भोपाल। मां की भूमिका सिर्फ इंसानी रिश्तों में नहीं, बल्कि जानवरों में भी अहम है. मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में मां से बचपन में ही बिछड़े दो बाघ बाड़े में रहकर बड़े तो हो गए, लेकिन शिकार करना ही नहीं सीख पाए. करीब पांच साल के होने के बाद कॉलर आईडी पहनाकर इन्हें जंगल में छोड़ा तो इन बांघों ने इंसानों पर हमला करना शुरू कर दिया. हमले में पांच लोगों की जान जाने के बाद अब आखिरकार इन दोनों बाघों को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क में लाया गया है, जहां इन्हें अब पूरी जिंदगी पिंजरे में बितानी होगी.
जंगल के नियम नहीं सीख पाए बाघ: इन दोनों शावकों के जन्म के कुछ दिन बाद ही इनकी मां की मौत हो गई. दोनों बाघ जंगल में भटकते मिले, तो बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने जंगल में ही एक बड़ा बाड़ा बनाकर इसमें दोनों शावकों को रख दिया. यह बड़े होना शुरू हुए, तो प्रबंधन ने इन्हें शिकार सिखाने के लिए छोटे जानवरों को छोड़ना शुरू किया, इन्होंने शिकार किया भी, लेकिन जंगल के असल नियम यह बाड़े में रहकर नहीं सीख पाए. करीब पांच साल के होने पर प्रबंधन ने इन्हें कॉलर आईडी पहनाकर जंगल में छोड़ दिया, लेकिन कुछ समय बाद ही एक बाघ अन्य बाघ के हमले में घायल हो गया.
इसके बाद इसे एनक्लोजर में रखा गया, जबकि दूसरा बाघ जंगल में ही रहा. आसान शिकार की तलाश में वह बार-बार रहवासी इलाकों में पहुंचा. इस दौरान इंसान सामने आए तो इस बाघ ने इंसानों पर भी हमले शुरू कर दिए. वहीं स्वस्थ होने पर जब पहले बाघ को भी जंगल में छोड़ा गया, तो उसने भी इंसानों पर हमले किए. बाघों के हमलों में पांच लोगों की मौत हो गई. इसके बाद दोनों बाघों को पिछले दिनों बांधवगढ़ में ही बड़े बाड़े में बंद कर दिया गया था.
अब वन विहार में भेजा गया: बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं कि 'इंसानों पर बार-बार हमले किए जाने के बाद पाक प्रबंधन ने दो माह पहले इन बाघों को भोपाल शिफ्ट करने की अनुमति वन मुख्यालय से मांगी थी. अनुमति मिलने के बाद इन्हें भोपाल स्थित वन विहार भेज दिया गया. वे बताते हैं कि दोनों ही बाघ जंगल में सर्वाइव करने लायक नहीं हैं, इन्हें यदि फिर जंगल में छोड़ा जाता तो ये भूख से फिर किसी बड़े बाघ के हमले में मारे जाते.
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उधर वन विहार में वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. अतुल गुप्ता ने दोनों का परीक्षण किया. दोनों बाघों की आयु 5 साल है और दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं. दोनों बाघ अब वन विहार में ही सलाखों के पीछे अपनी पूरी जिंदगी बिताएंगे.' वन विहार के असिस्टेंट संचालक सुनील कुमार सिन्हा के मुताबिक 'वन विहार में अभी 13 बाघ हैं, इसमें से 3 को डिस्पले में रखा गया है. वन्य प्राणी विशेषज्ञ सुदेश बाघमारे बताते हैं कि बाघों की दुनिया अपने आप में निराली है. शावकों को जन्म देने के बाद मां ही उन्हें बड़ा करती है और शिकार करना सिखाती है. जब वे शिकार करना सीख जाते हैं तो फिर वे अपनी टेरेटरी खुद बनाते हैं.'