नई दिल्ली : सप्रीम कोर्ट पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक (PM's 'security lapse' case) की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक पैनल गठित करने पर सहमत हो गया है.
मामले में विस्तृत सुनवाई के बाद, मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली और जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की पीठ ने कहा कि अदालत पीएम के सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करेगी. कोर्ट ने साथ ही केंद्र और पंजाब सरकार से अपनी-अपनी जांच आगे नहीं बढ़ाने को कहा है.
पीठ ने कहा कि वह इस मामले में विस्तृत आदेश पारित करेगी. सुनवाई के दौरान, पीठ ने मौखिक रूप से प्रस्ताव दिया कि समिति के अन्य सदस्य पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) चंडीगढ़, महानिरीक्षक (आईजी) राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), रजिस्ट्रार जनरल (पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय), और अतिरिक्त डीजीपी (सुरक्षा) पंजाब होंगे.
पीठ ने कहा, 'हम पीएम के सुरक्षा उल्लंघन को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं,' पीठ ने कहा कि वह समिति से कम समय में अपनी रिपोर्ट उसे सौंपने को कहेगी.'
पंजाब सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट जनरल डीएस पटवालिया ने इसके मुख्य सचिव और डीजीपी को कारण बताओ नोटिस के खिलाफ शिकायत की. उन्होंने शीर्ष अदालत से मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने का अनुरोध किया. पटवालिया ने कहा, 'अगर मैं दोषी हूं तो मुझे फांसी दे दो.. लेकिन मेरी अनसुनी निंदा मत करो.'
सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस का बचाव किया. हालांकि, शीर्ष अदालत ने केंद्र के रुख पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए सवाल किया कि अगर केंद्र खुद आगे बढ़ना चाहता है तो अदालत से इस मामले की जांच करने के लिए कहने का क्या मतलब है.
दिल्ली स्थित याचिकाकर्ता लॉयर्स वॉयस का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने देश के पीएम को सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया. याचिका में पंजाब में प्रधानमंत्री के सुरक्षा उल्लंघन की स्वतंत्र जांच की मांग की गई है.
पंजाब की ओर से ये दी गई जानकारी
इससे पहले सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार के महाधिवक्ता डीएस पटवालिया ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि रिकॉर्ड को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने ध्यान में रखा है.
पंजाब सरकार का कहना है कि राज्य के अधिकारियों को 7 कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए. पंजाब सरकार का कहना है कि एक स्वतंत्र समिति नियुक्त की जाए.
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केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि समिति की कार्यवाही रुकने से पहले पंजाब के डीजी और मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे. उनका कहना है कि नियुक्त समिति ने कोई सुनवाई नहीं की.
पंजाब सरकार के वकील द्वारा सूचित किए जाने के बाद कि प्रथम दृष्टया केंद्र के नेतृत्व वाली समिति की राय है कि राज्य के अधिकारी पहले से ही दोषी हैं, SC ने पीएम मोदी के सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति बनाने पर सहमति व्यक्त की. पंजाब सरकार ने यह भी कहा कि उसे समिति से 'कोई उम्मीद नहीं' है.
केंद्र और राज्य को जांच करने से रोका
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते पंजाब में पीएम मोदी के सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए स्वतंत्र समिति में डीजीपी चंडीगढ़, आईजी राष्ट्रीय जांच एजेंसी, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल और पंजाब के एडीजीपी (सुरक्षा) को शामिल करने का प्रस्ताव रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और पंजाब सरकार दोनों से मामले में अपनी जांच आगे नहीं बढ़ाने को कहा.
शुक्रवार को कोर्ट ने ये कहा था
इससे पहले शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of Punjab and Haryana High Court) को प्रधानमंत्री की इस यात्रा के मद्देनजर किए गए सुरक्षा उपायों से संबंधित रिकॉर्ड को सुरक्षित और संरक्षित रखने का निर्देश दिया था. पीठ ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा अलग-अलग गठित जांच समितियों को सुनवाई की अगली तारीख (10 जनवरी) तक जांच का काम आगे न बढ़ाने को कहा था.
हालांकि पीठ ने इस संबंध में कोई लिखित आदेश नहीं दिया था, बल्कि संबंधित वकीलों को मौखिक तौर पर कहा था कि वे अदालत की भावनाओं से संबंधित अधिकारियों को अवगत कराएं. पीठ ने कहा था कि उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को केंद्र शासित क्षेत्र चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक और राष्ट्रीय जांच एजेंसी के एक अधिकारी द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी.
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