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पेट्रोल-डीजल के बढ़े भाव, बैलगाड़ी के लौटे दिन! जानिए कहां

मध्य प्रदेश के इंदौर पशु बाजार में इन दिनों बैलों की जोड़ी के दाम 3.5 गुना बढ़ गए हैं. इसका कारण है पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते दाम. इंदौर की कृषि उपज मंडी में ढुलाई मजदूर लोडिंग रिक्शा और ऑटो से सामान का परिवहन करने की बजाए बैलगाड़ी से कर रहे हैं. लोडिंग रिक्शा और ऑटो चालकों का कहना है कि इससे दिनभर में 500 रुपए की बचत हो जाती है.

बैलगाड़ी की बढ़ी डिमांड
बैलगाड़ी की बढ़ी डिमांड
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Published : Oct 30, 2021, 3:45 PM IST

इंदौर : देशभर में तेजी से बढ़ती महंगाई और आसमान छूती पेट्रोल-डीजल की कीमतों के कारण दशकों बाद अब बैल और बैल गाड़ियों के दिन एक बार फिर लौट आए हैं. यही वजह है कि प्रदेश के पशु हाट बाजारों में बैलों के दाम 3.5 गुना तक बढ़ गए हैं. प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में स्थिति यह है कि परिवहन के साधनों के साथ अब खेती-किसानी और सामान ढुलाई के कामों में एक बार फिर बैलों का उपयोग किया जा रहा है.

3.5 गुना महंगी हुई बेलों की जोड़ी

इंदौर की कृषि उपज मंडी में स्थिति यह है कि जो ढुलाई मजदूर लोडिंग रिक्शा और ऑटो से सामान का परिवहन करते थे. वह भी बैलगाड़ी का सहारा लेते नजर आ रहे हैं. महंगाई के इस भीषण दौर में आलम यह है कि इंदौर समेत देवास, मक्सी, सनावद, सुंद्रेल और गुड़गांव के पशु हाट मेले में भी बैलों की जोड़ी 70 हजार में मिल रही है. कुछ समय पहले तक यही जोड़ी 20 से लेकर 22 हजार रुपए में आसानी से मिल जाती थी.

इंदौर की कृषि उपज मंडी में बैलगाड़ी से कर रहे ढुलाई.

लोडिंग वाहन पर रोजाना 500 रुपए ज्यादा खर्च

महंगाई के कारण आम जरूरतमंद लोगों के अलावा अब सीमांत और मध्यमवर्गीय किसान भी अपने-अपने ट्रैक्टर छोड़कर एक बार फिर बैलगाड़ी और बैलों की ओर रुख करते नजर आ रहे हैं. इधर बैलगाड़ी और वाहनों के खर्चे के हिसाब का आकलन किया जाए तो प्रतिदिन बैलों को 300 रुपए की खली चुरी और भूसे की खुराक देनी होती है.

जबकि इतने ही परिवहन और कामकाज के लिए लोडिंग रिक्शा में प्रतिदिन करीब 800 रुपए का डीजल लग जाता है. साफ तौर पर 500 रुपए प्रतिदिन का घाटा देखकर लोडिंग रिक्शा चालक और लघु सीमांत किसान अपने कामकाज के लिए बैल और बैल गाड़ियों को ज्यादा मुफीद मान रहे हैं.

एमपी में पेट्रोल से लेकर टैक्स तक सब महंगा

ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि अन्य राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश में पेट्रोल-डीजल करीब 10 रुपए महंगा है. इसके अलावा यहां परिवहन और खर्चों के साथ कृषि व्यवसाय में माल ढुलाई के अलावा टैक्स की दरें सबसे ज्यादा हैं. इतना ही नहीं लोडिंग वाहनों में बीमार रजिस्ट्रेशन टैक्स की तमाम दरें अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक हैं. लिहाजा मजबूरी में ही सही अब लोग खेती-किसानी के साथ माल ढुलाई के पारंपरिक साधनों की ओर भी रुख करने को मजबूर हैं.

इंदौर में पशुधन का संकट

इंदौर में दुधारू पशुओं और मवेशियों के नगर निगम सीमा में प्रतिबंधित होने के कारण पशुओं को गोशाला भेजा गया है. लिहाजा यहां पहले से ही पशु पालन प्रतिबंधित है. हालांकि अब मंडियों में जब माल ढुलाई के लिए बैलों का उपयोग बढ़ रहा है, तो परिवहन के साधनों में बैलों के उपयोग को थोड़ी सी ढिलाई मिली हुई है. इसके बावजूद पशु संरक्षण के तमाम नियमों का पालन बेलगाड़ी चालकों को करना होता है.

इंदौर में बढ़ रहा बैलगाड़ियों का चलन

फिलहाल इंदौर की लोहा मंडी में बड़ी संख्या में बैलगाड़ियां हैं. जिनसे लोहे और अन्य सामग्री का परिवहन होता है. यही स्थिति अब छावनी अनाज मंडी में है. जहां लगातार बैलगाड़ियों से अनाज का परिवहन बढ़ रहा है. इसके अलावा आस-पास के पशु मेलों में भी पहले की तुलना में अब अच्छी नस्ल के बैल और सांड देखे जा रहे हैं. जिनकी अच्छे खासे दामों में आम लोगों के साथ किसान भी खरीदी कर रहे हैं.

पढ़ेंः अखिलेश ने बसपा-भाजपा को दिया झटका, सात विधायक सपा में शामिल

इंदौर : देशभर में तेजी से बढ़ती महंगाई और आसमान छूती पेट्रोल-डीजल की कीमतों के कारण दशकों बाद अब बैल और बैल गाड़ियों के दिन एक बार फिर लौट आए हैं. यही वजह है कि प्रदेश के पशु हाट बाजारों में बैलों के दाम 3.5 गुना तक बढ़ गए हैं. प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में स्थिति यह है कि परिवहन के साधनों के साथ अब खेती-किसानी और सामान ढुलाई के कामों में एक बार फिर बैलों का उपयोग किया जा रहा है.

3.5 गुना महंगी हुई बेलों की जोड़ी

इंदौर की कृषि उपज मंडी में स्थिति यह है कि जो ढुलाई मजदूर लोडिंग रिक्शा और ऑटो से सामान का परिवहन करते थे. वह भी बैलगाड़ी का सहारा लेते नजर आ रहे हैं. महंगाई के इस भीषण दौर में आलम यह है कि इंदौर समेत देवास, मक्सी, सनावद, सुंद्रेल और गुड़गांव के पशु हाट मेले में भी बैलों की जोड़ी 70 हजार में मिल रही है. कुछ समय पहले तक यही जोड़ी 20 से लेकर 22 हजार रुपए में आसानी से मिल जाती थी.

इंदौर की कृषि उपज मंडी में बैलगाड़ी से कर रहे ढुलाई.

लोडिंग वाहन पर रोजाना 500 रुपए ज्यादा खर्च

महंगाई के कारण आम जरूरतमंद लोगों के अलावा अब सीमांत और मध्यमवर्गीय किसान भी अपने-अपने ट्रैक्टर छोड़कर एक बार फिर बैलगाड़ी और बैलों की ओर रुख करते नजर आ रहे हैं. इधर बैलगाड़ी और वाहनों के खर्चे के हिसाब का आकलन किया जाए तो प्रतिदिन बैलों को 300 रुपए की खली चुरी और भूसे की खुराक देनी होती है.

जबकि इतने ही परिवहन और कामकाज के लिए लोडिंग रिक्शा में प्रतिदिन करीब 800 रुपए का डीजल लग जाता है. साफ तौर पर 500 रुपए प्रतिदिन का घाटा देखकर लोडिंग रिक्शा चालक और लघु सीमांत किसान अपने कामकाज के लिए बैल और बैल गाड़ियों को ज्यादा मुफीद मान रहे हैं.

एमपी में पेट्रोल से लेकर टैक्स तक सब महंगा

ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि अन्य राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश में पेट्रोल-डीजल करीब 10 रुपए महंगा है. इसके अलावा यहां परिवहन और खर्चों के साथ कृषि व्यवसाय में माल ढुलाई के अलावा टैक्स की दरें सबसे ज्यादा हैं. इतना ही नहीं लोडिंग वाहनों में बीमार रजिस्ट्रेशन टैक्स की तमाम दरें अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक हैं. लिहाजा मजबूरी में ही सही अब लोग खेती-किसानी के साथ माल ढुलाई के पारंपरिक साधनों की ओर भी रुख करने को मजबूर हैं.

इंदौर में पशुधन का संकट

इंदौर में दुधारू पशुओं और मवेशियों के नगर निगम सीमा में प्रतिबंधित होने के कारण पशुओं को गोशाला भेजा गया है. लिहाजा यहां पहले से ही पशु पालन प्रतिबंधित है. हालांकि अब मंडियों में जब माल ढुलाई के लिए बैलों का उपयोग बढ़ रहा है, तो परिवहन के साधनों में बैलों के उपयोग को थोड़ी सी ढिलाई मिली हुई है. इसके बावजूद पशु संरक्षण के तमाम नियमों का पालन बेलगाड़ी चालकों को करना होता है.

इंदौर में बढ़ रहा बैलगाड़ियों का चलन

फिलहाल इंदौर की लोहा मंडी में बड़ी संख्या में बैलगाड़ियां हैं. जिनसे लोहे और अन्य सामग्री का परिवहन होता है. यही स्थिति अब छावनी अनाज मंडी में है. जहां लगातार बैलगाड़ियों से अनाज का परिवहन बढ़ रहा है. इसके अलावा आस-पास के पशु मेलों में भी पहले की तुलना में अब अच्छी नस्ल के बैल और सांड देखे जा रहे हैं. जिनकी अच्छे खासे दामों में आम लोगों के साथ किसान भी खरीदी कर रहे हैं.

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