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लेखक असद लतीफ का दावा, भारत की ही तरह सिंगापुर के इतिहास का हिस्सा हैं नेताजी

नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) से जुड़ी कहानियां आज भी लोगों को रोमांचित और प्रेरित करती हैं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का कद कितना ऊंचा था, इसकी मिसाल नेताजी की स्वीकार्यता से मिलती है. यह स्पष्ट होता है कि नेताजी वैश्विक शख्सियत थे. सिंगापुर में रहने वाले लेखक असद लतीफ (Singapore based writer Asad Latif) ने दावा किया है कि नेताजी भारत की तरह ही सिंगापुर के भी इतिहास का हिस्सा (Netaji Subhas part of Singapore history) हैं.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस
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Published : Jan 23, 2022, 4:21 PM IST

सिंगापुर : स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) की 125वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है. सिंगापुर के प्रसिद्ध लेखक असद लतीफ (Singapore based writer Asad Latif) ने कहा है कि नेताजी सिंगापुर के इतिहास का उतना ही अहम हिस्सा हैं, (Netaji Subhas part of Singapore history) जितना भारत के इतिहास में उनका योगदान है.

रविवार को नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लतीफ ने भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित संगोष्ठी में कहा, 'बोस द्वारा भारतीय स्वतंत्रता लीग और आजाद हिंद फौज (आईएनए) के पुनरोद्धार से वास्तव में मलया (दक्षिण एशिया के मलय प्रायद्वीप में ऐतिहासिक राजनीतिक संगठन) लोक राजनीति का आगमन हुआ क्योंकि उन्होंने मजदूरों के साथ काम किया और उनमें सम्मान के दुलर्भ भाव को जगाया.'

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नेताजी क 125वीं जयंती भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित संगोष्ठी

सिंगापुर में नेताजी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए लतीफ ने कहा, 'उन्होंने भारत और सिंगापुर दोनों जगह साम्राज्यवादी पकड़ को नष्ट किया. रैफल्स (सिंगापुर के संस्थापक सर स्टैनफोर्ड रैफल्स) के विपरीत नेताजी भारत की तरह सिंगापुर के इतिहास का भी हिस्सा हैं.'

'नेताजी इन द इंडियन मेकिंग ऑफ सिंगापुर' किताब पर प्रस्तुति देते हुए लतीफ ने कहा, 'रोचक तथ्य है कि 1867 तक भारतीय सरकार के बंदरगाहों में कलकत्ता के बाद दूसरा स्थान सिंगापुर बंदरगाह का था. संक्षेप में कहें, तो सिंगापुर औपनिवेशिक भारत का विस्तार था.' उन्होंने कहा, 'सिंगापुर के निर्माण में भारतीयों का प्रभाव अमिट है.'लतीफ ने रेखांकित किया कि ब्रिटिश राज ने औपनिवेशिक सिंगापुर का निर्माण लंदन के बजाय कोलकाता से किया था.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों के साथ पीएम मोदी (फाइल फोटो)

यह भी पढ़ें- इंडिया गेट पर लगेगी नेताजी की प्रतिमा, फिर भी बोस के प्रपौत्र ने मोदी सरकार को दे डाली 'नसीहत'

कोलकाता में जन्मीं और सिंगापुर में रह रहीं लेखिका नीलांजना सेनगुप्ता ने भी नेताजी की सिंगापुर में भूमिका पर प्रकाश डाला और रेखांकित किया कि नेताजी ने सिंगापुर में प्रभावशाली चेट्टियार समुदाय के दुर्गा पूजा के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था और कहा था कि वह ऐसे धार्मिक स्थल में प्रवेश नहीं कर सकते, जहां न केवल अन्य धर्मों के भारतीयों को प्रवेश नहीं दिया जाता, बल्कि हिंदुओं की कथित निम्न जातियों के प्रवेश पर भी रोक है.

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पीएम मोदी ने जर्मनी दौरे के दौरान ने नेताजी के प्रपौत्र से की मुलाकात (साभार ट्विटर @airnewsalerts)

यह भी पढ़ें- गिद्दापहाड़ जहां कई महीने नजरबंद रहे नेताजी, बटलर के सहारे भेजते थे संदेश

आईएन आंदोलन पर होने वाले अनुंसधान में शामिल और 2012 में नेताजी पर पहली किताब 'ए जेंटलमैन्स वर्ड' प्रकाशित करने वाली सेनगुप्ता ने बताया कि चेट्टियार आईएनए आंदोलन के सबसे बड़े दानकर्ता थे. सेनगुप्ता ने कहा कि नेताजी के जीवन का दक्षिण एशिया अध्याय अहम है, क्योंकि यहां उन्हें अपने राजनीतिक विचारों को मूर्त रूप देने की स्वतंत्रता मिली और यही वजह है कि उनकी मजबूत उपस्थिति और विरासत यहां महसूस की जाती है.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस (पेंटिंग- साभार ट्विटर @airnewsalerts)

(पीटीआई-भाषा)

सिंगापुर : स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) की 125वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है. सिंगापुर के प्रसिद्ध लेखक असद लतीफ (Singapore based writer Asad Latif) ने कहा है कि नेताजी सिंगापुर के इतिहास का उतना ही अहम हिस्सा हैं, (Netaji Subhas part of Singapore history) जितना भारत के इतिहास में उनका योगदान है.

रविवार को नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लतीफ ने भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित संगोष्ठी में कहा, 'बोस द्वारा भारतीय स्वतंत्रता लीग और आजाद हिंद फौज (आईएनए) के पुनरोद्धार से वास्तव में मलया (दक्षिण एशिया के मलय प्रायद्वीप में ऐतिहासिक राजनीतिक संगठन) लोक राजनीति का आगमन हुआ क्योंकि उन्होंने मजदूरों के साथ काम किया और उनमें सम्मान के दुलर्भ भाव को जगाया.'

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नेताजी क 125वीं जयंती भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित संगोष्ठी

सिंगापुर में नेताजी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए लतीफ ने कहा, 'उन्होंने भारत और सिंगापुर दोनों जगह साम्राज्यवादी पकड़ को नष्ट किया. रैफल्स (सिंगापुर के संस्थापक सर स्टैनफोर्ड रैफल्स) के विपरीत नेताजी भारत की तरह सिंगापुर के इतिहास का भी हिस्सा हैं.'

'नेताजी इन द इंडियन मेकिंग ऑफ सिंगापुर' किताब पर प्रस्तुति देते हुए लतीफ ने कहा, 'रोचक तथ्य है कि 1867 तक भारतीय सरकार के बंदरगाहों में कलकत्ता के बाद दूसरा स्थान सिंगापुर बंदरगाह का था. संक्षेप में कहें, तो सिंगापुर औपनिवेशिक भारत का विस्तार था.' उन्होंने कहा, 'सिंगापुर के निर्माण में भारतीयों का प्रभाव अमिट है.'लतीफ ने रेखांकित किया कि ब्रिटिश राज ने औपनिवेशिक सिंगापुर का निर्माण लंदन के बजाय कोलकाता से किया था.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों के साथ पीएम मोदी (फाइल फोटो)

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कोलकाता में जन्मीं और सिंगापुर में रह रहीं लेखिका नीलांजना सेनगुप्ता ने भी नेताजी की सिंगापुर में भूमिका पर प्रकाश डाला और रेखांकित किया कि नेताजी ने सिंगापुर में प्रभावशाली चेट्टियार समुदाय के दुर्गा पूजा के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था और कहा था कि वह ऐसे धार्मिक स्थल में प्रवेश नहीं कर सकते, जहां न केवल अन्य धर्मों के भारतीयों को प्रवेश नहीं दिया जाता, बल्कि हिंदुओं की कथित निम्न जातियों के प्रवेश पर भी रोक है.

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पीएम मोदी ने जर्मनी दौरे के दौरान ने नेताजी के प्रपौत्र से की मुलाकात (साभार ट्विटर @airnewsalerts)

यह भी पढ़ें- गिद्दापहाड़ जहां कई महीने नजरबंद रहे नेताजी, बटलर के सहारे भेजते थे संदेश

आईएन आंदोलन पर होने वाले अनुंसधान में शामिल और 2012 में नेताजी पर पहली किताब 'ए जेंटलमैन्स वर्ड' प्रकाशित करने वाली सेनगुप्ता ने बताया कि चेट्टियार आईएनए आंदोलन के सबसे बड़े दानकर्ता थे. सेनगुप्ता ने कहा कि नेताजी के जीवन का दक्षिण एशिया अध्याय अहम है, क्योंकि यहां उन्हें अपने राजनीतिक विचारों को मूर्त रूप देने की स्वतंत्रता मिली और यही वजह है कि उनकी मजबूत उपस्थिति और विरासत यहां महसूस की जाती है.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस (पेंटिंग- साभार ट्विटर @airnewsalerts)

(पीटीआई-भाषा)

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