इंदौर। मध्य प्रदेश में रामनवमी के त्योहार का कई परिवारों के लिए एक उत्सव की जगह मातम की वजह बन गया. इन्दौर में बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में बावड़ी धंसने से हुए हादसे में 35 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. राष्ट्रपति, पीएम- सीएम समेत कई राजनेता अब इस हादसे पर दुख जाता रहे हैं. ऐसा नही है कि यह हादसा यूं ही अचानक हो गया. कहना गलत नहीं होगा कि इंदौर जैसे महानगर में एक प्रसिद्ध मंदिर में इस तरह का हादसा प्रशासनिक कमियों को उजागर कर रहा है.
पहले भी हुए त्योहारों पर हादसे: पहले भी मध्यप्रदेश में त्योहारों में होने वाली भीड़ ऐसे ही बड़े हादसों का शिकार हो चुकी है. 2013 में नवरात्रि में दतिया के रतनगढ़ माता मंदिर पर भी 100 से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. वहीं रतनगढ़ में ही 2006 में नवरात्रि के दौरान करीब 50 श्रद्धालु सिंध नदी में बह गए थे. भोपाल के पास सलकनपुर में भी नवरात्रि के दौरान भगदड़ से कई बार हादसे हो चुके हैं. बावजूद प्रशासन इन हादसों से सबक नहीं लेता है. ऐसे में इंदौर में हुए हादसे के बाद कुएं में गिरे लोगों को रेस्क्यू किया गया है. मृतकों के शव निकाले जा चुके हैं, लेकिन हादसे के बाद अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
- बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में नवरात्रि और राम नवमी पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुंचती है. ऐसे में प्रशासन ने सुरक्षा इंतजाम पर ध्यान क्यों नहीं दिया
- आखिर मंदिर परिसर में मंदिर से बड़ा कुआं क्यों था, श्रद्धालुओं को वहां जाने से क्यों नहीं रोका गया?
- जिस कुएं की छत गिरी उसे सिर्फ कांक्रीट लैंटर्न से क्यों बंद किया गया था, पहले उसका भराव क्यों नहीं कराया गया?
- जब मंदिर प्रबंधन और सुरक्षाकर्मियों को पता था कि कुएं के ऊपर भीड़ के पहुंचने पर वह वजन नहीं सब पाएगी तो हवन पूजन के लिये बैठने वाले लोगों को क्यों नहीं रोका गया?
- कुएं को बंद करने के बाद उसी के ऊपर प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा क्यों कराई गई. जबकि वह बड़े खाली गड्ढे के ऊपर रखी गई. हादसे को निमंत्रण देने वाली लापरवाही काफी पहले हो चुकी थी?
- इनके अलावा प्रदेश में कई ऐसे तीर्थ स्थान हैं. जहां त्योहार या श्रद्धालुओं की भीड़ हादसे को न्योता देती है, लेकिन पुलिस और प्रशासन इन स्थानों पर निगरानी की व्यवस्था क्यों नहीं करते?
क्या रहा था पूरा घटनाक्रम: नवरात्रि के आखिरी दिन रामनवमी पर सुबह से ही इंदौर महानगर के पटेल नगर में स्थित बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई थी. कन्या पूजा के साथ श्रद्धालु हवन पूजन करने पहुंच रहे थे. इसी बीच बढ़ती भीड़ में जगह की कमी हुई तो कई लोग मंदिर परिसर के बंद कुएं की छत पर बैठ कर पूजा करने लगे. भीड़ का वजन अधिक होने से कांक्रीट से ढकी छत धंस गई. जिसके बाद उसके ऊपर बैठे 55 श्रद्धालु कुएं में जा गिरे. आनन फानन में प्रशासन ने रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया. 19 लोगों को रेस्क्यू कर लिया गया लेकिन 35 की मौत इस हादसे में हो गई.
नवरात्रि में देश के वे बड़े हादसे जिनमें श्रद्धालुओं ने गंवाई जान: राजस्थान के जोधपुर जिले में साल 2008 में नवरात्रि के दौरान मेहरांगढ़ किले पर स्थित माता चामुंडा देवी के दर्शन के दौरान भगदड़ मचने से 217 श्रद्धालुओं ने अपनी जान गंवाईं थीं.
- 2013 में नवरात्रि में मध्यप्रदेश के दतिया के रतनगढ़ माता मंदिर पर भी 100 से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. अचानक भगदड़ की वजह से कई श्रद्धालु नदी में कूद गए थे, जिनकी डूबने और कई भीड़ में कुचलने से अपनी जान गवां बैठे थे. इस हादसे के बाद डॉक्टरों ने 109 शवों का पोस्टमार्टम किया था.
- 2006 में भी रतनगढ़ माता मंदिर पर नवरात्रि में हादसा हुआ था. माता के दर्शन को उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ रतनगढ़ स्थित सिंध नदी के पुल पर अनियंत्रित हो गई और भगदड़ में कई लोग नदी में वह गए थे. इस हादसे में करीब 50 श्रद्धालुओं की जान गई थी.
- नवरात्रि में ही उत्तर प्रदेश के लखनऊ में पिछले साल सितंबर 2022 में चंद्रिका देवी मंदिर जा रही ग्रामीणों से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉली पलटने से 10 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी.
- उत्तराखण्ड के टनकपुर में 23 मार्च को माता पूर्णागिरी धाम मंदिर पर नवरात्रि मेले के दौरान सोते श्रद्धालुओं पर बस चढ़ गई थी. हादसे में 5 की मौत हुई थी और 7 श्रद्धालु घायल हुए थे.
क्यों नहीं चेत रहा प्रशासन: इस तरह के हादसे ये सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं कि जहां श्रद्धाभाव और भक्ति के साथ श्रद्धालु देवी के दर्शन को पहुंचते हैं, लेकिन क्या अब भीड़भाड़ वाले मंदिरों में त्योहार में दर्शन को जाना सुरक्षित है. आखिर प्रशासन 2006 और 2013 में हुए रतनगढ़ मंदिर पर हादसे के बाद भी क्यों नहीं चेता है. ऐसे ही कई सवाल हैं. जिनके जवाब आना अब भी बाकी हैं.