पड़ती है . अतः वह अब उसे पाना चाहता है .


इसी उद्देश्य से वह दासी द्रौपदी को अपने पास बुलाता है . परंतु कुछ ही देर में दासी द्रोपदी कीचक को अंजाम बुरा होने की बात कहती है और चली जाती है . द्रौपदी पूरा किस्सा पांडवों को बताती है . अतः सब योजना बनाते हैं और योजना के अनुरूप ही भीम अपने बल से कीचक का वध कर देते हैं .कीचक वध के ही साथ प्रस्तुति का अंत होता है . यह प्रस्तुति लगभग 1 घंटे की रही . इस प्रस्तुति में कलाकारों ने अपनी कला कौशल से दर्शकों को नारी का सम्मान करने और हमेशा सकारात्मक कार्य में संलग्न रहने की प्रेरणा दी .


Conclusion:नाट्य प्रस्तुति के दौरान कई बार दर्शकों ने कलाकारों का उत्साहवर्धन करतल ध्वनि से किया . प्रस्तुति के दौरान मंच पर राधेश्याम पंडा, सीताराम नाग, रत्नाकर छंद , प्रहलाद नाथ, करुणाकर भोई , बिपिन बिहारी सेठ , सरस्वती किशन , सुकन्या उदावर , पल्लवी उदावर , बसंती किशन , सुनंदा प्रधान और कोमिता किशन आदि ने अपने अभिनय कौशल से सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया . प्रस्तुति के दौरान मंच पर मृदंग वादन में सीताराम नाग ने , काठिया वादन में रत्नाकर छंद ने, झांझ प्रहलाद नाथ ने और झुमकी पर करुणाकर ने सहयोग किया .इस प्रस्तुति का निर्देशन राधेश्याम पंडा के द्वारा किया गया . राधेश्याम पंडा कई वर्षों से रंग कर्म से जुड़े हुए हैं . राधेश्याम ने कई नाटकों में अभिनय करने के साथ ही कई नाटकों का निर्देशन भी किया है .

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