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जानिए मुहर्रम से जुड़े अहम तथ्य, क्यों हुई थी करबला की लड़ाई?

मुहर्रम दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय (Muslim community ) के लिए यह रमजान के बाद दूसरा सबसे पवित्र महीना (second holiest month) माना जाता है. यह इस्लामिक वर्ष (Islamic Year ) या हिजरी कैलेंडर (Hijri calenda) का पहला महीना है.

करबला
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Published : Aug 20, 2021, 5:00 AM IST

Updated : Aug 20, 2021, 7:31 AM IST

हैदराबाद : मुहर्रम को मुहर्रम-उल-हरम (Muharram-ul-Haram) भी कहा जाता है. दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय (Muslim community ) के लिए यह रमजान के बाद दूसरा सबसे पवित्र महीना (second holiest month) माना जाता है. यह इस्लामिक वर्ष (Islamic Year ) या हिजरी कैलेंडर (Hijri calenda) का पहला महीना है. मुहर्रम का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद पवित्र महीना होता है.

मुहर्रम के दिन शिया समुदाय इमाम हुसैन (Imam Hussain ) और उनके परिवार की मौत का शोक मनाते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं. इतनी ही नहीं इस दौरान वह हर तरह के जश्न से दूर रहते हैं.

शोक की अवधि मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होती है और इमाम हुसैन की मृत्यु (death of Imam Hussain) तक 10 दिनों तक चलती है. इस दौरान शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहन कर शोक मनाते हैं, जश्न से दूर रहते हैं, उपवास करते हैं और दसवें दिन यानी आशुरा को अपना उपवास तोड़ते हैं.

दूसरी ओर मुहर्रम का 10 वां दिन उस दिन को भी चिह्नित करता है जब अल्लाह ने मिस्र में फिरौन से इस्राइल के बच्चों को बचाया था. 622 ईस्वी में जब पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad) मदीना के लोगों से मिले, तो उन्हें यहूदियों से पता चला कि कुछ लोगों ने इस दिन उपवास किया था, क्योंकि अल्लाह ने इस्रायल के बच्चों को उनके दुश्मन फिरौन से बचाया था. अल्लाह का आभार जताने के लिए पैगंबर मूसा ने भी इस दिन उपवास रखा था.

तब से मुहम्मद भी चाहते थे कि उनके अनुयायी आशूरा और उसके एक दिन पहले दो दिन का उपवास रखें. ऐसा कहा जाता है कि आशूरा पर शिया इमाम हुसैन की मौत (Shias mourn the death of Imam Hussain ) का शोक मनाते हैं और सुन्नी मुसलमान (Sunni Muslims ) पैगंबर मुहम्मद का अनुसरण करते हैं और उपवास रखते हैं.

कर्बला की लड़ाई

मुहर्रम के 10वें दिन करबला में भीषण युद्ध हुआ, जिसे आशूरा के नाम से भी जाना जाता है. लड़ाई 680 सीई में यजीद और इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई.

इस युद्ध में इमाम हुसैन की सेना (army of Imam Hussain) में उनके दोस्त, रिश्तेदार, परिवार सहित महिलाएं और छोटे बच्चे शामिल थे, तो वहीं दूसरी ओर यजीद सेना में हजारों सैनिक शामिल थे.

यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके समूह को गिरफ्तार कर लिया और रेगिस्तान की गर्मी में लगातार तीन दिनों तक पानी और भोजन नहीं दिया.

उसके बाद यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके छह साल के बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी और महिलाओं को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया. मुहर्रम के महीने में बेगुनाहों की शहादत के सम्मान (sacrifice of innocent lives) में मुसलमान शोक मनाते हैं.

मुहर्रम के 10वें दिन कर्बला में भीषण युद्ध हुआ, जिसे आशूरा के नाम से भी जाना जाता है. लड़ाई 680 सीई में यजीद और इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई.इस युद्ध में इमाम हुसैन की सेना (army of Imam Hussain) में उनके दोस्त, रिश्तेदार, परिवार सहित महिलाएं और छोटे बच्चे शामिल थे, तो वहीं दूसरी ओर यजीद सेना में हजारों सैनिक शामिल थे.

यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके समूह को गिरफ्तार कर लिया और रेगिस्तान की गर्मी में लगातार तीन दिनों तक पानी और भोजन नहीं दिया.

उसके बाद यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके छह साल के बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी और महिलाओं को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया. मुहर्रम के महीने में बेगुनाहों की शहादत के सम्मान (sacrifice of innocent lives) में मुसलमान शोक मनाते हैं.

पढ़ें - मुस्लिम बोर्ड ने तालिबान का किया समर्थन, कहा-आपको हिंदुस्तानी मुसलमान का सलाम

मुहर्रम के दिन से जुढ़े अहम तथ्य

1979 में मुहर्रम की पहली तारिख को चरमपंथी विद्रोहियों ने ग्रैंड मस्जिद पर कब्जा कर लिया.

680 AD में मुहर्रम की तीसरी तारिख को हुसैन इब्न अली ने करबला में प्रवेश किया और शिविर की स्थापना की, जहां यजीद की सेना भी मौजूद थी.

1266 AD में मुहर्रम की पांच तारिख को पंजाबी सूफी संत बाबा फरीद की पुण्यतिथि (उर्स) के दिन उनका उर्स पाकिस्तान के पाकपट्टन में मुहर्रम के दौरान छह दिनों तक मनाया गया.

680 AD में मुहर्रम की सात तारिख को यजीद के आदेश पर हुसैन इब्न अली तक पहुंचने वाले पानी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

(1782 AD) में मुहर्रम की आठ तारिख को मुहर्रम विद्रोह के रूप में संदर्भित, सिलहट के बंगाली मुसलमानों ने उपमहाद्वीप में सबसे पहले ब्रिटिश विरोधी विद्रोहों में से एक का नेतृत्व किया.

मुहर्रम की 10 तारिख को अशूरा के दिन इमाम हुसैन इब्न अली करबला की लड़ाई में शहीद हुए थे. इस दिन शिया मुसलमान शोक में दिन बिताते हैं, जबकि सुन्नी मुसलमान इस दिन उपवास करते हैं.

हैदराबाद : मुहर्रम को मुहर्रम-उल-हरम (Muharram-ul-Haram) भी कहा जाता है. दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय (Muslim community ) के लिए यह रमजान के बाद दूसरा सबसे पवित्र महीना (second holiest month) माना जाता है. यह इस्लामिक वर्ष (Islamic Year ) या हिजरी कैलेंडर (Hijri calenda) का पहला महीना है. मुहर्रम का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद पवित्र महीना होता है.

मुहर्रम के दिन शिया समुदाय इमाम हुसैन (Imam Hussain ) और उनके परिवार की मौत का शोक मनाते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं. इतनी ही नहीं इस दौरान वह हर तरह के जश्न से दूर रहते हैं.

शोक की अवधि मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होती है और इमाम हुसैन की मृत्यु (death of Imam Hussain) तक 10 दिनों तक चलती है. इस दौरान शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहन कर शोक मनाते हैं, जश्न से दूर रहते हैं, उपवास करते हैं और दसवें दिन यानी आशुरा को अपना उपवास तोड़ते हैं.

दूसरी ओर मुहर्रम का 10 वां दिन उस दिन को भी चिह्नित करता है जब अल्लाह ने मिस्र में फिरौन से इस्राइल के बच्चों को बचाया था. 622 ईस्वी में जब पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad) मदीना के लोगों से मिले, तो उन्हें यहूदियों से पता चला कि कुछ लोगों ने इस दिन उपवास किया था, क्योंकि अल्लाह ने इस्रायल के बच्चों को उनके दुश्मन फिरौन से बचाया था. अल्लाह का आभार जताने के लिए पैगंबर मूसा ने भी इस दिन उपवास रखा था.

तब से मुहम्मद भी चाहते थे कि उनके अनुयायी आशूरा और उसके एक दिन पहले दो दिन का उपवास रखें. ऐसा कहा जाता है कि आशूरा पर शिया इमाम हुसैन की मौत (Shias mourn the death of Imam Hussain ) का शोक मनाते हैं और सुन्नी मुसलमान (Sunni Muslims ) पैगंबर मुहम्मद का अनुसरण करते हैं और उपवास रखते हैं.

कर्बला की लड़ाई

मुहर्रम के 10वें दिन करबला में भीषण युद्ध हुआ, जिसे आशूरा के नाम से भी जाना जाता है. लड़ाई 680 सीई में यजीद और इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई.

इस युद्ध में इमाम हुसैन की सेना (army of Imam Hussain) में उनके दोस्त, रिश्तेदार, परिवार सहित महिलाएं और छोटे बच्चे शामिल थे, तो वहीं दूसरी ओर यजीद सेना में हजारों सैनिक शामिल थे.

यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके समूह को गिरफ्तार कर लिया और रेगिस्तान की गर्मी में लगातार तीन दिनों तक पानी और भोजन नहीं दिया.

उसके बाद यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके छह साल के बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी और महिलाओं को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया. मुहर्रम के महीने में बेगुनाहों की शहादत के सम्मान (sacrifice of innocent lives) में मुसलमान शोक मनाते हैं.

मुहर्रम के 10वें दिन कर्बला में भीषण युद्ध हुआ, जिसे आशूरा के नाम से भी जाना जाता है. लड़ाई 680 सीई में यजीद और इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई.इस युद्ध में इमाम हुसैन की सेना (army of Imam Hussain) में उनके दोस्त, रिश्तेदार, परिवार सहित महिलाएं और छोटे बच्चे शामिल थे, तो वहीं दूसरी ओर यजीद सेना में हजारों सैनिक शामिल थे.

यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके समूह को गिरफ्तार कर लिया और रेगिस्तान की गर्मी में लगातार तीन दिनों तक पानी और भोजन नहीं दिया.

उसके बाद यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके छह साल के बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी और महिलाओं को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया. मुहर्रम के महीने में बेगुनाहों की शहादत के सम्मान (sacrifice of innocent lives) में मुसलमान शोक मनाते हैं.

पढ़ें - मुस्लिम बोर्ड ने तालिबान का किया समर्थन, कहा-आपको हिंदुस्तानी मुसलमान का सलाम

मुहर्रम के दिन से जुढ़े अहम तथ्य

1979 में मुहर्रम की पहली तारिख को चरमपंथी विद्रोहियों ने ग्रैंड मस्जिद पर कब्जा कर लिया.

680 AD में मुहर्रम की तीसरी तारिख को हुसैन इब्न अली ने करबला में प्रवेश किया और शिविर की स्थापना की, जहां यजीद की सेना भी मौजूद थी.

1266 AD में मुहर्रम की पांच तारिख को पंजाबी सूफी संत बाबा फरीद की पुण्यतिथि (उर्स) के दिन उनका उर्स पाकिस्तान के पाकपट्टन में मुहर्रम के दौरान छह दिनों तक मनाया गया.

680 AD में मुहर्रम की सात तारिख को यजीद के आदेश पर हुसैन इब्न अली तक पहुंचने वाले पानी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

(1782 AD) में मुहर्रम की आठ तारिख को मुहर्रम विद्रोह के रूप में संदर्भित, सिलहट के बंगाली मुसलमानों ने उपमहाद्वीप में सबसे पहले ब्रिटिश विरोधी विद्रोहों में से एक का नेतृत्व किया.

मुहर्रम की 10 तारिख को अशूरा के दिन इमाम हुसैन इब्न अली करबला की लड़ाई में शहीद हुए थे. इस दिन शिया मुसलमान शोक में दिन बिताते हैं, जबकि सुन्नी मुसलमान इस दिन उपवास करते हैं.

Last Updated : Aug 20, 2021, 7:31 AM IST
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