हैदराबाद : आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती पर 15 नवंबर को देश में पहली बार जनजातीय गौरव दिवस मनाया गया. बिरसा वैसे तो पूरे आदिवासी समुदाय के आदर्श पुरुष हैं. मगर उनकी रिहाइश तलाशी जाए तो वह झारखंड के थे. 15 नवंबर को झारखंड अपना स्थापना दिवस भी मनाता है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि आदिवासी से जुड़े गौरव दिवस के मुख्य कार्यक्रम भोपाल के जंबूरी मैदान में हुए, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोंड आदिवासी की वेशभूषा में शिरकत की. इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने नए कलेवर में सजे-धजे हबीबगंज स्टेशन का नामाकरण महारानी कमलावती के नाम पर कर दिया, वह भी गोंड जनजाति की महारानी थी. आयोजन से पहले सरकार यह बताना नहीं भूली कि कमलावती भोपाल की अंतिम हिंदू महारानी थी.
मध्यप्रदेश में आदिवासी गौरव दिवस क्यों ?
- कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी ने गौरव दिवस के बहाने बिरसा मुंडा और महारानी कलावती के जरिये आदिवासी वोटरों के बीच अपनी स्थिति और मजबूत करने की तैयारी पक्की कर ली. गौरव दिवस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के करीब ढाई लाख आदिवासी शामिल हुए.
- अभी मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है. आदिवासी बाहुल्य अन्य राज्यों झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश में भाजपा सत्ता से बाहर है, इसलिए आयोजन के लिए भोपाल को चुना गया.
- अभी भारतीय जनता पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद दो बड़े चुनाव की तैयारी में जुट गई है. पिछले चुनावों में बीजेपी आदिवासी इलाकों में लगातार पिछड़ रही है. नरेंद्र मोदी की सत्ता वापसी के लिए आदिवासी क्षेत्रों जीत भी जरूरी है.
- मध्यप्रदेश देश का दिल है. आदिवासी बाहुल्य अधिकतर राज्य मध्यप्रदेश की सीमा से जुड़े हैं. मध्यप्रदेश में गोंड आदिवासी की तादाद ज्यादा है. भोपाल में होने वाले कार्यक्रम का संदेश पड़ोसी राज्यों में आसानी से पहुंच सकता है.
- भले ही छत्तीसगढ़ और झारखंड हिंदी पट्टी के आदिवासी राज्य हों, मगर देश की कुल ट्राइबल आबादी के 14.7 प्रतिशत आदिवासी मध्यप्रदेश में रहते हैं. छत्तीसगढ़ में यह अनुपात 7.5 फीसदी और झारखंड में 8.3 फीसदी है. महाराष्ट्र में भी देश की कुल आदिवासी जनसंख्या के 10.1 ट्राइब्स रहते हैं.
क्या है आदिवासी वोटों का समीकरण ?
आदिवासियों की आबादी देश में 8.6 प्रतिशत है. मध्यप्रदेश में 21.1 और गुजरात में 15 फीसद आबादी आदिवासियों की है. झारखंड की 26.2 और छत्तीसगढ़ की 30.6 आबादी आदिवासियों की है. इसी तरह महाराष्ट्र में 9.4 और ओडिशा में 9.2 आबादी शिड्यूल ट्राइब्स की है. इन राज्यों को एक मजबूत कड़ी से जोड़ने वाले सूत्र हैं, गोंड आदिवासी. गोंड मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार और ओडिशा में फैले हुए हैं.
2018 और 2019 में हुए राज्यों के विधानसभा चुनाव से यह सामने आया कि आदिवासी समाज, बीजेपी से दूरी बना रहा है. बीजेपी को झारखंड और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवानी पड़ी. भाजपा के लिए राहत का विषय यह रहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में आदिवासी के लिए आरक्षित 47 में 31 सीटों पर जीत मिली. एक्सपर्ट मानते हैं कि आदिवासी वोटरों ने केंद्र की सरकार के लिए बीजेपी को वोट दिया, मगर राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को तवज्जो दी.
झारखंड में 26 सीटें ऐसी हैं जो आदिवासी बहुल हैं और कुल 81 सीटों वाली विधानसभा में 28 सीटें अनुसूचित जनजाति (STs) के लिए आरक्षित हैं. बीजेपी ने 2014 मे 11 सीटें जीतीं थी. मगर 2019 में वह दो सीटों पर सिमट गई.
मध्यप्रदेश में 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, जिनमें 31 पर कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में कब्जा कर लिया. इसके अलावा प्रदेश की 35 अन्य विधानसभा सीटों पर आदिवासियों के कम से 50 हजार वोट हैं. इससे पहले बीजेपी ने एसटी के लिए रिजर्व सीटों में 37 जीत चुकी है.
गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की कुल 70 विधानसभा सीट एसटी के लिए रिजर्व हैं, मगर बीजेपी के खाते में सिर्फ 26 सीटें ही हैं. यानी 2022 और 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी को आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी. यदि भारतीय जनता पार्टी 2023 के सेमीफाइनल में पिछड़ जाती है तो 2024 में नरेंद्र मोदी को सत्ता वापसी के लिए संघर्ष करना पड़ेगा.