इंदौर/गौतमपुरा। पूरे देश में विख्यात हो चुका इंदौर जिले के गौतमपुरा नगर का हिंगोट युद्ध जोश व उत्साह के साथ बुधवार को खेला गया. इस बार भी यह नकली युद्ध 26 अक्टूबर की शाम को भगवान देवनारायण मंदिर के सामने वाले मैदान तुर्रा (गौतमपुरा) कलगी (रूणजी) के बीच देखने को मिला. दोनों दलों ने सूर्यास्त के समय दो भागों में होकर एक दूसरे पर जलते हिंगोट (अग्निबाण) फेंके, इस दौरान 46 लोग घायल हो गए. इस दौरान वहां हजारों की संख्या में दर्शक मौजूद रहे. इस युद्ध को यहां के लोग भाई चारे का प्रेम युद्ध कहते हैं.
योद्धाओं को देख रोमांचित हो उठे दर्शक: बुधवार को 3 बजे के बाद हिंगोट युद्ध मैदान पर दर्शकों का ताता लग चुका था. 4 बजे के बाद कलगी व तुर्रा दल के योद्धा अपने घरों से ढोल डमाकों व जोश के साथ हिंगोट युद्ध के लिए निकल गए और मैदान के पास देवनारायण मंदिर में दर्नश के पश्चात भाई चारे के साथ मैदान में अपने-अपने दल के साथ आमने सामने खडे हो गए. सिर पर साफा, एक हाथ में ढाल और कंधे पर झोला (तरकस) लटकाए जैसे ही योद्धा मैदान मे उतरे दर्शक रोमांचित हो उठे व पूरा स्टेडियम तालियों से गुंजने लगा. शाम के 5 बजे तुर्रा व कलगी दल के प्रमुख ने गले मिलकर आसमान में एक साथ जैसे ही हिंगोट छोड़े वैसे ही दोनों दलों के युद्धाओं ने जलते हुए हिंगोट आमने सामने फेंकना शुरु कर दिये.
दर्शकों की सुरक्षा के लिए लगाई 12 फीट ऊंची जाली: जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे इस युद्ध बनाम खेल का रोमांच अपने चरम पर चढ़ता गया. करीब दो घंटे चले हिंगोट युद्ध में 46 लोग घायल हो गए. हालांकि शांतिपूर्ण तरीके से हिंगोट युद्ध संपन्न हो गया. 7 बजते ही बिना किसी दल की जीत हार के युद्ध का समापन हो गया और सारे योद्धा व दर्शक धीरे धीरे अपने घर चले गए. इस बार परिषद व प्रशासन ने दर्शको की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखते हुए युद्ध मैदान और दर्शकों के खड़े होने की दूरी बढ़ाई थी. साथ ही इस साल सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए जालियों की हाइट 12 फीट कर दी गई, जिससे घायलों की संख्या में कमी आई. मेडिकल ऑफिसर सुनिल असाटी के अनुसार कुल 46 लोग घायल जिसमे 2 गंभीर हैं बाकी को मामूली चोटें आई हैं.
जानिए कैसे तैयार होता हैं हिंगोट: हिंगोट युद्ध की ये परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. हिंगोट एक फल होता है. लोग लगभग एक माह पहले से कटीली झाड़ियों में लगने वाले हिंगोट को जमा करते हैं, उसके अंदर के गूदे को अलग कर दिया जाता है और उसके कठोर बाहरी आवरण को धूप में सुखाने के बाद उसके भीतर बारूद और कंकड़-पत्थर भरे जाते हैं. बारूद भरे जाने के बाद ये हिंगोट बम का रूप ले लेता है. इसके एक सिरे पर लकड़ी बांधी जाती है. इससे वह रॉकेट की तरह आगे जा सके. एक हिस्से में आग लगाने पर हिंगोट रॉकेट की तरह घूमता हुआ दूसरे दल की ओर बढ़ता है.
Hingot Yudh: इंदौर के हिंगोट युद्ध में बरसे आग के गोले, तुर्रा और कलगी के बीच संघर्ष में 46 लोग घायल
एक-दूसरे पर बरसाते हैं आगे के गोले: हिंगोट युद्ध के दिन तुर्रा व कंलगी दल के योद्धा सिर पर साफा, कंधे पर हिंगोट से भरे झोले हाथ में ढाल एवं जलती लकड़ी लेकर दोपहर दो बजे बाद हिंगोट युद्ध मैदान की और नाचते गाते निकल पड़ते हैं (hingote war on 26 October in indore). भगवान देवनारायण मंदिर में दर्शन के बाद योद्धा मैदान में आमने-सामने खडे़ हो जाते हैं. शाम पांच बजे के बाद संकेत पाकर युद्ध आंरभ कर देते हैं. करीब दो घंटे तक चलने वाले इस युद्ध में सामने वाले योद्धा द्वारा फेके गए हिंगोट की चपेट में आये योद्धा का झोला जलता है. कई योद्धा घायल भी होते हैं. (know how hingot is prepared) दोनों दलों के योद्धा एक-दूसरे पर जमकर हिंगोट चलाते हैं.
हिंगोट युद्ध की शुरुआत: आखिर हिंगोट युद्ध की शुरुआत कैसे, क्यों और कब हुई, इसका कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन किवदंती है कि सालों पहले गौतमपुरा क्षेत्र की सीमाओं की रक्षा के लिए तैनात जवान दूसरे आक्रमणकारियों पर हिंगोट से हमला करते थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक, हिंगोट युद्ध एक किस्म के अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था और उसके बाद इसके साथ धार्मिक मान्यताएं जुड़ती चली गईं. (Indore 200 year old tradition) (Hingot Yudh in Gautampura) (46 People Injured in hingot yudh in indore) (hingot yudh 2022) (hingot yudh in indore after diwali) (know how hingot is prepared)