ETV Bharat / bharat

ukraine russia crisis : भारत पर कोई स्पष्ट बयान देने के लिए दबाव नहीं बना सकता - मल्होत्रा

पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा (Former Diplomat Achal Malhotra) का यूक्रेन और रूस के बीच जारी तनाव को लेकर मानना है कि भारत पर कोई स्पष्ट बयान देने के लिए दबाव नहीं बना सकता है. क्योंकि रूस और यूक्रेन दोनों ही भारत के अच्छे दोस्त हैं. पढ़िए ईटीवी भारत के संवाददाता सौरभ शर्मा की रिपोर्ट...

Former Diplomat Achal Malhotra
पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा (फाइल फोटो)
author img

By

Published : Feb 24, 2022, 7:46 PM IST

नई दिल्ली : यूक्रेन और रूस के बीच जारी तनाव अब एक सैन्य संघर्ष में बदल गया है, जो पश्चिमी देशों की निराशा के लिए काफी है. वहीं परेशानी भारत जैसे देशों के लिए है, जिनके लिए रूस और यूक्रेन दोनों अच्छे दोस्त हैं.ऐसी स्थिति में भारत के लिए 'तटस्थ' रहना बहुत मुश्किल है. इस संबंध में पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा (Former Diplomat Achal Malhotra) जो रूस और यूक्रेन को करीब से जानते हैं, उनका मानना ​​है कि भारत की कोई भी स्पष्ट बयान देने की संभावना नहीं है जो उसके रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकता है. वहीं भारत पर कोई स्पष्ट बयान देने के लिए दबाव नहीं बना सकता है.

उन्होंने कहा कि जैसा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा पूर्वी यूक्रेन में एक विशेष सैन्य अभियान शुरू करने के बाद विश्व एक पूर्ण युद्ध की एक और संभावना को देखता है. वहीं पश्चिम की निराशा के बीच उस क्षेत्र में अब स्थिति अस्थिर लगती है. हालांकि अमेरिका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, जापान और कई अन्य देशों सहित पश्चिम ने सीधे तौर पर पुतिन के कदम की निंदा की है और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. इसके साथ ही यह भी उम्मीद जताई जा रही है कि इस तरह के और प्रतिबंध और लगाए जा सकते हैं.

इस संबंध में पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ने ईटीवी भारत से बातचीत की. उन्होंने रूस-यूक्रेन संकट पर नई दिल्ली के रुख पर टिप्पणी को लेकर कहा कि भारत ने स्पष्ट रूप से यह कहते हुए एक बहुत ही ठोस रुख अपनाया है कि इस तरह के विवादों को हल करने का एकमात्र तरीका है. उन्होंने कहा कि यह कहना कि नई दिल्ली चुप बैठी है, यह कहना सही नहीं है. मल्होत्रा ने कहा कि शांतिपूर्ण बातचीत, रचनात्मक कूटनीति और सभी संबंधित पक्षों के सुरक्षा हितों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. इस पंक्ति पर भारत का रुख स्पष्ट है और वह यह है कि हम कोई स्पष्ट बयान नहीं देंगे. यह कहना कि भारत को अमेरिका, यूरोपीय संघ या किसी अन्य के साथ खड़ा होना चाहिए और हमें रूस की निंदा करनी चाहिए, बिल्कुल गलत है.

ये भी पढ़ें - ukraine russia crisis : यूक्रेन में हमलों के बाद भयावह मंजर, रूस के साथ राजनयिक रिश्ते टूटे

उन्होंने कहा कि नई दिल्ली ऐसा नहीं करेगी क्योंकि हम अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का प्रयोग कर रहे हैं. और, चूंकि हम किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं और इसलिए इस संकट को हल करने का बोझ हमारे सिर पर नहीं है. मल्होत्रा ने कहा कि इन सभी देशों के साथ हमारी रणनीतिक साझेदारी है और साझेदारी आपको बहुत लचीलापन देती है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, टीएस तिरुमूर्ति ने बुधवार को यूएनएससी की बैठक में दोहराया था कि भारत रूस-यूक्रेन संकट का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है.

यहां यह ध्यान देने योग्य है कि पश्चिम अब एकजुट प्रतीत होता है और उसने प्रदर्शित किया है कि यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता पर हमला करने वाले ऐसे किसी भी सामरिक कदम के गंभीर परिणाम होंगे. लेकिन अब जबकि युद्ध अभी शुरू हुआ है और कीव में 'आपातकाल की स्थिति' लागू कर दी गई है, पश्चिम ने क्रेमलिन के कदमों की निंदा की है और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. जबकि पुतिन, जो इन कठोर आर्थिक प्रतिबंधों से डरते नहीं हैं, ने अन्य देशों को चेतावनी दी है कि हस्तक्षेप करने के किसी भी प्रयास से 'परिणाम आपने कभी नहीं देखे होंगे.'

इस बयान पर कि क्रेमलिन द्वारा उठाए गए सुरक्षा मांगों पर पश्चिम को फिर से सोचने की जरूरत है, इस पर पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि संयुक्त राज्य अमेरिका या नाटो स्पष्ट रूप से यह घोषणा करेंगे कि वे यूक्रेन को नाटो में स्वीकार नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि यह संकट 2008 के जार्जिया के संकट की याद दिलाता है.जहां तक ​​डोनबास की स्थिति का संबंध है, रिपोर्टों में कहा गया है कि डोनेत्स्क (Donetsk) और लुगंस्क (Lugansk) (अब क्रेमलिन द्वारा मान्यता प्राप्त) के विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्र जहां अलगाववादियों का गढ़ है (जहां बहुसंख्यक जातीय रूप से रूसी हैं और यहां तक ​​​​कि रूसी नागरिकता भी है) जो क्रेमलिन द्वारा समर्थित डोनबास क्षेत्र के कुल क्षेत्र का 1/3 भाग नियंत्रित करता है. दूसरी तरफ शांति सैनिकों के बहाने इन क्षेत्रों में सैनिकों को भेजने की पुतिन की योजना एक मजबूत संदेह पैदा करती है कि योजना एक बफर ज़ोन बनाने और एक तरह से डोनबास क्षेत्र को पूरी तरह से नियंत्रित करने की है.

ये भी पढ़ें -रूस के हमलों से दहला यूक्रेन, पीएम मोदी से मांगी मदद

इस सवाल पर पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है. यह एक रणनीति हो सकती है. बफर जोन बनाने के लिए वे पूरे डोनबास क्षेत्र को नियंत्रित कर सकते हैं. पिछले कुछ महीनों से पुतिन रणनीति बना रहे थे क्योंकि उन्हें पता था कि आज अमेरिका उतना मजबूत नहीं है. और वह योजना थी जो काम कर गई.

यह पूछे जाने पर कि यह संकट विश्व व्यवस्था को कैसे प्रभावित करने वाला है, इस पर अचल मल्होत्रा का कहना था कि रूस को धक्का देने से चीन की ओर और अधिक झुकाव होगा. उन्होंने कहा कि चीन के साथ रूस का गठबंधन सुविधा की पहुंच है. क्योंकि रूस भी चीन से खतरा महसूस करता है. उन्होंने कहा कि मध्य एशिया में अधिक प्रभाव डालने की चीन की महत्वाकांक्षा एक ऐसा तथ्य है जो निश्चित रूप से रूस को परेशान कर रहा होगा. चूंकि ये मध्य एशियाई क्षेत्र कभी यूएसएसआर का हिस्सा थे और इसके पतन के साथ, रूस कभी नहीं चाहेगा कि उसका प्रभाव क्षेत्र वहां कमजोर हो.

नई दिल्ली : यूक्रेन और रूस के बीच जारी तनाव अब एक सैन्य संघर्ष में बदल गया है, जो पश्चिमी देशों की निराशा के लिए काफी है. वहीं परेशानी भारत जैसे देशों के लिए है, जिनके लिए रूस और यूक्रेन दोनों अच्छे दोस्त हैं.ऐसी स्थिति में भारत के लिए 'तटस्थ' रहना बहुत मुश्किल है. इस संबंध में पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा (Former Diplomat Achal Malhotra) जो रूस और यूक्रेन को करीब से जानते हैं, उनका मानना ​​है कि भारत की कोई भी स्पष्ट बयान देने की संभावना नहीं है जो उसके रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकता है. वहीं भारत पर कोई स्पष्ट बयान देने के लिए दबाव नहीं बना सकता है.

उन्होंने कहा कि जैसा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा पूर्वी यूक्रेन में एक विशेष सैन्य अभियान शुरू करने के बाद विश्व एक पूर्ण युद्ध की एक और संभावना को देखता है. वहीं पश्चिम की निराशा के बीच उस क्षेत्र में अब स्थिति अस्थिर लगती है. हालांकि अमेरिका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, जापान और कई अन्य देशों सहित पश्चिम ने सीधे तौर पर पुतिन के कदम की निंदा की है और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. इसके साथ ही यह भी उम्मीद जताई जा रही है कि इस तरह के और प्रतिबंध और लगाए जा सकते हैं.

इस संबंध में पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ने ईटीवी भारत से बातचीत की. उन्होंने रूस-यूक्रेन संकट पर नई दिल्ली के रुख पर टिप्पणी को लेकर कहा कि भारत ने स्पष्ट रूप से यह कहते हुए एक बहुत ही ठोस रुख अपनाया है कि इस तरह के विवादों को हल करने का एकमात्र तरीका है. उन्होंने कहा कि यह कहना कि नई दिल्ली चुप बैठी है, यह कहना सही नहीं है. मल्होत्रा ने कहा कि शांतिपूर्ण बातचीत, रचनात्मक कूटनीति और सभी संबंधित पक्षों के सुरक्षा हितों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. इस पंक्ति पर भारत का रुख स्पष्ट है और वह यह है कि हम कोई स्पष्ट बयान नहीं देंगे. यह कहना कि भारत को अमेरिका, यूरोपीय संघ या किसी अन्य के साथ खड़ा होना चाहिए और हमें रूस की निंदा करनी चाहिए, बिल्कुल गलत है.

ये भी पढ़ें - ukraine russia crisis : यूक्रेन में हमलों के बाद भयावह मंजर, रूस के साथ राजनयिक रिश्ते टूटे

उन्होंने कहा कि नई दिल्ली ऐसा नहीं करेगी क्योंकि हम अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का प्रयोग कर रहे हैं. और, चूंकि हम किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं और इसलिए इस संकट को हल करने का बोझ हमारे सिर पर नहीं है. मल्होत्रा ने कहा कि इन सभी देशों के साथ हमारी रणनीतिक साझेदारी है और साझेदारी आपको बहुत लचीलापन देती है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, टीएस तिरुमूर्ति ने बुधवार को यूएनएससी की बैठक में दोहराया था कि भारत रूस-यूक्रेन संकट का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है.

यहां यह ध्यान देने योग्य है कि पश्चिम अब एकजुट प्रतीत होता है और उसने प्रदर्शित किया है कि यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता पर हमला करने वाले ऐसे किसी भी सामरिक कदम के गंभीर परिणाम होंगे. लेकिन अब जबकि युद्ध अभी शुरू हुआ है और कीव में 'आपातकाल की स्थिति' लागू कर दी गई है, पश्चिम ने क्रेमलिन के कदमों की निंदा की है और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. जबकि पुतिन, जो इन कठोर आर्थिक प्रतिबंधों से डरते नहीं हैं, ने अन्य देशों को चेतावनी दी है कि हस्तक्षेप करने के किसी भी प्रयास से 'परिणाम आपने कभी नहीं देखे होंगे.'

इस बयान पर कि क्रेमलिन द्वारा उठाए गए सुरक्षा मांगों पर पश्चिम को फिर से सोचने की जरूरत है, इस पर पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि संयुक्त राज्य अमेरिका या नाटो स्पष्ट रूप से यह घोषणा करेंगे कि वे यूक्रेन को नाटो में स्वीकार नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि यह संकट 2008 के जार्जिया के संकट की याद दिलाता है.जहां तक ​​डोनबास की स्थिति का संबंध है, रिपोर्टों में कहा गया है कि डोनेत्स्क (Donetsk) और लुगंस्क (Lugansk) (अब क्रेमलिन द्वारा मान्यता प्राप्त) के विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्र जहां अलगाववादियों का गढ़ है (जहां बहुसंख्यक जातीय रूप से रूसी हैं और यहां तक ​​​​कि रूसी नागरिकता भी है) जो क्रेमलिन द्वारा समर्थित डोनबास क्षेत्र के कुल क्षेत्र का 1/3 भाग नियंत्रित करता है. दूसरी तरफ शांति सैनिकों के बहाने इन क्षेत्रों में सैनिकों को भेजने की पुतिन की योजना एक मजबूत संदेह पैदा करती है कि योजना एक बफर ज़ोन बनाने और एक तरह से डोनबास क्षेत्र को पूरी तरह से नियंत्रित करने की है.

ये भी पढ़ें -रूस के हमलों से दहला यूक्रेन, पीएम मोदी से मांगी मदद

इस सवाल पर पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है. यह एक रणनीति हो सकती है. बफर जोन बनाने के लिए वे पूरे डोनबास क्षेत्र को नियंत्रित कर सकते हैं. पिछले कुछ महीनों से पुतिन रणनीति बना रहे थे क्योंकि उन्हें पता था कि आज अमेरिका उतना मजबूत नहीं है. और वह योजना थी जो काम कर गई.

यह पूछे जाने पर कि यह संकट विश्व व्यवस्था को कैसे प्रभावित करने वाला है, इस पर अचल मल्होत्रा का कहना था कि रूस को धक्का देने से चीन की ओर और अधिक झुकाव होगा. उन्होंने कहा कि चीन के साथ रूस का गठबंधन सुविधा की पहुंच है. क्योंकि रूस भी चीन से खतरा महसूस करता है. उन्होंने कहा कि मध्य एशिया में अधिक प्रभाव डालने की चीन की महत्वाकांक्षा एक ऐसा तथ्य है जो निश्चित रूप से रूस को परेशान कर रहा होगा. चूंकि ये मध्य एशियाई क्षेत्र कभी यूएसएसआर का हिस्सा थे और इसके पतन के साथ, रूस कभी नहीं चाहेगा कि उसका प्रभाव क्षेत्र वहां कमजोर हो.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.