दावणगेरे : कर्नाटक के युवक रज़ीक उल्ला (Razeeq Ulla ) के हाथ जरूर ईंट-गारे से सने हैं, लेकिन तकदीर बदलने का जज्बा कम नहीं है. परिवार का आर्थिक हालत ने उसे मोर्टार वर्क (भवन निर्माण कार्य) करने को मजबूर किया, लेकिन पढ़ाई के प्रति उसकी रुचि कम नहीं हुई. उसने न सिर्फ एमए अंग्रेजी से किया है बल्कि पहली रैंक हासिल कर दो गोल्ड मेडल भी जीते.
दरअसल मालेबेन्नूर गांव के रहने वाले रज़ीक उल्ला के परिवार में कुल छह सदस्य हैं. पिता जमालदीन मोर्टार वर्क कर बमुश्किल से परिवार का खर्च चलाते हैं. पिता का हाथ बंटाने के लिए उसने भी काम करना शुरू किया, लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी. वह सप्ताह में तीन दिन कॉलेज जाता है और बाकी दिन अपने पिता के साथ काम करता है. इस तरह ईंट गारे और प्लास्टर का काम करते हुए उच्च शिक्षा में भाग लेने वाले युवक ने अंग्रेजी में एमए में पहली रैंक के साथ दावणगेरे में अपनी पहचान बनाई है.
इस काम में दावणगेरे विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग ने भी उसका काफी हौसला बढ़ाया. उसकी इस उपलब्धि पर पूरे जिले में तारीफ हो रही है. पूर्व सीएम एच.डी. कुमारस्वामी उसके गांव पहुंचे और उसका अभिनंदन किया. रज़ीक उल्ला ने कहा कि 'मेरे माता-पिता और दोस्तों ने मुझे पढ़ने में मदद की इसलिए गोल्ड मेडल हासिल कर सका. मेरे पिता न केवल मुझे काम पर ले गए, उन्होंने मेरी शिक्षा में भी सहयोग दिया. विश्वविद्यालय ने मुझे सम्मानित किया है, दो स्वर्ण पदक मिले हैं.'
उसने बताया कि 'हम गरीब लोग हैं मेरे पिता मोर्टार का काम करते हैं और मेरी मां गृहिणी हैं. मैं बड़ा बेटा हूं. पिता केवल काम कर रहे थे. हम अपने घर में छह छह लोग हैं इसलिए मैंने अपने पिता की कठिनाई को कम करने के लिए काम करना शुरू किया.' पिता जमालदीन का कहना है कि जितना हो सका मैंने उसे शिक्षा दी है. स्वर्ण पदक उसकी कड़ी मेहनत का नतीजा है. छुट्टी के दिन वह मेरे साथ काम करता था.
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