भोपाल। अगर मन में विश्वास और कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो अक्षमता भी आड़े हाथ नहीं आती, ऐसा ही देखने को मिला दिव्य कला मेले में. राजधानी भोपाल में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग भारत सरकार के सहयोग से मेला लगाया गया है. इस मेले में 100 से अधिक दिव्यांगों ने स्टाल लगाई है. एनएचएफडीसी के अरुण कुमार कहते हैं कि ऐसे मेलो के माध्यम से दिव्यांगों को उचित स्थान मिलता है. यहां आए दिव्यांग एक से बढ़कर एक सामान लेकर मौजूद हैं. जो इन्होंने खुद अपने हाथों से बनाए हैं. भले ही है शारीरिक रूप से ये अक्षम हो लेकिन इनके मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना और विश्वास है.
आदिल की कश्मीरी शॉल: जम्मू कश्मीर के रहने वाले आदिल बचपन से ही दोनों पैरों से विकलांग हैं और व्हीलचेयर के बिना कहीं जा भी नहीं सकते लेकिन, उनके मन में कुछ कर गुजरने का ऐसा जुनून था कि उन्होंने कश्मीर के हुनर को अब देशभर में पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. आदिल कश्मीर में ही कश्मीरी शॉल का एक छोटा सा कारखाना चलाते हैं. इसके साथ ही वहां का केसर और ड्राई फ्रूट भी यहां सेल करते हैं. आदिल कहते हैं कि कश्मीर के लोग जब बाहर जाते हैं तो हर व्यक्ति उन्हें एक अलग निगाह से देखता है लेकिन वह इन काजू बादाम के साथ कश्मीर का प्यार लेकर आए हैं.
आजिम ने हुनर को तराशा: उत्तर प्रदेश के रहने वाले आजिम खान बचपन से पोलियो का शिकार हैं इनका उल्टा पैर काम नहीं करता. ऐसे में परिवार का गुजारा भी बमुश्किल हो पाता था. आजिम ने गनमेटल से सामान बनाने का हुनर अपने अंदर तराशा और एक से एक नक्काशीदार सामान आदिल बनाते हैं. जिसमें घर सजाने के सामान से लेकर ही ड्राइंग रूम में सजाने वाले मिरर और कई ऐसे आइटम है जो लोगों को बरबस ही अपनी और आकर्षित करते हैं. आजिम बताते हैं कि इनको बनाने में समय लगता है और बड़ी कशीदाकारी के साथ उनका कलर और पेंट भी चुनना पड़ता है. शुरुआत में तो ज्यादा लोगों ने इन्हें प्रोत्साहित नहीं किया लेकिन जैसे जैसे लोगों को इस बारे में पता चला तो उन्होंने इनको प्रोत्साहित किया और सरकार के माध्यम से यह देश भर में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर पाए हैं.
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कैंसर के चलते कटा पैर फिर भी नहीं टूटा हौसला: दिल्ली के रहने वाले संजीव ने यहां कपड़ों का स्टॉल लगाया है. वह एक पैर से विकलांग हैं वैसाखी का सहारा लेकर चलते हैं. संजीव कहते हैं कि लॉकडाउन के पहले वह फोटोग्राफी का काम करते थे लेकिन बीच में एक हादसा हुआ और उनका एक पैर कैंसर के कारण काटना पड़ा. ऐसे में उसके बाद उन्हें कुछ समझ में नहीं आया लेकिन धीरे-धीरे लोगों के सहयोग और परिवार की सहायता से उन्होंने अब अपना खुद का मकान बना लिया है.
पूरा गांव बनाता है खिलौने: आंध्र प्रदेश के शाहिद और अली यहां पर खिलौनों की दुकान लेकर आए हैं. अली बताते हैं कि इनका पूरा गांव ही खिलौने बनाता है. अली के गांव में लगभग 100 परिवार हैं और पुश्तैनी तौर पर यह सभी लकड़ी के खिलौने बनाते हैं. एक खिलौने को बनाने में कम से कम 4 दिन का समय लगता है. तो कोई घिसाई का काम करता है तो कोई उसके चक्के बनाने का. ऐसे में यह इन खिलौनों को शाहिद बनाते है. इनके गांव में भी लगभग 15 से 16 लोग दिव्यांग है ऐसे में वह सब ही शाहिद का सहयोग करते हैं.