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बजट में विनिवेश और एनपीए पर किए गए थे बड़े-बड़े दावे, इनका क्या हुआ, एक नजर - divestment disinvestment target modi government

केंद्र सरकार ने पिछली बार बजट पेश करते समय तीन महत्वपूर्ण कदमों की घोषणा की थी. विनिवेश, एनपीए और ढांचागत क्षेत्रों की मदद करने के लिए अलग-अलग लक्ष्य निर्धारित किए थे. अब जबकि अगले सप्ताह सरकार बजट पेश करने जा रही है, यह जानना जरूरी है कि सरकार ने इन तीनों कदमों को लेकर कितनी प्रगति हासिल की है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सरकार विनिवेश के लिए निर्धारित लक्ष्य में से मात्र पांच फीसदी को ही प्राप्त कर सकी है. ऊपर से एसेट मोनेटाइजेशन के नाम पर सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय भी कर चुकी है. पढ़िए एक विश्लेषण.

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Published : Jan 25, 2022, 5:14 PM IST

Updated : Jan 25, 2022, 6:39 PM IST

नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछली बार (2021-22) बजट पेश करते समय तीन महत्वपूर्ण कदमों की घोषणा की थी. पहली घोषणा बैंकों के एनपीए को सही करने को लेकर की गई थी. इसके लिए सरकार ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लि. और एसेट मैनेजमेंट कंपनी के गठन का ऐलान किया. दूसरा प्रमुख बिंदु था विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य और तीसरी घोषणा थी- डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूट यानी विकास वित्त संस्थान की स्थापना. डीएफआई के जरिए बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की सहायता करना था. आइए देखते हैं कि अब जबकि नया बजट पेश होने वाला है, सरकार ने इन घोषणाों पर कितना अमल किया है.

विनिवेश के लक्ष्य को पूरा करने में सरकार विफल

सबसे पहले विनिवेश का ही मुद्दा उठाते हैं. वित्त मंत्री ने बड़े जोर-शोर से विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रु. इकट्ठा करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. इसे लेकर खूब ताली भी पीटी गई थी. लेकिन हकीकत का जब आपको अंदाजा होगा, तो आप चौंक जाएंगे. अभी तक मात्र 9,329 करोड़ ही सरकार जुटा पाई है. अब नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत होने में मात्र दो महीने बचे हैं. सरकार किस हद तक मैनेज कर सकती है, आप खुद ही अंदाजा लगाइए. वित्त मंत्री ने शिपिंग कॉर्प ऑफ इंडिया, एयर इंडिया, नीलांचल इस्पातल नि. लि., कंटेनर कॉर्प ऑफ इंडिया, आईडीबीआई, बीईएमएल लि. और पवन हंस के स्टेक को बेचने की घोषणा की थी. दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की बात भी चल रही थी, पर इस पर कुछ भी जानकारी निकलकर नहीं आई.

बजट के जानकार और सरकार के समर्थकों का कहना है कि वित्त मंत्री के पास अभी भी एलआईसी जैसा तुरुप का पत्ता है. हो सकता है इस बजट के पेश होने के बाद एलआईसी के विनिवेश का पूरा खाका सामने आ जाए और इस लक्ष्य का बड़ा हिस्सा हासिल किया जा सकता है. इसके बावजूद इतना तो तय है कि सरकार पौने दो लाख करोड़ रु. की सीमा तो नहीं पार कर सकती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बजट के बाद एलआईसी का आईपीओ बाजार में आ सकता है. चर्चा है कि यह देश का सबसे बड़ा आईपीओ होगा. अगर सरकार इसके 10 फीसदी हिस्से को भी बेचती है, तो 1.50 लाख करोड़ ही जुटा पाएगी.

आपको यहां पर यह भी जानकारी दे दें कि इससे पिछली बार यानी वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए भी सरकार ने 2.1 लाख करोड़ विनिवेश के जरिए पैसा जुटाने का टारगेट सेट किया था, पर वह भी पूरा नहीं हो पाया था. जाहिर है, सिर्फ घोषणा करना ही जरूरी नहीं होता है, उस पर अमल भी उतना ही जरूरी है. इस हिसाब से कहें तो वर्तमान सरकार यह समझ नहीं पा रही है कि उससे कहां चूक हो रही है.

हां, सरकार को एयर इंडिया की बिक्री में जरूर सफलता मिली. विवाद के बावजूद सरकार ने इस बिक्री को पूरा कर लिया है. टाटा ने एयर इंडिया को फिर से हासिल कर लिया है. बिक्री की आखिरी औपचारिकताएं पूरी होनी बाकी हैं.

अभी तक सरकार ने विनिवेश के जरिए मात्र 9,329 करोड़ हासिल किए हैं. इसमें मुख्य रूप से एनएमडीसी, हुडको, एचसीएल और आईपीसीएल के अलावा एक्सिस बैंक थ्रू सुट्टी शामिल है. यानी सरकार को अपने लक्ष्य का मात्र पांच फीसदी ही हासिल हुआ है. यह लगातार तीसरा साल होगा कि सरकार अपने लक्ष्य को पूरा नहीं करेगी.

disinvestment in 10 years
पिछले 10 सालों में कितना हुआ विनिवेश

विकास वित्त संस्थान भी नहीं हुआ सफल

पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूट यानी विकास वित्त संस्थान की स्थापना की घोषणा की थी. इसके लिए 197 अरब रुपये का एक नया फंड निर्धारित करने की घोषणा की गई थी. वित्त मंत्री ने कहा था कि इसका उद्देश्य बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की सहायता करना है. इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और उनके पूरे इको सिस्टम के लिए पूरे जीवन काल तक वित्त उपलब्ध करवाना उद्देश्य बताया गया.

दरअसल, डीएफआई कम ब्याज दर पर कर्ज उलब्ध करवाता है. यह आम बैंकों से मिलने वाले कर्ज से हटकर होता है. बैंकों की अपनी सीमाएं होती हैं. वे मुख्य रूप से अल्पकालिक और मध्यम अवधि के लोन में ज्यादा रुचि दिखाते हैं. सरकार ने डीएफआई को लेकर जो भी प्रस्ताव दिया है, उसकी जवाबदेही महती है. लेकिन एक बार फिर से वही सवाल उठता है, आप इसे कैसे लागू करेंगे और कहीं प्रक्रियाओं के उलझन में ही तो हर संस्थान सिमटकर नहीं रह जा रहा है. इस पर भी विचार करने की जरूरत है. क्योंकि डीएफआई कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है. अपने देश में 1948 से ही यह व्यवस्था चली आ रही है. ढांचागत क्षेत्र, इंडस्ट्री और एग्रीकल्चर में वित्त की जरूरत को पूरा करने के लिए पहले से ही कई डीएफआई चल रहे हैं. फिर नई घोषणाएं क्यों की गईं. क्या ये भी बाजीगरी है क्या. सरकार ने इस सवाल का जवाब आज तक नहीं दिया है.

डीएफआई सामाजिक लाभ के लिए निम्न और निरंतर ब्याज दर पर लोन उपलब्ध करवाता है. यह कर्ज वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उपलब्ध करवाए गए कर्ज़ से अलग होता है. डीएफआई द्वारा भारी कर्ज में डूबे बैंकों को भी सहायता की बात कही गई. लेकिन इसको लेकर प्रगति रिपोर्ट क्या है, किसी को इसके बारे में पता नहीं है.

एसेट मोनेटाइजेशन की ओर क्यों बढ़ी सरकार

वित्त मंत्री ने एसेट मोनेटाइजेशन को लेकर बजट में चर्चा तो की थी, लेकिन इसका फाइनल दस्तावेज में इसका निर्धारण नहीं किया था. पिछले साल सितंबर में सरकार ने इसको लेकर घोषणा की. क्या सरकार एसेट मोनेटाइजेशन की ओर बढ़ रही है. इससे सरकार अपनी आमदनी बढ़ा सकती है. आप इसे ऐसे समझें कि जिस तरह से टैक्स और अन्य माध्यमों से सरकार अपनी आमदनी (रेवेन्यू) बढ़ाती है, विनिवेश के जरिए भी उसी तरह से पैसा इकट्ठा किया जाता है, ठीक उसी तरह से एसेट मोनेटाइजेशन होता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने अगले चार सालों मे छह लाख करोड़ रु. जुटाने का लक्ष्य रखा है. सरकार ने सितंबर 2021 में एसेट मोनेटाइजेश की बात कही. इसके अंतर्गत सरकारी संपत्तियों पर मालिकाना हक सरकार का ही रहेगा, लेकिन आमदनी ( रेवेन्यू और प्रोफिट) निजी क्षेत्रों के साथ शेयर की जाएगी. निजी क्षेत्र उन संसाधनों का उपयोग कर सकेंगे और बदले में वे सरकार को पैसा देंगे. आप इसे आसान भाषा में कहें, तो रेंट पर संपत्ति को सौंपना कह सकते हैं.

जब सरकार पर यह आरोप लगा कि आप तो देश की संपत्तियों को बेच रहे हैं, सरकार ने साफ कर दिया है कि इससे जो पैसे आएंगे, वो अपने ऊपर खर्च नहीं करेगी. बल्कि इससे मिलने वाले पैसे सरकारी कंपनियों और सरकारी एजेंसियों को मिलेंगे. बदले में ये कंपनियां सरकार को शेयर बायबैक और डिविडेंड के जरिए पैसा देंगी.

क्या एनपीए को लकर एसेट रिकंस्ट्र्क्शन कंपनी बनी

बजट के दौरान वित्त मंत्री ने कहा था कि बैंकों के एनपीए को ठीक करने के लिए एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लि. और एसेट मैनेजमेंट कंपनी का गठन किया गया है. इसकी प्रगति रिपोर्ट क्या है, किसी को पता नहीं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मात्र 22 खातों में 82 हजार करोड़ रुपये का लोन फंसा हुआ है. वैसे बैंक जिनका परफॉर्मेंस अच्छा नही रहा है, जिसे 'बैड बैंक' कहा जाता है, इन्होंने एसेट मैनेजमेंट कंपनी, इंडिया डेब्ट रिजोल्यूशन कंपनी लि. के लिए प्रोफेशनल्स की नियुक्ति की है. इसके लिए सरकार ने सितंबर-अक्टूबर महीने में आईडीआरसीएल और एनएआरसीएल की स्थापना की थी.

आपको बता दें कि एनपीए का मतलब होता है कि जिसने लोन लिया है, वह उसे बैंक को नहीं लौटा रहा है. जाहिर है, बैंक इसे बैड लोन की श्रेणी में डाल देता है. इसे ही एनपीए कहते हैं. इनसे ही निजात पाने के लिए बैंकों ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी बनाई.

एनपीए को लेकर क्या है ताजा स्थिति

आरबीआई की रिपोर्ट (दिसंबर, 2021) में बताया गया है कि ग्रॉस एनपीए का अनुपात कम हुआ है. इसके अनुसार मार्च 2020 में यह 8.2 फीसदी था, जबकि मार्च 2021 में यह 7.3 फीसदी हो गया. सितंबर 2021 में यह 6.9 फीसदी हो गया. सरकार ने इस रिपोर्ट का हवाला देकर कहा है कि 2018 से ही ग्रॉस एनपीए कम हो रहा है. यह छह साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया.

विशेषज्ञों के अनुसार ग्रॉस एनपीए में कमी की मुख्य वजह लोन को राइट ऑफ किया जाना है. उनका कहना है कि मार्च 2020 में यह राशि 8,99,803 करोड़ रु. था, जबकि मार्च 2021 में यह राशि घटकर 8,37,771 करोड़ रु. हो गया. इस दौरान बैंकों ने 2.09 लाख करोड़ रु. के फंसे हुए कर्ज को राइट ऑफ कर दिया. राइट ऑफ किए गए लोन में एसबीआई ने 34,402 करोड़ रु., यूबीआई ने 16,983 करोड़ रु, पीएनबी ने 15,877 करोड़ रु. और बैंक ऑफ बड़ौदा ने 14,782 करोड़ रुपये को राइट ऑफ कर दिया. यह उनका फंसा हुआ कर्ज था. राइट ऑफ का मतलब होता है कि बैंक अपने बैंलेस शीट से इसे हटा देती है. हालांकि, इसकी वसूली के प्रयास जारी रहते हैं, लेकिन उसके रिकवर होने की संभावनाएं क्षीण होती हैं.

ये भी पढ़ें : कोरोना से पहले और कोरोना के बाद, क्या सचमुच स्वास्थ्य बजट में अंतर आया ?

नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछली बार (2021-22) बजट पेश करते समय तीन महत्वपूर्ण कदमों की घोषणा की थी. पहली घोषणा बैंकों के एनपीए को सही करने को लेकर की गई थी. इसके लिए सरकार ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लि. और एसेट मैनेजमेंट कंपनी के गठन का ऐलान किया. दूसरा प्रमुख बिंदु था विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य और तीसरी घोषणा थी- डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूट यानी विकास वित्त संस्थान की स्थापना. डीएफआई के जरिए बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की सहायता करना था. आइए देखते हैं कि अब जबकि नया बजट पेश होने वाला है, सरकार ने इन घोषणाों पर कितना अमल किया है.

विनिवेश के लक्ष्य को पूरा करने में सरकार विफल

सबसे पहले विनिवेश का ही मुद्दा उठाते हैं. वित्त मंत्री ने बड़े जोर-शोर से विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रु. इकट्ठा करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. इसे लेकर खूब ताली भी पीटी गई थी. लेकिन हकीकत का जब आपको अंदाजा होगा, तो आप चौंक जाएंगे. अभी तक मात्र 9,329 करोड़ ही सरकार जुटा पाई है. अब नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत होने में मात्र दो महीने बचे हैं. सरकार किस हद तक मैनेज कर सकती है, आप खुद ही अंदाजा लगाइए. वित्त मंत्री ने शिपिंग कॉर्प ऑफ इंडिया, एयर इंडिया, नीलांचल इस्पातल नि. लि., कंटेनर कॉर्प ऑफ इंडिया, आईडीबीआई, बीईएमएल लि. और पवन हंस के स्टेक को बेचने की घोषणा की थी. दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की बात भी चल रही थी, पर इस पर कुछ भी जानकारी निकलकर नहीं आई.

बजट के जानकार और सरकार के समर्थकों का कहना है कि वित्त मंत्री के पास अभी भी एलआईसी जैसा तुरुप का पत्ता है. हो सकता है इस बजट के पेश होने के बाद एलआईसी के विनिवेश का पूरा खाका सामने आ जाए और इस लक्ष्य का बड़ा हिस्सा हासिल किया जा सकता है. इसके बावजूद इतना तो तय है कि सरकार पौने दो लाख करोड़ रु. की सीमा तो नहीं पार कर सकती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बजट के बाद एलआईसी का आईपीओ बाजार में आ सकता है. चर्चा है कि यह देश का सबसे बड़ा आईपीओ होगा. अगर सरकार इसके 10 फीसदी हिस्से को भी बेचती है, तो 1.50 लाख करोड़ ही जुटा पाएगी.

आपको यहां पर यह भी जानकारी दे दें कि इससे पिछली बार यानी वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए भी सरकार ने 2.1 लाख करोड़ विनिवेश के जरिए पैसा जुटाने का टारगेट सेट किया था, पर वह भी पूरा नहीं हो पाया था. जाहिर है, सिर्फ घोषणा करना ही जरूरी नहीं होता है, उस पर अमल भी उतना ही जरूरी है. इस हिसाब से कहें तो वर्तमान सरकार यह समझ नहीं पा रही है कि उससे कहां चूक हो रही है.

हां, सरकार को एयर इंडिया की बिक्री में जरूर सफलता मिली. विवाद के बावजूद सरकार ने इस बिक्री को पूरा कर लिया है. टाटा ने एयर इंडिया को फिर से हासिल कर लिया है. बिक्री की आखिरी औपचारिकताएं पूरी होनी बाकी हैं.

अभी तक सरकार ने विनिवेश के जरिए मात्र 9,329 करोड़ हासिल किए हैं. इसमें मुख्य रूप से एनएमडीसी, हुडको, एचसीएल और आईपीसीएल के अलावा एक्सिस बैंक थ्रू सुट्टी शामिल है. यानी सरकार को अपने लक्ष्य का मात्र पांच फीसदी ही हासिल हुआ है. यह लगातार तीसरा साल होगा कि सरकार अपने लक्ष्य को पूरा नहीं करेगी.

disinvestment in 10 years
पिछले 10 सालों में कितना हुआ विनिवेश

विकास वित्त संस्थान भी नहीं हुआ सफल

पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूट यानी विकास वित्त संस्थान की स्थापना की घोषणा की थी. इसके लिए 197 अरब रुपये का एक नया फंड निर्धारित करने की घोषणा की गई थी. वित्त मंत्री ने कहा था कि इसका उद्देश्य बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की सहायता करना है. इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और उनके पूरे इको सिस्टम के लिए पूरे जीवन काल तक वित्त उपलब्ध करवाना उद्देश्य बताया गया.

दरअसल, डीएफआई कम ब्याज दर पर कर्ज उलब्ध करवाता है. यह आम बैंकों से मिलने वाले कर्ज से हटकर होता है. बैंकों की अपनी सीमाएं होती हैं. वे मुख्य रूप से अल्पकालिक और मध्यम अवधि के लोन में ज्यादा रुचि दिखाते हैं. सरकार ने डीएफआई को लेकर जो भी प्रस्ताव दिया है, उसकी जवाबदेही महती है. लेकिन एक बार फिर से वही सवाल उठता है, आप इसे कैसे लागू करेंगे और कहीं प्रक्रियाओं के उलझन में ही तो हर संस्थान सिमटकर नहीं रह जा रहा है. इस पर भी विचार करने की जरूरत है. क्योंकि डीएफआई कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है. अपने देश में 1948 से ही यह व्यवस्था चली आ रही है. ढांचागत क्षेत्र, इंडस्ट्री और एग्रीकल्चर में वित्त की जरूरत को पूरा करने के लिए पहले से ही कई डीएफआई चल रहे हैं. फिर नई घोषणाएं क्यों की गईं. क्या ये भी बाजीगरी है क्या. सरकार ने इस सवाल का जवाब आज तक नहीं दिया है.

डीएफआई सामाजिक लाभ के लिए निम्न और निरंतर ब्याज दर पर लोन उपलब्ध करवाता है. यह कर्ज वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उपलब्ध करवाए गए कर्ज़ से अलग होता है. डीएफआई द्वारा भारी कर्ज में डूबे बैंकों को भी सहायता की बात कही गई. लेकिन इसको लेकर प्रगति रिपोर्ट क्या है, किसी को इसके बारे में पता नहीं है.

एसेट मोनेटाइजेशन की ओर क्यों बढ़ी सरकार

वित्त मंत्री ने एसेट मोनेटाइजेशन को लेकर बजट में चर्चा तो की थी, लेकिन इसका फाइनल दस्तावेज में इसका निर्धारण नहीं किया था. पिछले साल सितंबर में सरकार ने इसको लेकर घोषणा की. क्या सरकार एसेट मोनेटाइजेशन की ओर बढ़ रही है. इससे सरकार अपनी आमदनी बढ़ा सकती है. आप इसे ऐसे समझें कि जिस तरह से टैक्स और अन्य माध्यमों से सरकार अपनी आमदनी (रेवेन्यू) बढ़ाती है, विनिवेश के जरिए भी उसी तरह से पैसा इकट्ठा किया जाता है, ठीक उसी तरह से एसेट मोनेटाइजेशन होता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने अगले चार सालों मे छह लाख करोड़ रु. जुटाने का लक्ष्य रखा है. सरकार ने सितंबर 2021 में एसेट मोनेटाइजेश की बात कही. इसके अंतर्गत सरकारी संपत्तियों पर मालिकाना हक सरकार का ही रहेगा, लेकिन आमदनी ( रेवेन्यू और प्रोफिट) निजी क्षेत्रों के साथ शेयर की जाएगी. निजी क्षेत्र उन संसाधनों का उपयोग कर सकेंगे और बदले में वे सरकार को पैसा देंगे. आप इसे आसान भाषा में कहें, तो रेंट पर संपत्ति को सौंपना कह सकते हैं.

जब सरकार पर यह आरोप लगा कि आप तो देश की संपत्तियों को बेच रहे हैं, सरकार ने साफ कर दिया है कि इससे जो पैसे आएंगे, वो अपने ऊपर खर्च नहीं करेगी. बल्कि इससे मिलने वाले पैसे सरकारी कंपनियों और सरकारी एजेंसियों को मिलेंगे. बदले में ये कंपनियां सरकार को शेयर बायबैक और डिविडेंड के जरिए पैसा देंगी.

क्या एनपीए को लकर एसेट रिकंस्ट्र्क्शन कंपनी बनी

बजट के दौरान वित्त मंत्री ने कहा था कि बैंकों के एनपीए को ठीक करने के लिए एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लि. और एसेट मैनेजमेंट कंपनी का गठन किया गया है. इसकी प्रगति रिपोर्ट क्या है, किसी को पता नहीं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मात्र 22 खातों में 82 हजार करोड़ रुपये का लोन फंसा हुआ है. वैसे बैंक जिनका परफॉर्मेंस अच्छा नही रहा है, जिसे 'बैड बैंक' कहा जाता है, इन्होंने एसेट मैनेजमेंट कंपनी, इंडिया डेब्ट रिजोल्यूशन कंपनी लि. के लिए प्रोफेशनल्स की नियुक्ति की है. इसके लिए सरकार ने सितंबर-अक्टूबर महीने में आईडीआरसीएल और एनएआरसीएल की स्थापना की थी.

आपको बता दें कि एनपीए का मतलब होता है कि जिसने लोन लिया है, वह उसे बैंक को नहीं लौटा रहा है. जाहिर है, बैंक इसे बैड लोन की श्रेणी में डाल देता है. इसे ही एनपीए कहते हैं. इनसे ही निजात पाने के लिए बैंकों ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी बनाई.

एनपीए को लेकर क्या है ताजा स्थिति

आरबीआई की रिपोर्ट (दिसंबर, 2021) में बताया गया है कि ग्रॉस एनपीए का अनुपात कम हुआ है. इसके अनुसार मार्च 2020 में यह 8.2 फीसदी था, जबकि मार्च 2021 में यह 7.3 फीसदी हो गया. सितंबर 2021 में यह 6.9 फीसदी हो गया. सरकार ने इस रिपोर्ट का हवाला देकर कहा है कि 2018 से ही ग्रॉस एनपीए कम हो रहा है. यह छह साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया.

विशेषज्ञों के अनुसार ग्रॉस एनपीए में कमी की मुख्य वजह लोन को राइट ऑफ किया जाना है. उनका कहना है कि मार्च 2020 में यह राशि 8,99,803 करोड़ रु. था, जबकि मार्च 2021 में यह राशि घटकर 8,37,771 करोड़ रु. हो गया. इस दौरान बैंकों ने 2.09 लाख करोड़ रु. के फंसे हुए कर्ज को राइट ऑफ कर दिया. राइट ऑफ किए गए लोन में एसबीआई ने 34,402 करोड़ रु., यूबीआई ने 16,983 करोड़ रु, पीएनबी ने 15,877 करोड़ रु. और बैंक ऑफ बड़ौदा ने 14,782 करोड़ रुपये को राइट ऑफ कर दिया. यह उनका फंसा हुआ कर्ज था. राइट ऑफ का मतलब होता है कि बैंक अपने बैंलेस शीट से इसे हटा देती है. हालांकि, इसकी वसूली के प्रयास जारी रहते हैं, लेकिन उसके रिकवर होने की संभावनाएं क्षीण होती हैं.

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Last Updated : Jan 25, 2022, 6:39 PM IST

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