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नेहरू के राजनीतिक दृष्टकोण को आकार देने में समकालीन, विरोधियों के योगदान पर नई पुस्तक

स्वतंत्र भारत के पहले और सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार देने में उनके समकालीनों और विरोधियों की नजरंदाज कर दी गई भूमिका की पड़ताल करती हुई एक नई पुस्तक आई है. पुस्तक के सह-लेखक त्रिपुरदमन सिंह और आदिल हुसैन हैं, जिसे गुरुवार को जारी किए जाने की संभावना है.

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Published : Nov 9, 2021, 5:32 PM IST

नई दिल्ली : स्वतंत्र भारत के पहले और सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार देने में उनके समकालीनों और विरोधियों की नजरंदाज कर दी गई भूमिका की पड़ताल करती हुई एक नई पुस्तक आई है, 'नेहरू: द डिबेट्स दैट डिफाइंड इंडिया' नामक पुस्तक.

पुस्तक के सह-लेखक त्रिपुरदमन सिंह और आदिल हुसैन हैं, जिसे गुरुवार को जारी किए जाने की संभावना है. यह कृति उन 'वैचारिक द्वंद्वों की पड़ताल करने का दावा करती है, जिसके माध्यम से नेहरूवादी सहमति - और आधुनिक भारत – को गढा गया था.'

दोनों लेखकों ने एक संयुक्त बयान में बताया, 'अपने समकालीनों के साथ नेहरू की चर्चा-बहस को देखने से हमें व्यक्ति और उनके विचारों की एक स्पष्ट झलक मिलती है. चूंकि अब समकालीन वैचारिक बहस में नेहरू एवं उनके समकालीनों के बीच की बहस को एक राजनीतक त्रुटि के रूप से फिर से उठाया जा रहा है, हमने सोचा कि इन राजनीतिक एवं वैचारिक संघर्षों के मूल में जाया जाए.'

समकालीन संवाद के थोपे गए तमगे से परे जाकर, पुस्तक उन चार मुकाबलों पर प्रकाश डालती है, जो नेहरू के राजनीतिक जीवन के चार समकालीन- मुहम्मद इकबाल, मुहम्मद अली जिन्ना, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी- के साथ हुए थे, जो उनके विचारों को समझने और उनके लंबे परवर्ती जीवन और वर्तमान पर प्रभाव को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं.

उन्होंने कहा, 'इन बहस ने जो आकार लिया, वह भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, जो यह निर्धारित करती है कि घटनाओं का पेंडुलम किस तरह दिशा में जाएगा.'

1929 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुने जाने से 1964 में उनकी मृत्यु तक, नेहरू भारतीय राजनीति में एक महान व्यक्तित्व बने रहे. वह ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने दक्षिण एशिया के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी.

पढ़ें - अयोध्या विवाद पर फैसले के 2 साल: राममंदिर की नींव तैयार, 2023 में होंगे दर्शन

प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स इंडिया के अनुसार, बौद्धिक रूप से जुझारू जिस नेहरू से पाठक इस पुस्तक में रू-ब-रू होंगे वह वैचारिक असहमति व्यक्त करने, राजनीतिक गठजोड़ बनाने, राजनीतिक राय रखने, भविष्य के दृष्टिकोण पेश करने और राजनीतिक क्षेत्र को आगे बढ़ाने संबंधी उन विभिन्न बहसों में एक प्रमुख व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारत को परिभाषित किया.

बयान में कहा गया है, 'नेहरू आज भले ही अपने आलोचकों को जवाब देने के लिए जीवित न हों, लेकिन एक समय था जब उन्होंने दक्षिण एशियाई इतिहास के सबसे गहन प्रश्नों पर बहस करते हुए और राजनीतिक घटनाओं को निर्णायक रूप से प्रभावित करने वाले विचारों के बाजार में अपने विरोधियों के खिलाफ खुद को जोरदार तरीके से खड़ा किया था.'

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : स्वतंत्र भारत के पहले और सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार देने में उनके समकालीनों और विरोधियों की नजरंदाज कर दी गई भूमिका की पड़ताल करती हुई एक नई पुस्तक आई है, 'नेहरू: द डिबेट्स दैट डिफाइंड इंडिया' नामक पुस्तक.

पुस्तक के सह-लेखक त्रिपुरदमन सिंह और आदिल हुसैन हैं, जिसे गुरुवार को जारी किए जाने की संभावना है. यह कृति उन 'वैचारिक द्वंद्वों की पड़ताल करने का दावा करती है, जिसके माध्यम से नेहरूवादी सहमति - और आधुनिक भारत – को गढा गया था.'

दोनों लेखकों ने एक संयुक्त बयान में बताया, 'अपने समकालीनों के साथ नेहरू की चर्चा-बहस को देखने से हमें व्यक्ति और उनके विचारों की एक स्पष्ट झलक मिलती है. चूंकि अब समकालीन वैचारिक बहस में नेहरू एवं उनके समकालीनों के बीच की बहस को एक राजनीतक त्रुटि के रूप से फिर से उठाया जा रहा है, हमने सोचा कि इन राजनीतिक एवं वैचारिक संघर्षों के मूल में जाया जाए.'

समकालीन संवाद के थोपे गए तमगे से परे जाकर, पुस्तक उन चार मुकाबलों पर प्रकाश डालती है, जो नेहरू के राजनीतिक जीवन के चार समकालीन- मुहम्मद इकबाल, मुहम्मद अली जिन्ना, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी- के साथ हुए थे, जो उनके विचारों को समझने और उनके लंबे परवर्ती जीवन और वर्तमान पर प्रभाव को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं.

उन्होंने कहा, 'इन बहस ने जो आकार लिया, वह भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, जो यह निर्धारित करती है कि घटनाओं का पेंडुलम किस तरह दिशा में जाएगा.'

1929 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुने जाने से 1964 में उनकी मृत्यु तक, नेहरू भारतीय राजनीति में एक महान व्यक्तित्व बने रहे. वह ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने दक्षिण एशिया के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी.

पढ़ें - अयोध्या विवाद पर फैसले के 2 साल: राममंदिर की नींव तैयार, 2023 में होंगे दर्शन

प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स इंडिया के अनुसार, बौद्धिक रूप से जुझारू जिस नेहरू से पाठक इस पुस्तक में रू-ब-रू होंगे वह वैचारिक असहमति व्यक्त करने, राजनीतिक गठजोड़ बनाने, राजनीतिक राय रखने, भविष्य के दृष्टिकोण पेश करने और राजनीतिक क्षेत्र को आगे बढ़ाने संबंधी उन विभिन्न बहसों में एक प्रमुख व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारत को परिभाषित किया.

बयान में कहा गया है, 'नेहरू आज भले ही अपने आलोचकों को जवाब देने के लिए जीवित न हों, लेकिन एक समय था जब उन्होंने दक्षिण एशियाई इतिहास के सबसे गहन प्रश्नों पर बहस करते हुए और राजनीतिक घटनाओं को निर्णायक रूप से प्रभावित करने वाले विचारों के बाजार में अपने विरोधियों के खिलाफ खुद को जोरदार तरीके से खड़ा किया था.'

(पीटीआई-भाषा)

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